राजनीतिक दल सब्सिडी की पेशकश करके संवैधानिक जनादेश का निर्वहन करते हैं, इसे मुफ्त नहीं कहा जा सकता: कांग्रेस नेता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

Aug 16, 2022
Source: https://hindi.livelaw.in/

सुप्रीम कोर्ट में उस जनहित याचिका (पीआईएल) पर एक हस्तक्षेप आवेदन दायर किया गया है, जिसमें मुफ्त उपहारों को विनियमित करने के निर्देश देने की मांग की गई है। मध्य प्रदेश की एक डॉक्टर और एम.पी. महिला कांग्रेस महासचिव ने उक्त हस्तक्षेप आवेदन दायर करते हुए सुप्रीम कोर्ट में पेश किया कि राजनीतिक दल (सही तरीके से) हमारे नागरिक को सब्सिडी और रियायत दे रहे हैं क्योंकि अंततः वे अपने संवैधानिक जनादेश का निर्वहन कर रहे हैं, जो हमारे देश के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए आवश्यक है।
 

सुप्रीम कोर्ट में यह दलील डॉ. जया ठाकुर ने एडवोकेट वरुण ठाकुर के माध्यम से 'इलेक्शन फ्रीबीज' मुद्दे पर भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका में एक हस्तक्षेप आवेदन में दी।

उपाध्याय की याचिका में चुनाव आयोग को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि राजनीतिक दलों को चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से तर्कहीन मुफ्त उपहारों का वादा करने या वितरित करने की अनुमति न दी जाए और यदि कोई पार्टी ऐसा करती है तो उसका रजिस्ट्रेशन रद्द करें या ऐसी पार्टियों का चुनाव चिन्ह जब्त करें।
 

न्यायालय को इस तरह के एक निकाय के गठन के लिए एक आदेश पारित करने में सक्षम बनाने के लिए पीठ ने याचिकाकर्ता, केंद्र सरकार और भारत के चुनाव आयोग को सुझाव देने का निर्देश दिया था। हालांकि, भारत के चुनाव आयोग ने इसका हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त को राज्य के कल्याण और सरकारी खजाने पर आर्थिक दबाव के बीच संतुलन बनाने पर जोर दिया था।

सीजेआई ने कहा था,

"अर्थव्यवस्था में पैसा गंवाना और लोगों का कल्याण, दोनों को संतुलित करना होगा। इसलिए यह बहस और विचार रखने के लिए कोई होना चाहिए।"
 

सीजेआई एनवी रमना और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने मुफ्त उपहार बांटने के लिए राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने के पहलू पर गौर करने से भी इनकार कर दिया।

सीजेआई ने कहा,

"मैं डी- रजिस्ट्रेशनके पहलू पर गौर नहीं करना चाहता। यह एक अलोकतांत्रिक बात है। आखिरकार हम एक लोकतंत्र हैं।"

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि एक अन्य प्रश्न जिस पर विचार करने की आवश्यकता है वह यह है कि न्यायालय इस मामले में किस हद तक हस्तक्षेप कर सकता है।

"सवाल यह है कि अब हम किस हद तक हस्तक्षेप कर सकते हैं या इस मुद्दे में जा सकते हैं? कारण यह है कि चुनाव आयोग है, जो एक स्वतंत्र निकाय है और राजनीतिक दल हैं। हर कोई है। यह उन सभी लोगों का विवेक है। यह निश्चित रूप से है चिंता और वित्तीय अनुशासन का मुद्दा होना चाहिए, लेकिन भारत जैसे देश में जहां गरीबी है, हम उस मुद्दे को नजरअंदाज नहीं कर सकते।"

शीर्ष न्यायालय ने पहले ही मुफ्त उपहारों को एक "गंभीर मुद्दा" करार दिया है और ईसीआई के रुख के संबंध में भी आपत्ति व्यक्त की है कि मुफ्त की पेशकश एक पार्टी का नीतिगत निर्णय है और आयोग राज्य की नीतियों और निर्णयों को विनियमित नहीं कर सकता, जो कि पार्टी जब चुनाव जीतकर सरकार बनाती है तो ऐसे निर्णय लेती है।

उपाध्याय की याचिका में अदालत से यह घोषित करने की प्रार्थना की है:

: 1. चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से तर्कहीन मुफ्त का वादा मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करता है, निष्पक्ष चुनाव की जड़ें हिलाता है और चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता को खराब करता है।

2. चुनाव से पहले सार्वजनिक धन से निजी वस्तुओं/सेवाओं का वादा/वितरण संविधान के अनुच्छेद 14, 162, 266 (3) और 282 का उल्लंघन करते हैं।

3. मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से तर्कहीन मुफ्त उपहारों का वादा/वितरण आईपीसी की धारा 171बी और धारा 171सी के तहत रिश्वत और अनुचित प्रभाव के समान है।

 

आपकी राय !

Gujaraat में अबकी बार किसकी सरकार?

मौसम