SC ने स्किन-टू-स्किन टच वाले बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को किया खारिज, डिटेल में पढ़िए पूरी सुनवाई

Nov 19, 2021
Source: https://navbharattimes.indiatimes.com

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें हाई कोर्ट ने कहा था कि पोक्सो के तहत अपराध के लिए स्किन टू स्किन टच होना जरूरी है। हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद काफी विवाद हुआ था और सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ तीन अर्जी दाखिल की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि अगर कोई, किसी बच्चे (विक्टिम) को सेक्सुअल मंशे से टच करना है तो पोक्सो के तहत वह सेक्सुअल असॉल्ट का अपराध होगा, इसके लिए स्किन टू स्किन टच होना अनिवार्य नहीं है। बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने कहा था कि पोक्सो के तहत तब तक अपराध नहीं होगा जब तक कि बच्चे के साथ स्किन टू स्किन टच न हुआ हो।

महाराष्ट्र सरकार और महिला आयोग ने हाई कोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती
बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करने के लिए अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी। साथ ही राष्ट्रीय महिला आयोग व महाराष्ट्र सरकार ने ने अलग से अर्जी दाखिल कर बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि नाबालिग के अंदरुनी अंग को बिना कपड़े हटाए छूना तब तक सेक्सुअल असॉल्ट नहीं है जब तक कि स्किन से स्किन का टच न हो। इस फैसले के खिलाफ दाखिल अपील पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने 27 जनवरी को हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी और विस्तार से सुनवाई की थी।

कोई ग्लब्स पहनकर करे अपराध तो फिर सजा कैसे होगी
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित की अगुवाई वाली बेंच ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि पोक्सो एक्ट के तहत स्किन टू स्किन टच को अगर अनिवार्य किया जाएगा तो फिर इस कानून का मकसद ही खत्म हो जाएगा। बच्चों को सेक्सुअल ऑफेंस से बचाने के लिए यह पोक्सो एक्ट बनाया गया है। इसकी धारा-7 के तहत टच या फिजिकल टच के तहत स्किन टू स्किट टच परिभाषित किया जाना गलत व्याख्या होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पोक्सो एक्ट की धारा-7 के तहत फिजिकल टच को स्किन टू स्किन टच व्याख्या की जाती है तो यह संकीर्ण व्याख्या होगी। इस तरह की व्याख्या विवेकहीन और न्याय विरुद्ध होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर इस तरह की व्याख्या को स्वीकार कर लिया जाता है तो ऐसी स्थिति में अगर कोई आदमी ग्लब्स (दस्ताना) पहन ले या ऐसी चीज पहनकर बच्चों को गलत इरादे से छूए तो फिर सजा नहीं होगी और यह न्याय विरुद्ध स्थिति बन जाएगी।

सेक्सुअल मंशा से छूना अपराध..स्किन टू स्किन टच की अनिवार्यता नहीं
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि अगर कोई आरोपी किसी बच्चे के सेक्सुअल पार्ट को सेक्सुअल मंशा से छूता है या फिर सेक्सुअल मंशे से फिजिकल टच करता है तो वह पोक्सो की धारा-7 के तहत अपराध होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून का यह मकसद नहीं हो सकता है कि किसी अपराधी को कानून के फंदे से बच निकलने का मौका दिया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून बनाने वालों ने इसकी व्याख्या जिस मकसद से की है वह साफ है लेकिन कोर्ट उस प्रावधान को संदेहास्पद नहीं बना सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस पोक्सो कानून की व्याख्या से साफ है कि इसमें अगर अपराधी का सेक्सुअल मंशा है तो वह अपराध है इसके लिए बच्चे के स्किन टू स्किन टच का होना अनिवार्य नहीं है। इस कानून की संकीर्ण व्याख्या इस कानून के मकसद को ही खत्म कर देगा जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

फिजिकल टच में अगर सेक्सुअल मंशा हो तो वह पोक्सो के तहत अपराध है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी कानून जब बनाया जाता है तो कानून के इस्तेमाल का प्रभाव के लिए होता है उसके प्रभाव को कम करने के लिए यह सब नहीं होता। शीर्ष अदालत ने कहा कि पोक्सो एक्ट कहता है कि कोई भी फिजिकल टच जिसमें सेकसुअल मंशा हो तो वह अपराध है। यहां महत्वपूर्ण है कि सेक्सुअल मंशे के साथ टच या फिजिकल टच की बात है न कि स्किन से स्किन टच की। ऐसे में सेकसुअल मंशा परिस्थिति से तय होती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पोक्सो एक्ट की धारा-7 को हम रेफर करते हैं और इस तरह फिजिकल कनटैक्ट अगर सेक्सुअल मंशा से है तो वह अपराध होगा और वह पोक्सो एक्ट की धारा-7 के तहत अपराध होगा। अगर कानून का मकसद परिभाषित हो रहा है और सेक्सुअल मंशा की बात करता है तो कोर्ट उस प्रावधान पर संदेश उत्पन्न नहीं कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने उक्त टिप्पणी के साथ बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट का जजमेंट बच्चों के प्रति अप्रिय व अस्वीकार्य व्यवहार को लिजिटमाइज कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा पहली बार होगा जब क्रिमिनल साइड में अटॉर्नी जनरल ने अपील की होगी। तब जस्टिस एस रवींद्र भट्ट ने साफ किया कि एक बार इससे पहले तत्कालीन अटॉर्नी जनरल के. परासरन ने 1985 में राजस्थान हाई कोर्ट के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिसमें हाई कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाते हुए आरोपी को पब्लिक में फांसी देने का आदेश दिया था। इस फैसले के खिलाफ अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह बर्बर होगा और यह जीवन के अधिकार का उल्लंघन होगा।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में दिए थे दो फैसले दोनों ही खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक मामले विक्टिम लड़की की मां से आरोपी ने कहा था कि विक्टिम उसके घर में नही है। फिर आरोप है कि विक्टिम के अंदरुनी अंग को उसने दबाया और उसके कपड़े खोलने की कोशिश की। ये सब पोक्सो के तहत सेक्सुअल असॉल्ट है। वहीं दूसरे मामले में आरोपी ने बच्ची को सेक्सुअल मंशा से पकड़ा और उसके पैंट की जिप खोलने की कोशिश की। दोनों ही मामले को सुप्रीम कोर्ट ने पोक्सो के तहत अपराध करार दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच के दो अलग-अलग मामले में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया।दोनों फैसले जनवरी में आए थे। और दोनों ही मामले में पोक्सो के तहत आरोपी को बरी कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों ही मामले में हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया और एक मामले में आरोपी को पोक्सो के तहत तीन साल कैद की सजा सुनाई वहीं दूसरे मामले में आरोपी को पांच साल कैद की सजा सुनाई।

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