अगर रिकॉर्ड में कोई त्रुटि नहीं है तो वकील मुवक्किलों को मामले को दोबारा उठाने की सलाह न दें: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Jun 27, 2022
Source: https://hindi.livelaw.in

मौजूदा मामले में सीमा अधिनियम, 1963 की धारा 5 के तहत एक आवेदन के साथ एक स‌िविल रिव्यू आवेदन दायर किया गया था, जिसमें आवेदन दाखिल करने में देरी के लिए माफी मांगी गई थी, जिसे 1900 दिनों यानी लगभग छह साल की देरी से दायर किया गया था। आवेदकों ने कहा कि वे COVID-19 दिशानिर्देशों के कारण सार्वजनिक परिवहन के अवरुद्ध होने के कारण समय के भीतर रिव्यू आवेदन दाखिल नहीं कर सके। हालांकि, कोर्ट का विचार था कि अपीलों का निपटारा सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में किया गया था, जबकि महामारी 2020-2021 में आई थी, और इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि COVID दिशानिर्देशों के कारण सार्वजनिक परिवहन अवरुद्ध ‌था, इसलिए आवेदक रिव्यू दायर करने के लिए इलाहाबाद नहीं आ सके।
इसके अलावा, जब अदालत ने रिव्यू आवेदकों के वकील से रिव्यू आवेदन दाखिल करने में देरी की व्याख्या करने के लिए कहा, जिस पर उन्होंने एक अजीब जवाब दिया कि उन्होंने अपने मुवक्किलों को सलाह दी कि वे छह साल की अवधि के बाद इस रिव्यू आवेदन को दाखिल करके एक मौका ले सकते हैं। इस पर न्यायालय ने कहा, "हमें यह जानकर दुख हो रहा है कि एक वकील को ऐसी कोई सलाह नहीं देनी चाहिए जब रिकॉर्ड में कोई त्रुटि ना हो और ना ही कोई अन्य कारण हो कि मामले को अंतिम रूप से तय किए जाने के बाद फिर से आगे क्यों बढ़ाया जाए।"
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि छह साल की देरी को माफ करने का कोई कारण नहीं था क्योंकि यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि इतनी देरी के बाद यह रिव्यू आवेदन क्यों दायर किया गया है। नतीजतन, अदालत ने कहा कि रिव्यू आवेदक ने अदालत से संपर्क करने में लापरवाही बरती है और इसलिए, अदालत ने 10,000 रुपये के टोकन जुर्माने के साथ विलंब माफी आवेदन को खारिज कर दिया। केस टाइटल- मल्हान और 17 अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य [CIVIL MISC REVIEW APPLICATION No. - 22 of 2022] साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 302
 

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