अगर कोर्ट नाराजी याचिका से सहमत नहीं है तो इसे शिकायत माना जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि न्यायालय नाराजी याचिका (Protest Petition) से सहमत नहीं है तो न्यायपूर्ण और उचित कार्यवाही यह हो सकती है कि कोर्ट इस आवेदन को एक शिकायत याचिका के रूप में पढ़े।
जस्टिस विकास कुंवर श्रीवास्तव की खंडपीठ ने पुनरीक्षण न्यायालय की क्षमता में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश / सुल्तानपुर (यूपी) के फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा पारित 2006 के आदेश के खिलाफ भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
संक्षेप में तथ्य याचिकाकर्ता सुल्तानपुर में टेंट और शामियाना का कारोबार करता था। 2005 में उनके टेंट हाउस के पिछले हिस्से के ताले और दरवाजे तोड़कर चोर लगभग 1,00,000 रुपए कीमत का शामीयाना चुरा ले गए। पहले तो स्थानीय पुलिस ने मामले में एफआईआर दर्ज नहीं की, हालांकि 11 दिन बाद पुलिस ने आईपीसी की धारा 379 के तहत एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी।
अंततः 2006 में अदालत के समक्ष क्लोज़र रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिसमें कहा गया कि चोरी की घटना झूठी थी और बीमा राशि का दावा करने के दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से दर्ज की गई थी। अदालत ने उक्त क्लोज़र रिपोर्ट स्वीकार कर ली, इस तथ्य के बावजूद कि उक्त रिपोर्ट के खिलाफ एक नाराजी याचिका थी और अदालत आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए सीआरपीसी की धारा 182 के तहत शिकायतकर्ता (याचिकाकर्ता) को तलब करने के लिए भी आगे बढ़ गई।
न्यायालय की टिप्पणियां
शुरुआत में कोर्ट ने कहा कि दोनों निचली अदालतों ने पंजीकृत आपराधिक मामले में पुलिस रिपोर्ट प्राप्त करने की प्रक्रिया के अनुसार कार्य करने में गलती की है। इसके अलावा, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि मजिस्ट्रेट की अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि जांच अधिकारी ने देरी करके गलती की थी, इसलिए चोरी का माल बरामद नहीं किया जा सका।
अदालत ने कहा,
" ...इस तरह के निष्कर्ष का परिणाम यह हो सकता है कि जिस पुलिस ने याचिकाकर्ता की दुकान में चोरी के बारे में एफआईआर के झूठ के बारे में अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, वह गलत थी। नाराजी याचिका को शिकायत के रूप में माना जा सकता था। पुलिस की यह अटकल कि कि बीमा राशि का झूठा दावा करने के लिए चोरी की सूचना दर्ज की गई होगी, यह मानने के लिए एफआईआर झूठी दर्ज हो सकती है, मजिस्ट्रेट को कानूनी रूप से वजन नहीं देना चाहिए था।" कोर्ट ने आगे कहा कि सबूतों के आधार पर एफआईआर की सच्चाई या झूठ की जांच किए बिना, अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने शिकायतकर्ता (याचिकाकर्ता) के खिलाफ झूठी रिपोर्ट दर्ज करने के लिए धारा 182 सीआरपीसी के तहत मुकदमा चलाया और यह कानून की नजर में मान्य नहीं था। कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट के लिए कार्रवाई का सही तरीका नाराजी याचिका को शिकायत के रूप में पढ़ना था, ताकि सूचना देने वाले (याचिकाकर्ता) को पुलिस में की गई शिकायत के समर्थन में सबूत और गवाह पेश करने का अवसर दिया जा सके। उपरोक्त चर्चाओं के आधार पर न्यायालय ने माना कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सुल्तानपुर का आदेश अवैधता से ग्रस्त है और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश/फास्ट ट्रैक, सुल्तानपुर भी मजिस्ट्रेट के आदेश की पुष्टि करने में गलत था। अत: दोनों आदेशों को रद्द कर दिया गया और रिट याचिका को स्वीकार किया गया।