मौखिक रूप से हुए पारिवारिक समझौत पर पंजीकरण या स्टांप ड्यूटी का भुगतान अनिवार्य नहीं, इसे केवल जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया: दिल्ली हाईकोर्ट

Mar 30, 2022
Source: https://hindi.livelaw.in

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि फैमिली सेटलमेंट को पंजीकृत करने और उसके लिए स्टांप शुल्क का भुगतान करने की जरूरत नहीं है, जब इस प्रकार के सेटलमेंट को शुरू में मौखिक बंटवारे के रूप में किया गया हो, हालांकि बाद में सूचना के मकसद से लिखित रूप दिया गया हो।

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा, "पक्षकारों के बीच वकीलों के हस्तक्षेप से मौखिक समझौते के माध्यम से विभाजन पर सहमति हुई थी। समझौता ज्ञापन स्वयं संपत्तियों का विभाजन नहीं करता है, बल्कि केवल स्मृति की सहायता के रूप में रिकॉर्ड करता है।" .

मौजूदा मामले में न्यायालय बंटवारे के मुकदमे में एक आवेदन पर विचार कर रहा था, जिसमें विभिन्न पक्षों ने विरासत में मिली संपत्ति के संबंध में स्टांप शुल्क के भुगतान की छूट की मांग की थी। इसके अलावा, आवेदन में हाईकोर्ट की रजिस्ट्री से प्राप्त 14 फरवरी, 2022 के नोटिस और सहायक कलेक्टर के कार्यालय से प्राप्त 3 मार्च 2022 के नोटिस को रद्द करने की भी मांग की गई है। स्वर्गीय श्री एस एस वालिया के उत्तराधिकारियों ने विभाजन और अन्य राहत की मांग संबंधी मुकदमा हाईकोर्ट के समक्ष दायर किया था। वालिया का निधन 10 दिसंबर, 2017 को हो गया था।

मुकदमे के लंबित रहने के दरमियान ही तीनों बच्चों और मृतक की पत्नी ने अपने वकीलों की मदद से समझौता कर लिया था। इसके बाद, सेटलमेंट की शर्तों को 16 अक्टूबर, 2018 के 'मेमोरेंडम ऑफ फैमिली सेटलमेंट एंड अरेंजमेंट' में शामिल किया गया। उक्त समझौते को मंजूरी दे दी गई और इसके संदर्भ में अदालत ने 16 अक्टूबर, 2018 के आदेश के तहत एक डिक्री पारित की। हालांकि, डिक्री शीट तैयार करने के लिए, हाईकोर्ट रजिस्ट्री ने स्टांप शुल्क की गणना के उद्देश्य से संपत्ति की मूल्यांकन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। इस प्रकार, आवेदन में स्टांप शुल्क के भुगतान की छूट और नोटिसों को रद्द करने की मांग की गई।

कोर्ट ने नोट किया, "16 अक्टूबर, 2018 का मेमोरेंडम केवल विभाजन के तरीके के मौखिक समझौते का रिकॉर्ड है। इसलिए, यह फैमिली सेटलमेंट की प्रकृति का है, जिस पर पार्टियों के बीच सहमति बनी थी। पार्टियों के बीच वकीलों के हस्तक्षेप के साथ मौखिक समझौते के माध्यम से बंटवारे पर सहमति हुई थी। समझौता मेमोरेडंम स्वयं संपत्तियों का विभाजन नहीं करता है, बल्कि केवल स्मृति के ‌लिए रिकॉर्ड करता है।" न्यायालय ने कहा कि यह कानून की एक स्थापित स्थिति है कि यदि पहले पार्टियों के बीच एक समझौता हुआ है, और समझौता होने के बाद ही इसे एक दस्तावेज़ में लिखा गया है तो इसके लिए पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होगी। काले और अन्य बनाम चकबंदी उप निदेशक और अन्य, (1976) 3 एससीसी 119 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा रखा गया था।

इसलिए, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान मामले में सूट संपत्तियों के मूल्यांकन की कोई आवश्यकता नहीं थी। अदालत ने आदेश दिया, "स्वर्गीय श्री एस.एस. वालिया और डॉ उर्मिला वालिया के कानूनी वारिसों द्वारा स्टांप शुल्क का भुगतान माफ कर दिया जाएगा। विभिन्न अधिकारियों द्वारा जारी नोटिस भी बिना किसी आदेश के रद्द और वापस ले लिया जाएगा।" तद्नुसार आवेदन का निस्तारण किया गया। केस शीर्षक: हिमानी वालिया बनाम हेमंत वालिया और अन्‍य। सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 244

 

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