जैविक युद्ध का हिस्सा तो नहीं कोरोना: देश और दुनिया को जैविक युद्ध के खतरों से निपटने के उपायों पर सोच-विचार शुरू कर देना चाहिए

May 25, 2021
Source: https://www.jagran.com/

कोरोना वायरस से उपजी कोविड महामारी के इस काल में कई ऐसी घटनाएं और तथ्य प्रकाश में आ रहे हैं, जो राष्ट्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए उत्पन्न हो रही गंभीर चुनौतियों को रेखांकित कर रहे हैं। महामारी से बुरी तरह प्रभावित ब्राजील के राष्ट्रपति बोलसोनारो ने बिना नाम लिए चीन की ओर इशारा करते हुए कहा कि हम जो झेल रहे हैं, वह जैविक युद्ध का हिस्सा हो सकता है। ऑस्ट्रेलिया के एक समाचार पत्र ने भी चीन के सरकारी दस्तावेजों के हवाले से यह दावा किया है कि चीन कोरोना महामारी के वर्षों पहले से इस प्रकार के विषाणुओं का जैविक हथियारों के रूप में इस्तेमाल करने की संभावनाएं तलाश रहा था।

गत जनवरी में अमेरिकी विदेश विभाग ने भी वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी में चल रहे शोधकार्यों और गुप्त सैन्य गतिविधियों को लेकर संदेह जताया था। इससे पहले चीन सरकार के कामकाज को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन भी सवाल उठा चुका है। इन दिनों यह सवाल भी उठा रहा है कि भला कैसे चीन में कोरोना वायरस के नए वैरिएंट पैदा नहीं हो रहे, जबकि विश्व के बाकी बड़े देश इस महामारी की दूसरी-तीसरी लहर से जूझ रहे हैं।

विश्व के अग्रणी वैज्ञानिकों ने की कोरोना वायरस के फैलने के हालात की जांच की मांग 

विश्व के 20 अग्रणी वैज्ञानिकों ने साइंस पत्रिका में लेख लिखकर कोरोना वायरस के फैलने के हालात की गहराई से जांच की मांग की है। इस सबसे भी भयावह है चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर भांति-भांति के जैविक हथियारों के विकास और उपयोग को लेकर पिछले कुछ वर्षों में पनपी सोच, जिसका एक उदाहरण 2017 में चीनी सेना की नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी के एक दस्तावेज में मिलता है। इसमें न सिर्फ जैविक हथियारों के उपयोग की चर्चा की गई थी, बल्कि ऐसे जैविक हथियारों के विकास की बात भी की गई थी, जो अनुवांशिक या नस्लीय आधार पर जनसमूहों और राष्ट्रीयताओं को निशाना बना सकें।

कहीं देर-सवेर महामारी उस देश में ही न फैल जाए, जिसने विषाणुओं को छोड़ा हो

दरअसल पिछली सदी के अंतिम दशक से ऐसे जैविक हथियारों को लेकर कयास लगाए जाते रहे हैं, जो इस प्रकार के विषाणुओं और जीवाणुओं के रूप में होें, जो एक जीन समूह से आने वाले लोगों पर असर करें। ऐसी स्थिति में महामारी के विषाणु एक खास भूभाग तक सीमित रहेंगे, जहां खास अनुवांशिक शृंंखला से आने वाले लोग रहते हों। यह जैविक युद्ध की परिकल्पना को और भयावह इसलिए बनाता है, क्योंकि यह न सिर्फ ऐसे हथियार रखने वाले देश को किसी खास देश को जैविक हथियार का निशाना बनाने की क्षमता प्रदान करता है, बल्कि जैविक हथियारों के इस्तेमाल से जुड़ी उस हिचक को भी दूर करता है कि कहीं देर-सवेर महामारी उस देश में ही न फैल जाए, जिसने विषाणुओं को छोड़ा हो।

जैविक हथियारों से निपटने के लिए तैयारी करनी चाहिए

यह आश्चर्यजनक ही है कि कोरोना वायरस से उपजी कोविड महामारी के दौर में भी अभी तक भारत में इन चुनौतियों को लेकर कोई खास चर्चा होती नहीं दिख रही, पर पश्चिमी देशों में इस खतरे को लेकर सजगता काफी समय से है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन वर्ष 2017 में ही अमेरिकी शोध संस्थानों द्वारा रूस के विभिन्न इलाकों में रह रहे लोगों के जैव सैंपल इकट्ठा किए जाने के तथाकथित प्रयासों पर आपत्ति जता चुके हैं। वैसे रूसी सरकार वर्ष 2007 में ही मानव ऊतकों के देश से बाहर जाने पर इसलिए प्रतिबंध लगा चुकी है कि कहीं उनका इस्तेमाल रूसी नागरिकों को निशाना बनाने के लिए जैविक हथियार बनाने में न हो। कोविड महामारी के लगभग एक वर्ष पहले आई कैंब्रिज विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट ने भी विश्व को जैविक हथियारों से उत्पन्न हो सकने वाले खतरे को लेकर चेताया था। उसके अनुसार दुनिया भर की सरकारों को किसी खास जिनोम प्रोफाइल वाले जनसमूहों को निशाना बनाने की क्षमता रखने वाले जैविक हथियारों से निपटने के लिए तैयारी करनी चाहिए।

दोहरे इस्तेमाल वाली जैविक तकनीकों के नियमन के लिए अंतरराष्ट्रीय तंत्र नहीं है

वास्तव में बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में विकास नए-नए जैविक खतरों को भी जन्म दे रहा है। उदाहरण के तौर पर 2016 में अमेरिकी रक्षा अनुसंधान एजेंसी ड्रॉपा ने इंसेक्ट एलाइज नामक कार्यक्रम शुरू किया, जिसके अंतर्गत कीटों द्वारा फसलों में ऐसे विषाणुओं को छोड़ा जा सकता है, जो पौधों की जीन संरचना में फेरबदल कर उन्हेंं बीमारियों से लड़ने के काबिल बना दें। देखा जाए तो इस तकनीक की मदद से कीटों के जरिये ऐसे विषाणुओं को भी छोड़ा जा सकता है, जो बड़े पैमाने पर फसलों को बर्बाद कर दें। इसके जरिये एक देश दूसरे देश में कृत्रिम अकाल जैसी स्थिति उत्पन्न कर सकता है या फिर प्रतिद्वंद्वी देश की फसलों को कम गुणवत्ता वाला बना सकता है। चिंता की बात यह है कि ऐसे दोहरे इस्तेमाल वाली जैविक तकनीकों के नियमन के लिए फिलहाल कोई अंतरराष्ट्रीय तंत्र नहीं है।

एक ओर सैन्य और दूसरी ओर जैविक हमला: भारत को सुरक्षा के प्रबंध करने चाहिए

विश्व का ध्यान परमाणु युद्ध के खतरे पर इतना अधिक केंद्रित रहा है कि जैविक युद्ध के खतरों से निपटने के लिए बहुत कम कदम उठाए गए। भारत के ही परमाणु सिद्धांत को ले लीजिए, जो जैविक हमले की स्थिति में जवाबी परमाणु हमले की बात करता है, पर ऐसी स्थिति में क्या होगा जब यही पता न चल पाए कि जैविक हमला किया किसने है और किया भी है या नहीं, जैसा कि हम वर्तमान में देख रहे हैं। क्या जैविक हमले का जवाब भारत ऐसे जैविक हमले से देने की स्थिति में है, जो सिर्फ हमला करने वाले देश को निशाना बनाए और विषाणुओं के समूचे विश्व और वापस भारत में ही फैलने का खतरा न हो? दोहरे मोर्चे से युद्ध की स्थिति में अगर भारत पर एक ओर से सैन्य और दूसरी ओर से जैविक हमला हो तो हम क्या करेंगे? वर्तमान हालात में हमें इन मुद्दों पर विचार कर अपनी सुरक्षा के प्रबंध करने चाहिए।

 

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