'केवल वर्दी में रहने से आईपीसी की धारा 353 आकर्षित नहीं होता': केरल हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारी पर हमला करने के आरोपी वकीलों को अग्रिम जमानत दी

Jun 17, 2022
Source: https://hindi.livelaw.in

कोर्ट ने कहा, "आईपीसी की धारा 353 को आकर्षित करने के लिए, मुख्य रूप से एक यह है कि हमला या आपराधिक बल उस लोक सेवक को रोकना चाहिए जो अपने आधिकारिक कर्तव्य का निर्वहन कर रहा था। बेशक, वास्तविक शिकायतकर्ता वकील की शिकायत के आधार पर एक जांच में भाग ले रहा था। कल्पना की किसी भी सीमा पर, यह नहीं कहा जा सकता है कि वास्तविक शिकायतकर्ता कथित घटना के समय एक लोक सेवक के रूप में अपने कर्तव्य का वैध निर्वहन कर रहा था। सिर्फ इसलिए कि वह वर्दी में है, आईपीसी की धारा 353 लागू नहीं होगी।"
एक वकील को चेरथला पुलिस ने एक यातायात घटना में आरोपी होने के कारण हिरासत में लिया जिसके बाद उसने पुलिस अधिकारियों पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया। उसकी रिहाई की मांग को लेकर कई वकील थाने के सामने जमा हो गए थे। तद्नुसार उच्च पुलिस अधिकारियों और महाधिवक्ता द्वारा 15.02.2021 को हाईकोर्ट के परिसर के भीतर महाधिवक्ता के कार्यालय में एक जांच शुरू की गई थी। उक्त वकील और एक सर्कल पुलिस निरीक्षक जांच में शामिल होने के लिए हाईकोर्ट पहुंचे थे।
पूछताछ के बाद, जब सर्किल इंस्पेक्टर अदालत परिसर से बाहर जा रहा था, याचिकाकर्ताओं सहित कई वकीलों ने कथित तौर पर एक गैरकानूनी सभा का गठन किया, घातक हथियारों से लैस दंगा किया और अपने सामान्य उद्देश्य के अभियोजन में, उन्हें गालियां दीं और मारपीट की। याचिकाकर्ताओं और अन्य पर आईपीसी की धारा 143, 147, 148, 353, 323, 294 (बी) आर/डब्ल्यू 149 के तहत मामला दर्ज किया गया था। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एडलोकेट बाबू एस. नायर ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आरोपित एकमात्र गैर-जमानती अपराध आईपीसी की धारा 353 के तहत है और अगर पूरे आरोप स्वीकार कर लिए जाते हैं, तो भी धारा 353 के तहत अपराध नहीं बनता है। उन्होंने तर्क दिया कि धारा 353 को गैर-जमानती अपराध में वकीलों को फंसाने के दुर्भावनापूर्ण इरादे से शामिल किया गया था।
मामले में राज्य की ओर से लोक अभियोजक श्रीजा वी पेश हुईं। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आरोपित एकमात्र गैर-जमानती अपराध आईपीसी की धारा 353 के तहत है। आगे कहा, "मुझे लगता है कि याचिकाकर्ताओं के तर्क में कुछ बल है कि आईपीसी की धारा 353 को गैर-जमानती अपराध में वकीलों को फंसाने के लिए जोड़ा गया है। सीनियर अधिकारियों को इस मामले को देखना चाहिए और कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करनी चाहिए। मैं मामले के मैरिट के बारे में कोई और टिप्पणी करना नहीं चाहता हूं। मैं इसे वहीं छोड़ता हूं। अधिकारी इस आदेश में किसी भी अवलोकन से अप्रभावित जांच करने के लिए स्वतंत्र हैं।" हालांकि, यह स्पष्ट किया गया कि जमानत आवेदन पर विचार करने के सीमित दायरे में ये टिप्पणियां सख्ती से की गई हैं। ऐसे में यह आदेश दिया गया कि यदि याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तार किया जाता है, तो उन्हें 50,000 रुपये के निजी बॉन्ड पर रिहा किया जाना चाहिए।
 

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