लोक अदालत के पास मैरिट पर मामले पर फैसला करने का कोई अधिकार नहींः सुप्रीम कोर्ट

Oct 08, 2021
Source: https://hindi.livelaw.in/

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक बार जब यह पता चल जाता है कि पार्टियों के बीच समाधान या समझौता नहीं हो सका है तो लोक अदालत के पास मामले को मैरिट के आधार पर तय करने का कोई अधिकार नहीं है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने कहा कि लोक अदालत का अधिकार क्षेत्र विवाद के पक्षों के बीच समाधान या समझौता करवाना है। अदालत ने कहा कि एक बार जब समाधान/समझौता विफल हो जाता है, तो लोक अदालत को मामला उस अदालत को वापस भेजना होगा जहां से संदर्भ प्राप्त हुआ था।

इस मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के समक्ष दायर एक रिट याचिका को हाईकोर्ट द्वारा आयोजित लोक अदालत को संदर्भित किया गया था। लोक अदालत ने रिट याचिका की मैरिट पर विचार किया और उसे खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने बाद में मुख्य रिट याचिका को बहाल करने के लिए दायर बहाली/पुन-स्थापन आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि लोक अदालत में पारित आदेश लोक अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर था। अपील में सर्वाेच्च न्यायालय के समक्ष उठाया गया मुद्दा यह था कि क्या हाईकोर्ट द्वारा आयोजित लोक अदालत में, लोक अदालत के सदस्यों के लिए रिट याचिका की मैरिट पर विचार करना और पक्षों के बीच हुए समझौते की अनुपस्थिति में उसे मैरिट के आधार पर खारिज करना संभव था?

इसका उत्तर देने के लिए, पीठ ने विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 19 और 20 का उल्लेख किया और निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान दियाः 1-धारा 19 की उप-धारा (5) के अनुसार, एक लोक अदालत के पास निम्न में विवाद के पक्षों के बीच समाधान या समझौता निर्धारित करने और निर्णय करने का अधिकार क्षेत्र होगा-(1) पहले से लंबित कोई मामला; (2)कोई भी मामला जो अधिकार क्षेत्र में आता है, और उसे किसी भी ऐसे न्यायालय के समक्ष नहीं लाया गया है, जिसके लिए लोक अदालत का आयोजन किया गया है। धारा 20 की उप-धारा (1) के अनुसार,जहां धारा 19 की उप-धारा (5) के खंड (i) में संदर्भित किसी भी मामले में- (i) (ए) पार्टी उसके लिए सहमत हैं; या (i) (बी) उसका कोई एक पक्ष मामले को निपटान के लिए लोक अदालत में भेजने के लिए अदालत में एक आवेदन करता है और यदि ऐसी अदालत प्रथम दृष्टया संतुष्ट है कि इस तरह के निपटान की संभावना है या (ii) अदालत संतुष्ट है कि मामला लोक अदालत द्वारा संज्ञान लेने के लिए उपयुक्त है, अदालत मामले को लोक अदालत को संदर्भित करेगी। यह आगे प्रावधान करता है कि ऐसी अदालत द्वारा किसी भी मामले को पक्षकारों को सुनवाई का उचित अवसर दिए जाने के अलावा, खंड (i) या खंड (ii) के उप-खंड (बी) के तहत लोक अदालत को नहीं भेजा जाएगा।

2-धारा 20 की उप-धारा (3) के अनुसार जहां कोई मामला उप-धारा (1) के तहत लोक अदालत को भेजा जाता है या जहां उप-धारा (2) के तहत इसका संदर्भ दिया जाता है, लोक अदालत मामले के निपटान के लिए आगे बढ़ेगी और पक्षों के बीच समाधान या समझौता करवाएगी। धारा 20 की उप-धारा (5) में आगे प्रावधान है कि जहां लोक अदालत द्वारा इस आधार पर कोई निर्णय नहीं दिया जाता है कि पक्षों के बीच कोई समाधान या समझौता नहीं हो पाया है, मामले का रिकॉर्ड उस अदालत को वापस कर दिया जाएगा,जहां से उप-धारा (1) के तहत कानून के अनुसार निपटान के लिए संदर्भ प्राप्त हुआ था।

उपरोक्त और पंजाब राज्य व अन्य बनाम गणपत राज (2006) 8 एससीसी 364 में दिए गए निर्णय को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा किः ''7. इस प्रकार, विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के पूर्वाेक्त प्रावधानों का एक निष्पक्ष पठन यह स्पष्ट करता है कि लोक अदालत का अधिकार क्षेत्र विवाद के पक्षों के बीच समाधान या समझौता करवाने और उस पर निर्णय करने का होता है और एक बार जब उपरोक्त समाधान/समझौता विफल हो जाता है और पार्टियों के बीच कोई समाधान या समझौता नहीं हो पाता है, तो लोक अदालत को मामला उस न्यायालय को वापस करना होगा जहां से कानून के अनुसार निपटान के लिए संदर्भ प्राप्त हुआ है और किसी भी मामले में, जब यह पाया जाता है कि पार्टियों के बीच समाधान या समझौता नहीं हो पाया है तो लोक अदालत के पास इस मामले को मैरिट के आधार पर तय करने का कोई अधिकार नहीं है।'' अदालत ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि एक बार मामले को सहमति से लोक अदालत के समक्ष रखा जाता है तो उसके बाद पूरा मामला लोक अदालत के समक्ष है और इसलिए, लोक अदालत का गुण-दोष के आधार पर मामले का निस्तारण करना न्यायोचित है। अदालत ने लोक अदालत द्वारा पारित आदेश को रद्द करते हुए कहा कि, ''9 ... लोक अदालत के समक्ष मामले को रखने की सहमति पार्टियों के बीच एक समाधान और या समझौते पर पहुंचने के लिए थी, न कि मामले के गुण-दोष के आधार पर लोक अदालत द्वारा निर्णय लेने के लिए थी। एक बार जब धारा 20 की उप-धारा (5) के अनुसार लोक अदालत के समक्ष कोई समझौता या समाधान नहीं होता है,तो मामले को उस न्यायालय को वापस करना होगा जहां से लोक अदालत को भेजा गया था ताकि संबंधित अदालत द्वारा मामले की मैरिट के आधार पर निपटाया जा सके।''

 

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