पर्सनल लॉ, पॉक्सो अधिनियम और बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम को ओवरराइड नहीं करेगाः कर्नाटक हाईकोर्ट

Jun 22, 2021
Source: https://hindi.livelaw.in/

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि ''हालांकि मुस्लिम कानून के तहत दूसरी शादी की अनुमति है, लेकिन पर्सनल लाॅ इस देश के विशेष कानून पाॅक्सो, बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियमऔर सामान्य दंड संहिता को ओवरराइड नहीं कर सकता ।''

न्यायमूर्ति के नटराजन की एकल पीठ ने आरोपी राहुल उर्फ नायाज पाशा की तरफ से दायर जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा, ''केवल इसलिए कि दोनों पक्षकार मुसलमान हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि याचिकाकर्ता-आरोपी नंबर 1 को बहला-फुसलाकर और अगवा करके एक नाबालिग लड़की से शादी करने का अधिकार है। पीड़ित नाबालिग लड़की की सहमति या इच्छा महत्वहीन है और भले ही वह स्वेच्छा से आरोपी के साथ गई हो, यह आईपीसी की धारा 363 के तहत अगवा करने या अपहरण के समान है। आरोपी ने न केवल 15 साल की पीड़िता को अगवा किया, बल्कि उससे शादी कर ली जो बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम की धारा 9 और 10 के तहत आता है। इसके अलावा, उसने उसका यौन उत्पीड़न किया है,इसलिए पाॅक्सो अधिनियम (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) की धारा 4 और 6 भी लागू होती है।''

अदालत ने पीड़िता द्वारा आरोपी को जमानत देने के लिए दी गई अनापत्ति को भी खारिज कर दिया। अदालत ने कहा, ' 'पीड़िता की उम्र 15 साल है और उसकी सोचने-समझने की क्षमता 18 साल पूरे कर चुके वयस्क व्यक्ति के बराबर नहीं हो सकती, इसलिए, अन्यथा भी, अगर उसने अगवा करने या शादी या संभोग के लिए सहमति दी है, तो उसकी सहमति मायने नहीं रखती क्योंकि वह नाबालिग है।' इसके अलावा, अदालत ने प्रतिवादी नंबर 2 (शिकायतकर्ता) पर ध्यान दिया, जो एक वकील के माध्यम से पेश हुई और पीड़िता का हलफनामा पेश किया,जिसमें कहा गया था कि पीड़िता खुद आरोपी के साथ गई थी और उसने शादी कर ली थी। इस समय वह याचिकाकर्ता-आरोपी के घर में रह रही है।

अदालत ने कहा, ' 'इसे जमानत देने के लिए उसकी सहमति के रूप में नहीं लिया जा सकता। भले ही पीड़िता ने कहा हो कि उसे कोई 'आपत्ति नहीं' है, लेकिन चूंकि वह एक नाबालिग लड़की है, इसलिए इसे वैध 'अनापत्ति' नहीं माना जा सकता क्योंकि यह कानून के खिलाफ है।'' इसके अलावा अदालत ने कहा, ''पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपना बयान दिया है, उसने स्पष्ट रूप से कहा है कि उन्होंने उसे आरोपी से शादी करने की धमकी दी थी और उसे अपनी पहली पत्नी के घर (आरोपी नंबर 2 के घर) ले गए और वहां आरोपी ने उससे यौन संबंध बनाए। आरोपियों की जमानत याचिका पर विचार करते समय सीआरपीसी की धारा 164 सबसे महत्वपूर्ण है। भले ही नाबालिग लड़की ने एक नाबालिग से बलात्कार करने जैसे जघन्य अपराध में आरोपी को रिहा करने के लिए 'अनापत्ति' दे दी हो परंतु ऐसे आरोपी को जमानत देना अपराधी को इसी तरह के अपराध करने के लिए लाइसेंस देने के अलावा और कुछ नहीं है। जो बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए संसद द्वारा बनाए गए विशेष कानून को कमजोर करेगा और बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम की धारा 9 और 10 के प्रावधानों को भी डीविएट कर देगा।''

अदालत ने कहा, ''आईपीसी की धारा 375 के प्रावधानों के अलावा, इससे समाज में एक गलत संदेश भी जाएगा। इसलिए, बड़े पैमाने पर जनता के हित में और इस तरह के यौन अपराधों को कम करने के इरादे से, अदालत आरोपी को जमानत देने के लिए नाबालिग लड़की द्वारा दर्ज की गई 'अनापत्ति' की अनदेखी करेगी और अदालत को इस तरह के जघन्य अपराध से सख्ती से निपटना चाहिए।'' केस पृष्ठभूमि अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़िता की मां ने 05.10.2020 को शिकायत दर्ज कर आरोप लगाया था कि याचिकाकर्ता-अभियुक्त ने उसकी 15 साल की नाबालिग बेटी का अपहरण कर लिया। आरोप लगाया गया था कि 27.09.2020 को रात करीब 11.00 बजे उनकी बेटी मोबाइल फोन लेकर बैठी थी। इसके बाद 28.09.2020 से वह घर से गायब थी।

03.10.2020 को दोपहर करीब 2.00 बजे पीड़िता रोते-रोते वापस लौट आई। जब उसने उससे पूछताछ की तो पीड़िता ने अपनी मां को बताया कि 27.09.2020 को जब वह अपने मोबाइल फोन के साथ बैठी थी, तो याचिकाकर्ता ने जबरन रुमाल से उसका मुंह दबा दिया और उसको अगवा कर ले गया। जिसके बाद वह उसे अपने रिश्तेदार के घर ले गया, उसे तीन दिन तक वहां रखा और उसे किसी से भी बात करने की इजाजत नहीं दी। बाद में, देर रात याचिकाकर्ता उसे एक सुनसान जगह पर ले गया और उसके हस्ताक्षर ले लिए। इसके बाद 01.10.2020 को दोपहर करीब 12.00 बजे आरोपी की पत्नी पीड़िता को ले गई और उसे एक घर में छोड़ गई, जहां याचिकाकर्ता ने उसका यौन शोषण किया। 03.10.2020 को वह किसी तरह से याचिकाकर्ता की कस्टडी से भाग आई। पुलिस ने मामला दर्ज करने के बाद याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 363, 342, 114, 506, 376, रिड विद 34, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम की धारा 4, 6, 17, 18 और बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम की धारा 9 व 10 के तहत गिरफ्तार कर लिया था। सत्र अदालत ने आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज कर दिया था, जिसके बाद उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

 

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