जेल में 20 साल बिताने के बाद बलात्कार के केस में बरी होने का मामलाः एनएचआरसी ने यूपी सरकार से आरोपी के पुनर्वास व दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई पर रिपोर्ट मांगी

Mar 08, 2021
Source: hindi.livelaw.in

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने बीस साल जेल में बिताने के बाद बलात्कार के केस में एक व्यक्ति को बरी किए जाने के मामले पर स्वत संज्ञान लिया है। एनएचआरसी ने पाया कि यह सीआरपीसी की धारा 433 के गैर-अनुप्रयोग का मामला है।

गौरतलब है कि यह मामला एक 23 वर्षीय व्यक्ति (अब 43) का है, जिसे बलात्कार के एक मामले में ट्रायल कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी और जिसे अब बीस साल बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्दोष घोषित किया है।

महत्वपूर्ण है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट जनवरी 2021 में उस व्यक्ति के बचाव में आया था,जिसने झूठे बलात्कार के मामले में बीस साल जेल में बिता दिए हैं। कथित तौर पर एक भूमि विवाद के कारण एक महिला ने उसके खिलाफ झूठा बलात्कार का केस दायर किया था।

इस अवधि के दौरान, उसके परिवार के प्रत्येक सदस्य की मृत्यु हो गई है। जेल में उसका आचरण हमेशा अच्छा पाया गया, लेकिन उसके पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए उसके फरलो के आवेदन को स्वीकार नहीं किया गया। उसे अपने भाई के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं होने दिया गया।

सीआरपीसी की धारा 433 यह ध्यान दिया जा सकता है कि सीआरपीसी की धारा 433 के अनुसार, सरकार सजा को कम (मौत की सजा, आजीवन कारावास, सश्रम कारावास या साधारण कारावास) कर सकती है। इस प्रावधान के अनुसार, कानून के तहत सजा को कम करने के दृष्टिकोण के साथ सेंटेंस रिव्यू बोर्ड को अदालत द्वारा दी गई सजा की समीक्षा पर पुनर्विचार करने की जरूरत होती है।

इस पृष्ठभूमि में, एनएचआरसी ने कहा कि, ''ऐसे कई मामलों में जेलों में मरने वाले 75 साल से अधिक उम्र के कैदी भी हो सकते हैं, जो स्पष्ट रूप से सेंटेंस रिव्यू बोर्ड की अप्रभावीता को दर्शाते हैं। आयोग ने कहा है कि मीडिया रिपोर्ट में दिए गए तथ्य अगर सत्य है तो यह पीड़ित के मानवाधिकारों के उल्लंघन के समान है।''

इसप्रकार, एनएचआरसी ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को मामले में विस्तृत रिपोर्ट भेजने के लिए नोटिस जारी किया है। इसके अलावा, यह निर्देशित किया गया है कि रिपोर्ट में निम्न तथ्य शामिल होने चाहिएः

- -इस मामले में जिम्मेदार लोक सेवकों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई, -इन वर्षों के दौरान हुए आघात, मानसिक पीड़ा और सामाजिक कलंक की कुछ हद तक क्षतिपूर्ति करने के लिए पीड़ित को राहत देने और उसके पुनर्वास के लिए उठाए गए कदम।

6 सप्ताह के भीतर जवाब दिए जाने की उम्मीद जताई गई है। संक्षेप में मामला इस व्यक्ति पर वर्ष 1999 में अनुसूचित जाति की एक महिला के साथ बलात्कार, आपराधिक धमकी देने और यौन शोषण करने का आरोप लगाया गया था और ललितपुर जिले की निचली अदालत ने मामले की सुनवाई के बाद इसे दोषी पाया था।

वर्ष 2003 में, इसे आगरा सेंट्रल जेल ले जाया गया, जहाँ उसका आचरण हमेशा अच्छा रहा। वर्ष 2005 में, उसने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने का फैसला किया और हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 14 वर्ष की अवधि पूरी करने के बाद, पीड़ित ने मर्सी प्ली अप्लाई की और जेल अधिकारियों ने इस मामले पर ध्यान दिया।

राज्य विधिक सेवा प्राधिकारियों ने हाईकोर्ट में अपील को प्राथमिकता देने में उसकी मदद की और 28 जनवरी 2021 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने उसे निर्दोष घोषित किया।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मामले में प्राथमिकी तीन दिन की देरी से दर्ज की गई थी और महिला के निजी अंगों पर कोई चोट नहीं थी, जबकि महिला का कहना था कि उसको जमीन पर पटका गया था। शिकायतकर्ता की ओर से मकसद था क्योंकि दोनों पक्षों के बीच भूमि विवाद था और एफआईआर भी कथित पीड़िता के द्वारा नहीं बल्कि उसके पति और ससुर द्वारा दर्ज की गई थी।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि तथ्यों और रिकॉर्ड पर सबूतों को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि अभियुक्त को गलत तरीके से दोषी ठहराया गया है। इसलिए, ट्रायल कोर्ट के फैसले और लगाए गए आदेश को पलटा जा रहा है और अभियुक्त को बरी किया जाता है।
 

आपकी राय !

हमारे राज्य में औद्योगिक मजदूरों के हित में क्या कानून है

मौसम