'बंद पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाना चाहिए': केरल हाईकोर्ट ने शैक्षिक हड़ताल पर कहा

Oct 21, 2021
Source: https://hindi.livelaw.in/

केरल हाईकोर्ट ने कहा कि सभी संबंधित अधिकारियों को राज्य में बंद या हड़ताल से संबंधित न्यायालय के निर्देशों को लागू करना चाहिए और इसका उल्लंघन गंभीरता से लिया जाएगा।

मुख्य न्यायाधीश एस मणिकुमार और न्यायमूर्ति शाजी पी चाली की खंडपीठ ने कथित शैक्षिक हड़ताल के खिलाफ याचिका का निपटारा करते हुए कहा: "इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर हम केवल यह देखते हैं कि सभी संबंधित अधिकारियों को शीर्ष अदालत और इस अदालत के फैसले को लागू करना चाहिए। यह सब हड़ताल/बंद से निपटने के लिए भविष्य में किसी भी शिकायत के लिए जगह दिए बिना होना चाहिए। इस संबंध में किसी भी उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा। साथ ही इस बारे में संबंधित अधिकारियों द्वारा उचित निर्देश जारी किए जाने चाहिए।"अदालत शैक्षणिक हड़ताल पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह हड़लात एक घटना के बाद हुई थी, जहां केरल छात्र संघ और अन्य छात्र संगठनों की गतिविधियों ने कथित तौर पर सरकारी पी.वी.एच.एस स्कूल, कोल्लम जिला में कामकाज को प्रभावित किया था। याचिका में स्कूल को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रभावी पुलिस सुरक्षा की भी मांग की गई। याचिका में प्रार्थना करते हुए कहा गया कि छात्र संगठनों या राजनीतिक दलों द्वारा बुलाए गए "शैक्षिक बंद" अवैध और असंवैधानिक हैं। यह भारत कुमारी के. पालिचा और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य में न्यायालय द्वारा निर्धारित निर्देशों का उल्लंघन है। इसकी पुष्टि सुप्रीम कोर्ट ने कम्युनिस्ट पार्टी इंडिया बनाम भारत कुमारी 1997 (2) केटी 1007 (एससी) मामले में भी की थी।

उक्त निर्णयों ने 'बंद' को अवैध और असंवैधानिक मानते हुए प्रतिबंधित कर दिया था। याचिकाकर्ता के अनुसार, एक बार बंद पर प्रतिबंध लगाने के बाद शैक्षिक बंद को बुलाने की कोई गुंजाइश नहीं है। याचिका में दावा किया गया कि केरल छात्र संघ और अन्य छात्र संगठनों द्वारा 2018 में बंद के कारण सरकार पी.वी.एच.एस. स्कूल को कुछ दिनों के लिए बंद करना पड़ा। इस संबंध में पुलिस में शिकायत भी की गई, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

याचिका का विरोध करते हुए राज्य ने न्यायालय को सूचित किया कि शिकायत प्राप्त होने पर पुलिस ने सभी संबंधित हितधारकों के साथ एक बैठक की और शिकायत में उठाए गए मुद्दों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया। यह भी जोड़ा गया कि उसके बाद ऐसी कोई घटना नहीं हुई। राज्य के इस प्रस्तुतीकरण पर विचार करते हुए न्यायालय ने यह विचार किया कि याचिका को बरकरार रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह उल्लेख करने के अलावा कि 'शैक्षिक बंद या हड़ताल' अवैध है, याचिका में यह भी कहा गया कि विरोध के ऐसे तरीके 'बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार-2009' के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं। कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए इस मुद्दे को खुला छोड़ दिया।

 

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