ध्रुवों पर पिघलती बर्फ बदल रही है पृथ्वी की ऊपरी परत, जानिए क्या हो रहा है असर

Sep 27, 2021
Source: https://hindi.news18.com

जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के दौर में पृथ्वी के ध्रुवों पर पिघलती बर्फ (Melting ice on Poles) की प्रक्रिया ने कई असर छोड़े हैं. इससे महासागरों का जलस्तर तो बढ़ ही रहा है, पृथ्वी की सतह यानी पर्पटी (Crust of Earth) भी प्रभावित हो रही है. नए अध्ययन ने खुलासा किया है कि यह असर कई हजार मील तक दिखने भी लगा है. इस शोध में पता चला है कि जैसे जैसे ग्रीनलैंड, अंटार्कटिका, और आर्कटिक द्वीपों की के ऊपर की बर्फ का भार कम हो रहा है, इन इलाकों के ऊपर पृथ्वी की पर्पटी उठ रही है और फैल भी रही है. यह गतिविधि बहुत बड़ी नहीं है, लेकिन बहुत  बड़े पैमाने पर हो रहा है

शोध में कहा गया है कि यह गतिविधि औसतन एक मिलीमीटर प्रतिवर्ष हो रीह ह, लेकिन यह बहुत ही विशाल मात्रा के क्षेत्र में हो रहा है. जैसे जैसे बर्फ के नीचे का तलशिला खिसक रही है, इसका असर इस पर भी हो रहा है कि कैसे बर्फ लगातार पिघल रही है और टूट कर अलग हो रही है. इस पूरी प्रक्रिया को समझने से हमें यह समझने में मिल सकती है कि हमारी पृथ्वी का भविष्य क्या  होगा.

उम्मीद नहीं थी व्यापक स्तर पर बदलाव की
न्यू मैक्सिको की लॉस एलामोस नेशनल लैबोरेटरी की भूभौतिकविद सोफी कूलसन का कहना है कि वैज्ञानिकों ने बर्फ की चादर और ग्लेशियर के नीचे बहुत सारा काम किया है इसलिए वे जानते हैं कि यह  ग्लेशियर के क्षेत्रों को तय करेगा, लेकिन उन्होंने यह नहीं पहचाना था कि यह बदलाव वैश्विक स्तर पर हो रहे हैं.

बहुत ज्यादा फैले इलाके में है असर
बहुत सारे पूर्व अध्ययनों ने यह पाया है कि बर्फ की चादर पिघलने से पृथ्वी की सतह ऊपर उठ सकती है, लेकिन कूलसन और उनकी सहयोगियों ने क्षैतिज विस्थापन विस्तृत क्षेत्र में पाया. उन्होंने पाया कि विसंगतियां साल दर साल अलग अलग हो सकती हैं. शोधकर्ताओं ने पाया कि कुछ इलाकों में क्षैतिज गतिविधि लंबवत गतिविधि की तुलना में ज्यादा है.

ध्रुवों (Earth Poles) पर बर्फ पिघलने से पृथ्वी पर उनका भार कम हो रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay

हजारों सालों के बदलाव
शोधकर्ताओं ने 2003 से लेकर 2018 तक के फील्ड के मापन के साथ सैटेलाइट के आंकड़ों का उपयोग किया और पृथ्वी की पर्पटी की गतिविधियों का त्रिआयामी नाप लिए. पर्पटी में बदलाव हजारों सालों में हो सकते हैं. शोध में पाया गया कि कुछ बदालव अब भी पृथ्वी की सतह पर देखे जा सकते हैं जो हिम युग के अंत तक करीब 11 हजार साल पहले से अब तक देखे गए.

अलग समयावधि पर अलग असर
कूलसन ने बताया कि हालिया समायवधि के लिहाज से हम सोचते हैं कि पृथ्वी का बर्ताव रबड़ की तरह इलास्टिक है, लेकिन हजारों सालों की समयावधि के स्तर पर पृथ्वी एक धीमे गति से बहने वाले द्रव्य की तरह बर्ताव करती है. हिमयुग की प्रक्रियाएं वास्तव में बहुत ही ज्यादा लंबा समय लेती हैं इसीलिए हम आज भी उनके नतीजे देख सकते हैं.

कैसे होता है यह असर
शोधकर्ताओं ने इस प्रभाव की तुलना बर्फ के द्वारा लकड़ी के तख्ते को पानी में धकेले जाने से की. जब तख्ता हटता है, तब वजन चला जाता है, और तरल पादर्थ फैल कर उपलब्ध जगह को घेर लेता है. ऐसा ही पृथ्वी की पर्पटी के साथ होता है. जिस दर से बर्फ पूरी दुनिया में पिघल रही है, यह जरूरी है कि वैज्ञानिक इसके पृथ्वी की पर्पटी पर हो रहे असर का पता लगाएं, भले ही वह हर साल बहुत कम ही क्यों ना खिसक रही हो.

विज्ञापन

नए अध्ययन ने और ज्यादा विस्तृत आंकड़े दिए हैं जो वैज्ञानिकों को लगता है कि बर्फ के पिघलने और पृथ्वी के आकार में बदलाव के अलावा कई अन्य वैज्ञानिक क्षेत्रों में काम आएंगे. कूलसन का कहना है कि पृथ्वी की पर्पटी की गतिविधियों के सभी कारकों के समझने से पृथ्वी विज्ञान की बहुत सी समस्याओं को सुलझाने में मदद मिलेगी. यह शोध जियोफिजिकल रिसर्च लैटर्स में प्रकाशित हुआ है.

आपकी राय !

हमारे राज्य में औद्योगिक मजदूरों के हित में क्या कानून है

मौसम