जब अपराध दूसरों पर भी प्रभाव डालने में सक्षम हों तो अदालतों को शिकायतकर्ता और आरोपी में समझौते के आधार पर आपराधिक कार्यवाही रद्द करने में धीमा होना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

Sep 09, 2022
Source: https://hindi.livelaw.in/

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतों को समझौते के आधार पर आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में धीमा होना चाहिए, जब अपराध न केवल शिकायतकर्ता और आरोपी पर बल्कि दूसरों पर भी प्रभाव डालने में सक्षम हों। जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने कहा, आधिकारिक पद के दुरुपयोग और भ्रष्ट प्रथाओं को अपनाने से जुड़े मामलों को विशिष्ट प्रदर्शन के वाद की तरह नहीं माना जा सकता है, जहां भुगतान किए गए धन की वापसी समझौते धारक को भी संतुष्ट कर सकती है।

पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द करते हुए इस प्रकार कहा, जिसमें कैश फॉर जॉब यानी नौकरी के लिए नकदी घोटाले से उत्पन्न एक आपराधिक शिकायत को इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कि सभी पीड़ितों ने आरोपी के साथ अपने दावों से समझौता किया है। प्राथमिकी में सेंथिल बालाजी (तत्कालीन परिवहन मंत्री), अशोक कुमार (मंत्री के भाई), शनमुगम (मंत्री के निजी सहायक) और राज कुमार नाम के चार लोगों को आरोपी बनाया गया था। इन आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 406, 409, 420, 506 (1) के साथ पठित धारा 34 के तहत अंतिम रिपोर्ट दर्ज की गई थी। इसके बाद शनमुगम ने हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की जिसे वास्तविक शिकायतकर्ता के अरुलमनी द्वारा आरोपी के समर्थन में एक हलफनामा दायर करने और अंतिम रिपोर्ट को रद्द करने की प्रार्थना करने के बाद अनुमति दी गई।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अपीलों में, उठाए गए मुद्दे (i) अपीलकर्ताओं के लोकस से संबंधित थे; (ii) एक ओर वास्तविक शिकायतकर्ता और 13 नामित पीड़ितों और दूसरी ओर 16 अभियुक्तों के बीच हुए समझौते का प्रभाव; और (iii) पीसी अधिनियम के तहत अपराध की कार्यवाही का चार्जशीट में शामिल न होना। लोकस के मुद्दे पर, पीठ ने कहा कि इन अपीलों में से एक में अपीलकर्ता पीड़ित है, क्योंकि वह कथित भ्रष्ट प्रथाओं के कारण चयनित नहीं हो सका। इसलिए, अपीलकर्ताओं के लोकस के संबंध में दलील को खारिज किया जा रहा है।
कोर्ट को धीरे चलना होगा दूसरे मुद्दे यानी समझौता के प्रभाव पर, पीठ ने विभिन्न निर्णयों का उल्लेख किया और कहा: "इस प्रकार यह कानून की परेड से स्पष्ट है कि अदालत को सीआरपीसी की धारा 482 या संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के मामले में एक समझौते के आधार पर अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए भी धीमी गति से चलना होगा, जब अपराध न केवल शिकायतकर्ता और आरोपी पर बल्कि दूसरे पक्षों पर भी प्रभाव डालने में सक्षम हैं। जैसा कि इस मामले में दायर अंतिम रिपोर्ट और आईओ द्वारा दायर जवाबी हलफनामे से देखा गया है, जिन्होंने परिवहन निगम में रोजगार सुरक्षित करने के लिए भ्रष्ट आचरण अपनाया है, दो श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं, (i) जिन्होंने पैसे का भुगतान किया और नियुक्ति के आदेश प्राप्त किए; और (ii) वे जिन्होंने पैसे का भुगतान किया लेकिन रोजगार हासिल करने में विफल रहे। यदि दूसरी श्रेणी से संबंधित व्यक्तियों को अनुमति दी जाती है कि वो धन वापस लेकर अपने विवाद का निपटारा करें, वही पहली श्रेणी के व्यक्तियों की नियुक्ति पर अनुमोदन की मुहर लगाएगा।इसलिए, हाईकोर्ट को समझौते के आधार पर आपराधिक कार्रवाई को रद्द नहीं करना चाहिए था।" भ्रष्टाचार बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ अपराध है अदालत ने कहा कि एक लोक सेवक द्वारा भ्रष्टाचार राज्य और बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ एक अपराध है। अदालत ने कहा कि अदालत आधिकारिक पद के दुरुपयोग और भ्रष्ट प्रथाओं को अपनाने से संबंधित मामलों से निपट नहीं सकती है, जैसे विशिष्ट प्रदर्शन के लिए वाद, जहां भुगतान किए गए धन की वापसी भी समझौते धारक को संतुष्ट कर सकती है। लड़ने को तैयार लेकिन घाव से डरते हैं पी सी अधिनियम के तहत अपराधों को अंतिम रिपोर्ट में शामिल न करने के संबंध में अदालत ने कहा: हम यह कहने के लिए विवश हैं कि आपराधिक कानून में एक नौसिखिया भी पी सी अधिनियम के तहत अपराधों को अंतिम रिपोर्ट से बाहर नहीं छोड़ता। आईओ का प्रयास एक का प्रतीत होता है, " जो लड़ने के लिए तैयार है लेकिन घाव से डरता है" (अलेक्जेंडर पोप ने "एपिस्टल टू डॉ अर्बुथनॉट" में जो लिखा है उसके विपरीत) अपील की अनुमति देते हुए, पीठ ने इस प्रकार आपराधिक शिकायत बहाल कर दी और निम्नलिखित निर्देश जारी किए: "आईओ अब पूर्ववर्ती पैराग्राफ में की गई टिप्पणियों के आधार पर संहिता की धारा 173(8) के तहत आगे की रिपोर्ट दाखिल करने के लिए आगे बढ़ेगा। इसके अतिरिक्त/वैकल्पिक रूप से, यदि राज्य/आईओ की ओर से कोई अनिच्छा है तो विशेष न्यायालय जिसके समक्ष सीसी लंबित है, सीआरपीसी की धारा 216 के तहत शक्ति का प्रयोग करेगा। यदि दो अन्य मामले जहां पीसी अधिनियम के तहत अपराध शामिल हैं, हाईकोर्ट द्वारा पारित स्टे के आदेश के तहत हैं, तो राज्य को रोक को हटाने के लिए उचित कदम उठाना चाहिए। उन दो मामलों से निपटने वाली अदालत को भी पीसी अधिनियम के तहत अभियोजन को रोकने के विनाशकारी प्रभाव को ध्यान में रखना चाहिए।" मामले का विवरण पी धर्मराज बनाम शनमुगम | 2022 लाइव लॉ (SC) 749 | 8 सितंबर 2022 | सीआरए 1514/ 2022 | जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम वकील: सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ भटनागर, सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन, सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी, सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी, सीनियर एडवोकेट सी ए सुंदरम, सीनियर एडवोकेट मनन कुमार मिश्रा, सीनियर एडवोकेट एस प्रभाकरन, एडवोकेट प्रशांत भूषण हेडनोट्स दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 482 - पक्षकारों के बीच हुए समझौते के आधार पर आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के मामले में सीआरपीसी की धारा 482 या अनुच्छेद 226 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए भी अदालत को धीमी गति से चलना पड़ता है, जब अपराध न केवल शिकायतकर्ता और आरोपी पर बल्कि दूसरों पर भी प्रभाव डालने में सक्षम होते हैं । (पैरा 42) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 482 - भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 - लोक सेवक द्वारा भ्रष्टाचार राज्य और समाज के खिलाफ बड़े पैमाने पर अपराध है। न्यायालय आधिकारिक पद के दुरुपयोग और भ्रष्ट प्रथाओं को अपनाने से संबंधित मामलों से इस तरह नहीं निपट सकता है, जैसे विशिष्ट प्रदर्शन के लिए वाद, जहां भुगतान किए गए धन की वापसी भी अनुबंध धारक को संतुष्ट कर सकती है। (पैरा 44) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 2(डब्लू ए), 372 - पीड़ितों को अपील का अधिकार - जनता, जो इन सेवाओं की प्राप्तकर्ता है, वो भी अप्रत्यक्ष रूप से शिकार बनती है, क्योंकि ऐसी नियुक्तियों के परिणाम नियुक्तियों द्वारा किए गए कार्य में देर-सबेर परिलक्षित होते हैं - इनमें से एक अपील में अपीलकर्ता पीड़ित है, क्योंकि कथित भ्रष्ट आचरण के कारण उसका चयन नहीं हो सका। अत: अपीलार्थी के लोकस से संबंधित दलील को खारिज किया जाना चाहिए।
 

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