जलवायु परिवर्तन: बच्चों को तीन गुना अधिक बाढ़ और सूखे का करना होगा सामना, यहां डालें भविष्य पर एक नजर

Sep 28, 2021
Source: https://www.jagran.com/

ब्रुसेल्स (बेल्जियम), एएनआइ। जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव तो दुनियाभर में आए दिन दिखते ही रहते हैं। लेकिन आने वाले दिनों में इसकी भयावहता और भी भीषण होने वाली है। शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन के आधार पर कहा है कि आज जो बच्चे हैं, उन्हें वयस्कों की तुलना में ज्यादा प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ेगा। यह निष्कर्ष 'साइंस' जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

इंटर-सेक्टोरल इंपैक्ट माडल इंटरकंपैरिसन प्रोजेक्ट (आइएसआइएमआइपी) के डाटा के आधार पर शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि 2021 में जन्मे बच्चों को अपने जीवनकाल में आज जो लोग करीब 60 वर्ष के हैं, उनकी तुलना में औसतन दोगुना जंगल की आग, दो से तीन गुना सूखा, तीन गुना नदियों की बाढ़ और क्राप फेल्यर और सात गुना लू जैसे प्राकृतिक आपदाओं को झेलना होगा।

यह सरकारों द्वारा मौजूदा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी करने के संकल्पों के परिदृश्य के तहत है, जो ग्लासगो में आगामी विश्व जलवायु शिखर सम्मेलन सीओपी 26 में चर्चा का एक विषय हो सकता है।

अध्ययन के प्रमुख लेखक व्रीजे यूनिवर्सिटी, ब्रुसेल्स के प्रोफेसर विम थिएरी ने बताया कि हमारे अध्ययन का निष्कर्ष गंभीर खतरे को उजागर करने वाले हैं और इसके मद्देनजर भविष्य की सुरक्षा के लिए कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी किए जाने का आह्वान भी है। उन्होंने कहा कि यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि हमारे आकलन आज के बच्चों को भविष्य में होने वाली वास्तविक दुश्वारियों की तुलना में कमतर ही हैं।

शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि फिलहाल जो लोग 40 साल से कम उम्र के हैं, उन्हें अपने जीवनकाल में लू, नदियों की बाढ़ और फसलों के फेल्यर मामले में 'अभूतपूर्व' स्थितियों का सामना करना पड़ेगा।

आइएसआइएमआइपी की संयोजिका तथा पाट्सडैम इंस्टीट्यूट फार क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च की विज्ञानी व इस शोध की सह लेखिका काटजा फ्रेलर का कहना है कि इन परिस्थितियों के बावजूद इसमें सुधार लाने का विकल्प है। यदि हमें अपने बच्चों को भविष्य में भीषण प्राकृतिक आपदाओं से बचाना है तो उसके लिए जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से इस्तेमाल से बाहर कर इस शताब्दी के अंत तक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना होगा।

.तो 24 फीसद तक कम की जा सकती है भीषणता

फ्रेलर के मुताबिक, यदि हमने जलवायु संरक्षण के लिए कार्बन उत्सर्जन के मौजूदा संकल्प के अनुसार उसे काबू किया और तापमान में संभावित वृद्धि को लक्षित 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा तो अपने बच्चों के लिए दुनियाभर में भीषण प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम 24 फीसद तक कम कर सकते हैं। यदि क्षेत्रवार इस जोखिम को कम किए जाने की संभावना की बात करें तो इसमें उत्तर अमेरिका में 26 फीसद, यूरोप और मध्य एशिया में 28 फीसद, मध्य-पूर्व और उत्तर अफ्रीका में 39 फीसद तक हो सकती है। इस तरह से यह हमारे लिए एक बहुत बड़ी संभावना है।

मौजूदा हालात के क्या होंगे असर

शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन को थामने के लिए जिस तरह की अपर्याप्त नीतियां हैं, उससे तो ऐसा लगता है कि इस शताब्दी के अंत तक लू का असर या खतरे में वृद्धि 15 फीसद भूभाग से बढ़कर 46 फीसद तक हो जाएगा।

लेकिन पेरिस क्लाइमेट एग्रीमेंट, जिस पर दुनियाभर के लगभग सभी देशों ने दस्तखत किए हैं, पर अमल करते हुए तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जाए तो इसका असर 22 फीसद भूभाग में कम किया जा सकेगा।

 

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