दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय को आरटीआई के तहत निर्धारित फीस के अनुसार उत्तर-पुस्तिकाओं की प्रमाणित प्रतियां प्रदान करने का निर्देश देने की मांग वाली छात्रों की याचिका पर नोटिस जारी किया

Nov 03, 2021
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दिल्ली हाईकोर्ट ने कानून के अंतिम वर्ष के दो छात्रों द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया है, जिसमें गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय को छात्रों को आरटीआई नियम, 2012 के तहत निर्धारित फीस के अनुसार उत्तर-पुस्तिकाओं की प्रमाणित प्रतियां प्रदान करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह ने विश्वविद्यालय से जवाब मांगा और मामले को 23 दिसंबर को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट करते हुए जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।एडवोकेट पारस जैन के माध्यम से आकृति अग्रवाल और लक्ष्य पुरोहित द्वारा दायर याचिका में आईसीएसआई बनाम पारस जैन नामक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुपालन में निर्देश देने की मांग की गई है, जिसमें कहा गया था कि यदि कोई उम्मीदवार आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी चाहता है, तो वह निर्धारित फीस का भुगतान करके नियमों के तहत जानकारी मांग सकता है। याचिकाकर्ता विश्वविद्यालय द्वारा दिनांक 11.06.2020 को जारी एक परिपत्र से व्यथित हैं, जिसमें आरटीआई अधिनियम, 2005 के तहत मूल्यांकन की गई उत्तर पुस्तिकाओं की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करने के लिए आवेदन करते समय छात्रों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया निर्धारित की गई है।

याचिका में कहा गया है,

"इस परिपत्र के तहत, यदि कोई उम्मीदवार आरटीआई अधिनियम के तहत उत्तर-पुस्तिका की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करने के लिए आवेदन करता है, तो प्रतिवादी द्वारा निर्धारित शुल्क 1,500 रुपये है, जो इसके आंतरिक नियमों/विनियमों के अनुसार है।" इसके अलावा, याचिका में कहा गया है कि आरटीआई नियम, 2012 के अनुसार उत्तर-पुस्तिका की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करने के लिए शुल्क चार्ज करके नियम का पालन करने के लिए याचिकाकर्ताओं द्वारा विश्वविद्यालय के कुलपति, रजिस्ट्रार और जन सूचना अधिकारी को एक अभ्यावेदन भेजा गया था।

याचिका में लिखा है,

"उपरोक्त अभ्यावेदन के जवाब में, प्रतिवादी ने पत्र दिनांक 29.09.2020 के माध्यम से याचिकाकर्ताओं को जवाब दिया कि यह केवल अपने आंतरिक नियमों / विनियमों के अनुसार 1,500 रुपए के अनिवार्य शुल्क के भुगतान पर ही उत्तर पुस्तिकाओं की जानकारी प्रदान करेगा, भले ही आवेदन आरटीआई अधिनियम, 2005 के तहत किया गया हो।" याचिकाकर्ताओं के अनुसार, यह कहा गया है कि विश्वविद्यालय एक शैक्षणिक संस्थान और एक सार्वजनिक प्राधिकरण होने के कारण स्पष्ट रूप से कानून के शासन का पालन करने से इनकार कर रहा है और आरटीआई अधिनियम, 2005 के तहत 60,000 से अधिक छात्रों को जानकारी प्राप्त करने से वंचित कर रहा है। अब इस मामले पर 23 दिसंबर को विचार किया जाएगा।

 

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