Noida Twin tower demolation: ढाई बजते ही भष्टाचार से बनी इमारत ध्वस्त

Aug 29, 2022
Source: https://federalbharat.com/

नोएडा। नोएडा के सेक्टर 93 बी स्थित सुपरटेक के ट्विन टावर ठीक दोपहर ढाई बजे ध्वस्त कर दिया गया। समय होते ही विस्फोट करने वाली बटन को दबा दिया गया और बटन दबाते ही टावर ताश के पत्ते की तरह ध्वस्त होते गए। मात्र कुछ ही सेकेंड में इमारत पूरी तरह ध्वस्त हो गई। इस आखिरी क्षण को लोगों ने अपने कैमरे खूब कैद किया। 

री तरह भ्रष्टाचार से बने टावर

यहां नोएडा के सेक्टर-93 बी में सुपरटेक द्वारा बनवाए गए ट्विन टावर के मामले में लोगों को यह जानने की ईच्छा बलवती हो गई है कि आखिर 32 मंजिला ट्विन टावर को गिराने की नौबत ही क्यों आई। जब वह अवैध रूप से बना है तो जिस समय इमारत तैयार हो रही थी उस समय संबंधित विभागों के अधिकारी क्या कर रहे थे। उन्होंने इसके निर्माण को रोक क्यों नहीं। इस तरह के तमाम सवाल लोगों की दिगाम में घूम रहे हैं लेकिन उनका स्पष्ट जवाब नहीं मिल रहा है न तो कोई साफ जवाब दे रहा है जिससे लोगों की उत्सुकता शांत हो। तब लोग यह सोचने को मजबूर हो जा रहे हैं कि इस इमारत के निर्माण में पूरी तरह भष्टाचार है। संबंधित विभागों के अधिकारियों ने इसके निर्माण के दौरान अपनी आंखें मूंद ली थी।

करोड़ो की लागत आई है निर्माण में

ट्विन टावर के निर्माण में करीब दो सौ करोड़ रुपये की लागत आई है। यह रकम कुछ और भी बढ़ सकती है क्यों कि कुछ ऐसे भी खर्चे हैं जिन्हें दिखाया नहीं जा सकता। अब इन टावरों को गिराने पर करीब करोड़ रुपये से अधिक के खर्च का अनुमान लगाया जा रहा है।

कैसे बनी इमारत, जिसे कार्ट ने ध्वस्त करने के आदेश दिए

ट्विन टावर के निर्माण की दास्तां

23 नंवबर 2004 से तब शुरू होती है जब नोएडा विकास प्राधिकरण के संबंधित अधिकारियों ने सेक्टर-93ए स्थित प्लॉट नंबर-4 को एमराल्ड कोर्ट के लिए आवंटित कर दिया। इसके आवंटन के साथ भूतल सहित नौ मंजिल तक निर्माण की अनुमति दी गई थी। इसके दो साल बाद 29 दिसंबर 2006 को एकाएक अनुमति पत्र में बदलाव कर दिया गया। इस बदलाव के अनुसार नोएडा विकास प्राधिकरण के तत्कालीन संबंधित अधिकारी ने सुपरटेक को दो मंडिल और यानि 11 मंजिल तक निर्माण की अनुमति दे दी। फिर नोएडा विकास प्राधिकरण ने टावर बनने की संख्या में भी वृद्धि कर दी। पहले 14 टावर बनाने की अनुमति थी बाद में इसे बढ़ाकर पहले 15 फिर 16 मंजिल कर दिया गया। कहानी यहीं नहीं खत्म होती। वर्ष 2009 में इसमें एक एक बार फिर वृद्धि कर दी गई। 26 नवंबर 2009 को नोएडा विकास प्राधिकरण ने तब 17 टावर बनाने का नक्शा पास कर दिया। 2 मार्च 2012 को टावर 16 और 17 के लिए एफआर में फिर बदलाव कर दिया गया। इस संशोधन के बाद इन दोनों टावरों को 40 मंजिल तक करने की अनुमति दे दी गई। इसकी ऊंचाई 121 मीटर निर्धारित की गई थी। दोनों टावरों के बीच की दूरी सिर्फ नौ मीटर ही रखी गई। नियमानुसार दो टावरों के बीच की दूरी कम से कम 16 मीटर की जरूर होनी चाहिए।

अनुमति मिलने के बाद सुपरटेक समूह ने एक टावर में 32 मंजिल तक जबकि, दूसरे में 29 मंजिल तक का निर्माण भी पूरा कर दिया। तब यह मामला मामला अदालत पहुंचा। फिर तो टावर बनाने में हुए भ्रष्टाचार की परत-परत खुलती गई और ऐसी खुली को अदालत को इन टावरों को ध्वस्त करने के आदेश देने पड़े।

 

कैसे मामला कोर्ट पहुंचा

फ्लैट बायर्स ने 2009 में आरडब्ल्यूए बनाया। इसी आरडब्ल्यूए ने सुपरटेक के खिलाफ कानूनी लड़ाई की शुरुआत की। ट्विन टावर के अवैध निर्माण को लेकर आरडब्ल्यू ने पहले नोएडा विकास प्राधिकरण संपर्क किया। प्राधिकरण सुनवाई नहीं होने पर आरडब्ल्यूए इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गया।

2014 में हाईकोर्ट ने ट्विन टावर तोड़ने का आदेश जारी किया। शुरुआती जांच में नोएडा विकास प्राधिकरण के 15 अधिकारी और कर्मचारी दोषी माने गए। इसके बाद एक उच्च स्तरीय जांच कमेटी ने मामले की पूरी जांच की। इसकी जांच रिपोर्ट के बाद अथॉरिटी के 24 अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। 

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