Gomukh Gangajal: अब गोमुख के गंगाजल को मिलेगी वैश्विक पहचान, चरक संहिता बनेगी आधार; जानें- क्या होगा लाभ

Jun 24, 2022
Source: https://www.jagran.com/

नई दिल्ली, रुमनी घोष। गोमुख के गंगाजल को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआइ) टैग दिलाने की पैरवी जिनेवा में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की 12वीं मिनिस्ट्रियल कांफ्रेंस के मंच से की गई है। 164 देशों के प्रतिनिधियों के सामने चरक संहिता से लेकर वर्ष 1806 से 1906 के बीच अंग्रेजों द्वारा करवाए गए शोध सहित लगभग 1,000 पन्नों के दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हैं।

देश को जीआइ टैग दिलाने का मिशन

26 विभिन्न उत्पादों को जीआइ टैग दिलाने के बाद अब वैश्विक मंच पर गंगाजल की दावेदारी पेश करने वाले ग्रेट मिशन ग्रुप कंसलटेंसी (जीएमजीसी) के प्रमुख प्रोफेसर गणेश शंकर हिंगमिरे ने 'दैनिक जागरण' को बताया कि गोमुख के गंगाजल को भौगोलिक सांकेतिक धरोहर के रूप में मान्यता अवश्य मिलेगी। लगभग 21 वर्ष से जीआइ टैग, बौद्धिक संपदा अधिकार (आइपीआर) और पेटेंट को लेकर काम कर रहे प्रोफेसर हिंगमिरे 40 उत्पादों के लिए जीआइ टैग का आवेदन कर चुके हैं। इसमें से 25 प्रतिशत कृषि उत्पाद हैं। 

सात वर्ष पहले शुरू किया शोध

लंबे समय तक लंदन में रहे प्रोफेसर हिंगमिरे के अनुसार गंगाजल को जीआइ टैग दिलाने के लिए दस्तावेज जुटाने का काम लगभग सात वर्ष पहले शुरू हुआ। गंगाजल एंटीबैक्टीरियल है, यह प्रमाणित करने के लिए चरक संहिता को उद्धृत किया गया, जिसमें यह बताया गया कि उस समय शल्य चिकित्सा के दौरान गंगाजल का प्रयोग किया जाता था। प्रो. हिंगमिरे के अनुसार गंगा जल को लेकर अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1806, 1896, 1901 और 1906 में कई शोध किए गए थे। इनमें बताया गया है कि गंगाजल में नैसर्गिक औषधीय गुण हैं। इस बात के भी प्रमाण हैं कि एंटीबैक्टीरियल क्षमता से ठीक होने की आशा में ही मृत्यु शैय्या पर लेटे व्यक्ति को गंगाजल दिया जाता था। हालांकि जागरूकता के अभाव में इसका स्वरूप बदल दिया गया।

गंगाजल को पहचान क्यों नहीं

गंगाजल के जीआइ टैग की पैरवी के लिए डब्ल्यूटीओ के मंच को क्यों चुना गया? यह पूछने पर प्रोफेसर हिंगमिरे बताते हैं कि मैं अब तक डब्ल्यूटीओ की सात मिनिस्ट्रियल कांफ्रेस में भाग ले चुका हूं। वर्ष 2003 में टकीला को जीआइ टैग के लिए इसी तरह डब्लूटीओ के मंच से पेश किया गया था। उसके बाद इसे दुनियाभर में पहचान मिल गई। तब से ही मैंने सोच लिया था कि गंगाजल को वैश्विक पहचान दिलाने का काम इसी मंच से करूंगा। 

गंगा की पीएच वैल्यू

शुद्ध पानी की पीएच वैल्यू सात मानी जाती है। जीआइ टैग के लिए किए गए आवेदन में बताया गया है कि गोमुख से निकलने वाले जल की पीएच वैल्यू 7.18 से 7.5 के बीच में पाई गई है। यानी गंगाजल वास्तविक रूप से शुद्ध है।

जीआइ टैग उत्पादों से 75 अरब यूरो वार्षिक कमाता है यूरोप

जीआइ टैग भारत की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बड़ा सुधार ला सकते हैं। प्रोफेसर हिंगमिरे के अनुसार शैंपेन, स्काच व्हिस्की सहित अन्य जीआइ टैग उत्पादों से यूरोप को प्रतिवर्ष 75 अरब यूरो की कमाई होती है। 

जर्मनी है जीआइ टैग का अगुआ

-15,566 जीआइ टैग के साथ जर्मनी विश्व में सबसे आगे

-7,000 से ज्यादा जीआइ टैग हैं चीन के पास

-6,683 जीआइ टैग हैं हंगरी के पास।

-6,000 से ज्यादा जीआइ टैग वाले देशों में चेक रिपब्लिक, बुल्गारिया, इटली और पुर्तगाल शामिल

-419 जीआइ टैग हैं भारत के पास, इनमें से 120 कृषि उत्पाद हैं

यह होता है जीआइ टैग और इसका लाभ 

जीआइ टैगिंग किसी विशेष क्षेत्र के प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से बने उत्पाद या विशेष फसल को दिया जाता है। यह उस उत्पाद की भौगोलिक पहचान स्थापित करता है। भारत में इसके लिए वर्ष 1999 में अधिनियम बनाया गया। चेन्नई स्थित पेटेंट, डिजाइन और ट्रेडमार्क के महानियंत्रक के कार्यालय में इसके लिए आवेदन किया जाता है। वैश्विक स्तर पर वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रापर्टी आर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूआइपीओए) की तरफ से जीआइ टैग जारी किया जाता है। जीआइ टैग मिलने से उत्पाद का मूल्य बढ़ जाता है। कोई अन्य उस प्रोडक्ट को अपने नाम से नहीं बेच सकता है। जीआइ टैग प्राप्त करने का कोई निर्धारित समय नहीं है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि दस्तावेज कितने पुख्ता हैं। औसतन छह महीने से दो वर्ष का समय लग जाता है।  

पहली बार डब्ल्यूटीओ द्वारा लगाया गया कानून

जीआइ टैग की अवधारणा डब्ल्यूटीओ द्वारा ही लाया गया, ताकि व्यापार में गुणवत्ता और मौलिकता कायम रहे। उपभोक्ताओं को सही चीज उपलब्ध करवाई जा सके।

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