बॉम्बे हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को तरुण तेजपाल केस के फैसले में पीड़िता की पहचान के संदर्भों को संशोधित करने का निर्देश दिया

May 28, 2021
Source: https://hindi.livelaw.in/

बॉम्बे हाईकोर्ट की अवकाश पीठ (गोवा) ने तरुण तेजपाल यौन उत्पीड़न मामले की सुनवाई कर रहे जिला एवं सत्र न्यायालय को अपनी वेबसाइट पर बरी करने के आदेश को अपलोड करते समय पीड़िता की पहचान के संदर्भों को संशोधित करने का निर्देश दिया है।

न्यायमूर्ति एससी गुप्ते की एकल पीठ ने राज्य को 21 मई के बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील के आधार को संशोधित करने के लिए 3 दिन का समय दिया है, जिसकी कॉपी 25 मई को उपलब्ध कराई गई थी।

बेंच ने मामले को स्थगित करते हुए कहा कि, "सॉलिसिटर जनरल ने आदेश को रिकॉर्ड पर रखने और अपील के आधार में संशोधन करने के लिए तीन दिन का समय दिया जाता है। इसी के अनुसार हम राज्य को अपील में संशोधन करने का निर्देश देते हैं। अब सुनवाई 2 जून 2021 को होगी।" राज्य सरकार ने मंगलवार को गोवा के जिला और सत्र न्यायालय, मापुसा द्वारा तेजपाल को सभी आरोपों से बरी किए जाने के खिलाफ अपील दायर की थी। तरुण तेजपाल पर 7 और 8 नवंबर 2013 को समाचार पत्रिका के आधिकारिक कार्यक्रम - THiNK 13 उत्सव के दौरान गोवा के बम्बोलिम में स्थित ग्रैंड हयात होटल के लिफ्ट के अंदर महिला की इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती करने का आरोप लगाया गया था।

विशेष न्यायाधीश क्षमा जोशी ने 21 मई को तेजपाल को बरी कर दिया था। उन्होंने कहा था कि रिकॉर्ड पर अन्य सबूतों पर विचार करते हुए आरोपी को बेनिफिट ऑफ डाउट (संदेह का लाभ) दिया जाता है क्योंकि अभियोजन पक्ष के पास आरोपों का समर्थन करने वाला कोई सबूत नहीं है और अभियोजन पक्ष का बयान सुधार, विरोधाभास, चूक और संस्करणों के परिवर्तन को भी दर्शाता है, जो आत्मविश्वास को प्रेरित नहीं करता है। एसजीआई तुषार मेहता ने इस पर आपत्ति जताते हुए प्रस्तुत किया कि इस फैसले के अनुसार यौन उत्पीड़न की शिकार किसी भी पीड़ता को अपना आघात दिखाना जरूरी है और जब तक वह ऐसा नहीं करती उसकी गवाही पर विश्वास नहीं किया जाता है।

एसजीआई मेहता ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि जिस तरह से ट्रायल कोर्ट ने कानूनी सलाह लेने में पीड़िता की कार्रवाई की व्याख्या की है। एसजीआई मेहता ने कहा कि, "यह लड़की जो अपने पिता के मित्र द्वारा यौन शोषण की शिकार है, ने एक प्रख्यात वकील इंदिरा जयसिंह से संपर्क किया, जिनकी क्षमता, योग्यता और ईमानदारी पर कोई भी सवाल नहीं उठा सकता। उसने सही सलाह ली क्योंकि आपको एक वकील के पास जाने की जरूरत है जिस पर आप भरोसा कर सकते हैं। दुर्भाग्य से हमारे भारतीय न्यायशास्त्र में पहली बार अदालत ने रिकॉर्ड किया है कि घटनाओं के सिद्धांत की पूरी संभावना है? इस प्रतिष्ठित वकील सिद्धांत के पक्ष में कैसे हो सकते हैं?

कोर्ट ने इस मौके पर पूछा कि नियमित अपील दायर क्यों नहीं की गई। जस्टिस गुप्ते ने कहा कि यह एक नियमित अदालत के सामने क्यों नहीं जा सकता? मेहता ने इस पर जवाब दिया कि ऐसे मामलों में सिस्टम कानूनी न्यायशास्त्र के अलावा संवेदनशीलता की अपेक्षा करता है। इस मामले में दोनों की कमी है। इसलिए इसे जल्द से जल्द उच्च न्यायालय द्वारा लिया गया है। पीठ से मेहता ने आगे कहा कि फैसले से पीड़िता की पहचान का खुलासा होता है और उसके पति का भी खुलासा होता है जो आईपीसी की धारा 228 ए के तहत निषिद्ध है। कोर्ट ने कहा कि, "यह सत्र न्यायाधीश के आदेश से प्रतीत होता है, जो इस अदालत के लिए उपलब्ध है (अभी तक ट्रायल कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया है) में पीड़िता के पति और उसकी ईमेल आईडी का संदर्भ है।" अपराध के शिकार की पहचान के प्रकटीकरण के खिलाफ कानून को ध्यान में रखते हुए इस पैरा को संशोधित करना न्याय के हित में है। हम निचली अदालत को फैसले की कॉपी अपलोड करते समय से पीड़िता की पहचान को संशोधित करने का निर्देश देते हैं। राज्य के वकील ने कहा कि एक पैराग्राफ में पीड़िता की मां के नाम का जिक्र है, इसे भी संशोधित भी किया जाना चाहिए। पृष्ठभूमि राज्य सरकार ने मंगलवार को गोवा के जिला और सत्र न्यायालय, मापुसा द्वारा तेजपाल को सभी आरोपों से बरी किए जाने के खिलाफ अपील दायर की थी। तरुण तेजपाल पर 7 और 8 नवंबर 2013 को समाचार पत्रिका के आधिकारिक कार्यक्रम - THiNK 13 उत्सव के दौरान गोवा के बम्बोलिम में स्थित ग्रैंड हयात होटल के लिफ्ट के अंदर महिला की इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती करने का आरोप लगाया गया था। हालांकि 527 पन्नों की फैसले की प्रति मंगलवार को ही उपलब्ध कराई गई थी। तेजपाल के खिलाफ आइपीसी की धारा 341 (दोषपूर्ण अवरोध), 342 (दोषपूर्ण परिरोध), 354 ए और बी (महिला पर यौन प्रवृत्ति की टिप्पणियां और उस पर आपराधिक बल का प्रयोग करना) तथा 376 (रेप) के k और f सब सेक्शन के तहत मामला दर्ज किया गया था।

 

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