मामूली विसंगति गवाह के बयान पर अविश्वास का आधार नहीं हो सकती, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया

Mar 30, 2021
Source: https://hindi.livelaw.in/

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि केवल तथ्यात्मक विवरणों में विरोधाभास ही गवाहों के साक्ष्यों पर अविश्वास का आधार हो सकता है, न कि मामूली विरोधाभास। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी की खंडपीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ हत्या के अभियुक्त की अपील खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

ट्रायल कोर्ट ने हत्या के अभियुक्त को बरी कर दिया था, जिसे हाईकोर्ट ने पलट दिया था। बेंच ने रिकॉर्ड पर लाये गये साक्ष्यों का हवाला देते हुए कहा कि यदि रिकॉर्ड में लाये गये दस्तावेजी साक्ष्यों और मेडिकल साक्ष्यों के साथ अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान पर विचार किया जाता है तो यह पूरी तरह स्पष्ट होता है कि उनके साक्ष्य स्वाभाविक, विश्वास योग्य और स्वीकार्य हैं।

ट्रायल कोर्ट ने कुछ मामूली विरोधाभासों का हवाला देते हुए उनके साक्ष्यों पर भरोसा नहीं किया है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले के गवाह देहाती व्यक्ति हैं और यह घटना उस वक्त घटी थी जब वे मजदूरी करके अपने घर लौट रहे थे।

बेंच ने कहा, "इस कोर्ट ने 'नारायण चेतन राम चौधरी एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र सरकार' मामले में आपराधिक ट्रायल में साक्ष्य की सराहना करते हुए गवाह के बयान में मामूली विरोधाभास पर विचार किया है। उस मामले के फैसले में यह व्यवस्था दी गयी है कि केवल तथ्यात्मक विवरणों में विरोधाभास गवाहों के साक्ष्यों पर अविश्वास का आधार हो सकता है, न कि मामूली विरोधाभास।"

'नारायण चेतन राम चौधरी' मामले में कोर्ट ने इस प्रकार कहा था :

केवल वैसी चूक जो तथ्यों के विवरण की दृष्टि से विरोधाभासी होती है उसे ही गवाह की गवाही पर अविश्वास का आधार बनाया जा सकता है। पुलिस बयान में चूक निश्चित तौर पर अपने आप में गवाह के बयान को अविश्वास के योग्य नहीं बनायेगी। जब कोर्ट के समक्ष गवाह द्वारा दिया गया बयान तथ्यात्मक तौर पर उसके पूर्व के बयानों से अलग होता है, तो अभियोजन पक्ष का केस संदेहास्पद हो जाता है, किसी अन्य प्रकार से नहीं। सच्चे गवाहों के बयानों में भी मामूली विरोधाभास देखने को मिलता ही है, क्योंकि कभी - कभी स्मृति लोप की भी समस्या होती है और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति की तुलना में कथन की समझ पृथक भी होती है।

कोर्ट ने अपीलकर्ता की अपील यह कहते हुए खारिज कर दी कि ट्रायल कोर्ट का दृष्टिकोण किसी भी प्रकार से संभावित दृष्टिकोण नहीं था और उसके निष्कर्ष रिकॉर्ड में दर्ज साक्ष्यों के विरोधाभासी हैं। आरोपी को दोषी ठहरा कर ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटने का हाईकोर्ट का निर्णय उचित है।

केस : राजेन्द्र उर्फ राजप्पा बनाम कर्नाटक सरकार [ क्रिमिनल अपील 1438 / 2011 ]

कोरम : न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी

वकील : सीनियर एडवोकेट किरण सूरी

साइटेशन : एलएल 2021 एससी 189
 

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