दिवालिया कानून और आपके अधिकार

Apr 08, 2021
Source: https://www.bhaskar.com/

हाल ही में संसद द्वारा पारित दिवालिया कानून के अनेक पहलू हैं। दिवालिया कानून का अर्थ यह है कि छोटे निवेशक और जमाकर्ताओं को इसका लाभ मिल सके। अभी तक बैंकों और बड़े कॉर्पोरेट को फायदा मिलता था। इसका मकसद कंपनी को दिवालिया होने से बचाना और यह जल्द ही लागू होगा।


हाल ही में संसद द्वारा पारित दिवालियापन कानून के अनेक पहलू हैं, जिनमें आम लोगों के हित और अधिकार का ख्याल रखा गया है। यूं तो यह कानून लेनदार और देनदार के बीच की समस्याओं को हल करने का एक प्रयास है, लेकिन यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि इस कानून से छोटे निवेशक छोटे सप्लायर, छोटे जमाकर्ता एवं इस तरह के अन्य लोगों के अधिकारों को सुरक्षा मिलेगी, जो किसी भी बड़ी कंपनी के कार्य से प्रभावित होता है।


इस नए दिवालियापन कानून के अंतर्गत किसी भी कंपनी को दिवालिया होने पर रोकने की कोशिशों पर खास जोर दिया गया है। इसके बाद भी यदि कंपनी दिवालिया होती है, तो निर्णायक प्राधिकरण एक दिवालियापन आदेश पारित करेंगे। इसके अंतर्गत कार्यवाही शुरू की जाएगी।


कौन आवेदन कर सकता है- कोई काॅर्पोरेट देनदार यदि चूककर्ता हो जाए, या फाइनेंशियल लेनदार (जैसे कंपनियां, चिटफंड आदि) या कोई अन्य लेनदार पैसा लौटा नहीं पाता है तो वह इसके लिए आवेदन कर सकता है।


दिवालिया घोषित होने की प्रक्रिया की अवधि आवेदन की तिथि से 180 दिन में हो जाती है। इसमें दिवालिया और लिक्विडेशन (दिवालिया हो चुकी कंपनी की संपत्ति बेचकर वितरण करना) के मामले भी आ जाते हैं। बशर्ते कम से कम राशि एक लाख रु. की हो और वह एक करोड़ रु. से अधिक की नहीं हो। जहां तक वित्तीय लेनदार की बात है तो वह संयुक्त या निज रूप से काॅर्पोरेट स्तर पर दिवालिया होने का आवेदन कर सकता है। इसके लिए उसे जरूरी होगा कि वह चूककर्ता का रिकॉर्ड पेश करें। इस स्थिति में प्राधिकरण आवेदन प्राप्त होने के 14 दिनों में इसकी पुष्टि करता है। कंपनी के दिवालिया होने पर जहां तक कर्ज लेने वाले और देने वालों की बात है तो उनके हक में भी इसमें कुछ प्रावधान हैं। इस कानून से देनदार या कर्जदार जो बहुत खराब स्थिति में आ चुके हैं, उनकी प्रक्रिया यदि 180 दिन में पूरी नहीं होती है तो विशेष मामलों में इसमें 90 दिन का इजाफा और किया जा सकता है। इसे फास्ट ट्रेक रिजॉल्यूशन पर लाया जाएगा।


देनदार द्वारा ही अवधि को एक प्रस्ताव के जरिये बढ़ाया जा सकेगा। इस प्रस्ताव को लेनदारों की समिति में रखना होगा। यदि इसे 75 फीसदी तक वोट समिति में मिलते हैं तो इस अवधि को बढ़ा सकेंगे। कानून के नियम 12(2) में लेनदारों को भी समयावधि बढ़ाने का हक है। लेनदार और देनदारों के बीच आम सहमति से सेटलमेंट एक प्रक्रिया से किया जा सकेगा। इस प्रक्रिया में दोनों पक्षों को चर्चा कर यह देखना होगा कि देनदारी कितनी है।


इस तरह के प्रस्तावों के विफल होने के बाद ही कोई भी देनदार दिवालिया होने की प्रक्रिया के लिए पहल कर सकता है। इस कानून के प्रावधान कहते हैं कि जितनी तेजी से कंपनी के समापन की प्रक्रिया होगी, उतने ज्यादा शेयरहोल्डर और पैसा लगाने वालों को संरक्षण मिल सकेगा। इस कानून में कंपनी अधिनियम 2013 में भी एक संशोधन सुझाया गया है।
वर्तमान में कोर्ट द्वारा नियुक्त किए ऑफिशियल लिक्विडेटर 3 से 4 वर्ष में कंपनी की संपत्तियों को बेचकर लेनदार और देनदारों को पैसा दे पाता है, लेकिन इसके बाद 180 दिन यानी तीन माह में कार्यवाही आरंभ हो जाएगी। इससे लेनदार को यह फायदा होगा कि समय से उसका कुछ पैसा मिल सकेगा। इस कानून में प्राथमिकता देनदार को भुगतान करने पर दी गई है। जब अंतिम रूप से सरकार और अन्य संस्थानों को भुगतान करना होता है, तब शेयरहोल्डर, हिस्सेदार और अन्य जमाकर्ता के हितों को भी प्राथमिकता से ध्यान में रखा जाएगा। लेनदारों के हक में यह एक अच्छा कानून कहा जा सकता है।


- फैक्ट : इस कानून के पहले अब तक हमारे देश में दिवालिया प्रक्रिया में औसतन साढ़े चार वर्ष लगते थे, जो दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा है।

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