व्यावसायिक उद्देश्य के लिए बैंक की सेवाएं लेने वाला व्यक्ति उपभोक्ता नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Feb 24, 2022
Source: https://www.jagran.com

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता और बैंक के बीच संबंध विशुद्ध रूप से वाणिज्यिक हैं। इस तरह यह लेनदेन स्पष्ट रूप से व्यावसायिक उद्देश्य के दायरे में आएगा। एनसीडीआरसी ने अपने आदेश में कहा था कि शिकायतकर्ता उपभोक्ता नहीं है।

नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसा व्यक्ति जो व्यावसायिक उद्देश्य के लिए बैंक की सेवाओं का प्रयोग करता है तो वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपभोक्ता नहीं है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि उपभोक्ता के दायरे में आने के लिए एक व्यक्ति को यह स्थापित करना होगा कि बैंक की सेवाओं का इस्तेमाल केवल स्वरोजगार के माध्यम से आजीविका कमाने के लिए किया गया था। कोर्ट ने यह फैसला श्रीकांत जी मंत्री घर की याचिका पर सुनाया है। उन्होंने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी। एनसीडीआरसी ने अपने आदेश में कहा था कि शिकायतकर्ता उपभोक्ता नहीं है।

स्टाक ब्रोकर याचिकाकर्ता ने पंजाब नेशनल बैंक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसने उसे ओवरड्राफ्ट की सुविधा दी थी। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि इसका कोई स्पष्ट फार्मूला नहीं हो सकता है और इस तरह का निर्धारण प्रत्येक मामले में रखे गए सबूतों के आधार पर करना होगा। पीठ ने कहा, 'जब कोई व्यक्ति उक्त अधिनियम में परिभाषित 'उपभोक्ता' शब्द के दायरे में आने के लिए व्यावसायिक उद्देश्य से सेवा का इस्तेमाल करता है, तब उसे यह स्थापित करना होगा कि सेवाओं का इस्तेमाल केवल स्वरोजगार के माध्यम से आजीविका कमाने के मकसद से किया गया था।'

शीर्ष अदालत ने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2002 में स्पष्ट है कि वाणिज्यिक लेनदेन को उक्त अधिनियम के दायरे से बाहर रखना विधायी मंशा है। अदालत ने कहा कि अधिनियम का उद्देश्य उस व्यक्ति को भी लाभ देना है जो ऐसे वाणिज्यिक लेनदेन का हिस्सा तब बनता है, जब वह इन वस्तुओं और सेवाओं का इस्तेमाल केवल स्वरोजगार के माध्यम से अपनी आजीविका कमाने लिए करता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता और बैंक के बीच संबंध विशुद्ध रूप से वाणिज्यिक हैं। इस तरह यह लेनदेन स्पष्ट रूप से 'व्यावसायिक उद्देश्य' के दायरे में आएगा। पीठ ने स्पष्ट किया कि मामले में यह नहीं कहा जा सकता है कि सेवाओं का इस्तेमाल 'खासतौर पर स्वरोजगार के माध्यम से आजीविका कमाने के मकसद से' किया गया था।

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