पुलिस का अभियुक्त के पूर्ण आपराधिक इतिहास की जानकारी कोर्ट को न दे पाना दुराचार या न्याय में हस्तक्षेप के बराबर? एमपी हाईकोर्ट ने डीजीपी से जवाब मांगा

Jul 02, 2022
Source: https://hindi.livelaw.in

जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने कहा कि अदालत अक्सर यह देख रही है कि पुलिस मुख्यालय द्वारा जारी परिपत्र के बावजूद पुलिस अधिकारी पूरी आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं भेज रहे हैं।

कोर्ट ने कहा,

वर्तमान मामले में, पुलिस अधिकारियों ने आवेदक के आपराधिक इतिहास को नहीं भेजा, इसलिए, यह स्पष्ट है कि यह आवेदक को यह कहकर जमानत प्राप्त करने में सुविधा प्रदान करेगा कि उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। क्या पुलिस अधिकारियों के इस आचरण को एक छोटी सी लापरवाही कहा जा सकता है या यह आपराधिक न्याय व्यवस्था में हस्तक्षेप है?

न्यायालय धारा 307, 149, 148, 147, 506, 294, 201 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आवेदक आरोपी द्वारा दायर एक जमानत आवेदन पर विचार कर रहा था। अदालत ने पहले की सुनवाई में कहा था कि भले ही केस डायरी में आवेदक की ओर से किसी भी आपराधिक इतिहास को नहीं दर्शाया गया हो, निचली अदालत के आदेश में उसकी जमानत याचिका को खारिज करने का अन्यथा उल्लेख किया गया था।

नतीजतन, अदालत ने पुलिस अधीक्षक, जिला भिंड से जवाब मांगा कि संबंधित एसएचओ द्वारा आवेदक के आपराधिक इतिहास के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी को क्यों रोक दिया गया। बाद में हुई सुनवाई में एसपी द्वारा कोर्ट को सूचित किया गया कि मामले में संबंधित एसएचओ के साथ-साथ जांच अधिकारी को कदाचार का दोषी पाया गया और उन पर क्रमशः 2,000 और 5,000, रुपये का जुर्माना लगाया गया।

कोर्ट ने कहा कि चूंकि समस्या विभिन्न पुलिस थानों से उत्पन्न हो रही है, इसलिए डीजीपी को मौजूदा स्थिति के बारे

चूंकि यह स्थिति विभिन्न पुलिस थानों में मौजूद है, इसलिए, मध्य प्रदेश राज्य के पुलिस महानिदेशक को एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया जाता है कि क्या आवेदक के आपराधिक इतिहास की जानकारी न देना एक छोटा कदाचार है या यह आपराधिक न्याय वितरण प्रणाली में हस्तक्षेप करने के समान है। एक सप्ताह के भीतर शपथ पत्र दाखिल किया जाए।

मामले की अगली सुनवाई 08.07.2022 को होगी।

में अपना जवाब दाखिल करना चाहिए-

 

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