चीन से परहेज का फायदा भारत को, कपड़ा उद्योग में बहार, बंद मिलें चालू करने की तैयारी

Feb 08, 2021
Source: jagran.com

इंदौर [जितेंद्र यादव]।  कोरोना महामारी के कारण विश्व स्तर पर चीन के अलग-थलग पड़ जाने का बड़ा फायदा भारत के कपास और कपड़ा उद्योग को मिलने लगा है। अमेरिका, इटली, जर्मनी, स्पेन और तुर्की जैसे देशों में भारत में बने तौलिया, चादर, टीशर्ट आदि की भारी मांग हो गई है। मुश्किल में घिरे कपड़ा-कपास उद्योग की स्थिति में दो महीने में ही ऐसा सुधार आया है कि कुछ बंद मिलें भी चालू होने की राह पर हैं। रई में तेजी का लाभ सीधे तौर पर कपास उत्पादक किसानों को भी मिल रहा है। कई जगह कपास के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी अधिक मिल रहे हैं। टेक्सटाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष अशोक वेदा का कहना है कि बदले हालात का फायदा उठाते हुए मध्य प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर, मंडीदीप और महाराष्ट्र की बंद सूत मिलें फिर शुरू होने जा रही हैं।

मध्य प्रदेश में वर्धमान समूह, नाहर स्पीनर्स, सागर ग्रुप जैसे उद्योग कारखानों का विस्तार कर रहे हैं। महाराष्ट्र के शिरपुर में प्रियदर्शिनी सहकारी सूत मिल सहित कई अन्य कपास-कपड़ा उद्योग फिर शुरू हो गए हैं। मध्य प्रदेश कॉटन प्रोसेसर्स एंड जिनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष कैलाश अग्रवाल बताते हैं कि मध्य प्रदेश सहित अन्य कपास उत्पादक राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, तेलंगाना आदि में रई निकालने वाले (जीनिंग) कारखानों में 24 घंटे काम होने लगा है। कामगारों को फिर रोजगार मिलने लगा है। जैविक कपास (ऑर्गेनिक कॉटन) से धागा और कपड़े बनाने वाली प्रमुख कंपनी प्रतिभा सिंटेक्स के डायरेक्टर अतुल मित्तल का कहना है कि भारत के जैविक कपास की अमेरिका और यूरोप में मांग इतनी बढ़ गई है कि हम इसकी पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं।

महाराष्ट्र के धरणगांव के जीनिंग फैक्ट्री संचालक जीवनसिंह बायस के मुताबिक, फिलहाल कपास के भाव और कारोबार में 10-12 फीसद की बढ़ोतरी दिख रही है। हालांकि महिमा फाइबर्स पीथमपुर के डायरेक्टर रोहित डोशी इस बदलाव को अस्थायी मानते हैं। उनका कहना है कि आठ-दस सालों से टेक्सटाइल उद्योगों की हालत खराब थी। दो महीने से सुधार हुआ है, लेकिन यह कितने समय रह पाएगा, कहना मुश्किल है।

चालीस साल पहले भी था 'सफेद सोने' का स्वर्णकाल कपास को सफेद सोना भी कहा जाता है। मध्य प्रदेश के खरगोन, खंडवा, बड़वानी, बुरहानपुर, छिंदवाड़ा, रतलाम और धार जिलों में कपास होता है। कपास के विज्ञानी डॉ. पीपी शास्त्री का कहना है कि 1980-90 के दौर में भी कपास का स्वर्णिम काल रहा है। उस समय गुजरात के कृषि विज्ञानी सीटी पटेल ने देश में पहली बार हाइब्रिड कपास की किस्म एच-3 व एच-4 तैयार की थी। मध्य प्रदेश के खंडवा से भी विज्ञानी डॉ. वीएन सराफ और उनकी टीम ने हाइब्रिड किस्म जेकेएचवाय-1 उपलब्ध कराई थी। इन किस्मों ने कपास उत्पादन में क्रांति ला दी थी। बाद के दौर में स्थिरता आ गई। इसके बाद बीटी कॉटन आया। इससे लंबे रेशे का कपास तो खूब मिला, लेकिन देसी किस्में खत्म होने से जींस कपड़े में लगने वाले छोटे रेशे के कपास की कमी हो गई।

 

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