प्रधानमंत्री जी, प्रदेश का 71 फीसदी कपड़ा उद्योग नोएडा और ग्रेटर नोएडा में है, और आप ही उसे बंद होने से बचा सकते हैं : ललित ठुकराल

Apr 21, 2020

प्रधानमंत्री जी, प्रदेश का 71 फीसदी कपड़ा उद्योग नोएडा और ग्रेटर नोएडा में है, और आप ही उसे बंद होने से बचा सकते हैं  : ललित ठुकराल

 

   * मजदूरों को वेतन दिलाने के लिए अपैरल इंडस्ट्रीज़ की पीएम से गुहार
   रेडीमेड गारमेंट निर्माण में काम करते हैं करीब 1.30 करोड़ मजदूर
   * उद्योग का कहना है कि मार्च का वेतन किसी तरह दे दिया लेकिन अप्रैल और मई का नहीं दे सकते
   * अधिकांश उद्योगपतियों ने कहा है कि प्रधानमंत्री जी आप हमें चाहे जेल भेज दो, लेकिन हम अप्रैल की सैलरी नहीं देंगे
    "सरकार के राजस्व एवं रोजगार देने में महत्वपूर्ण योगदान करने वाला एमएसएमई सेक्टर पहले से ही वैश्विक मंदी की मार से टूटा हुआ है -
विपिन मल्हन
   * सरकार का यह निर्देश उद्योगों को दिवालियापन की ओर घसीट सकता है - अमरिंदर सिंह -मुख्यमंत्री पंजाब
   * उद्योग पतियों ने अब अपनी अपनी कंपनियों का ताला बंद करके सरकार को उसकी चाबी देने की तैयारी कर ली है।
    लॉकडाउन के दौरान इनमें से ज्यादातर उद्योगों की आय बिल्कुल बंद हो गयी है।

  * प्रधानमंत्री यदि चाहें, तो ईएसआईसी अधिनियम में बदलाव लाने के लिए अध्यादेश ले आयें, ताकि मरणासन्न उद्योगों को आक्सीजन दी जा सके- सत्येन्द्र सिंह (श्रम कानून सलाहकार)

उद्योग विहार : मुख्य सम्पादक : दुनिया के अधिकतर देशों में लॉकडाउन होने से भारत के अपैरल इंडस्ट्रीज़ को तगड़ा झटका लगा है। वैश्विक अपैरल निर्यात में अच्छी-खासी पकड़ रखने वाले भारतीय अपैरल उद्योग को इस समय जो आर्डर कैंसलेशन और कन्साइनमेंट डिलिवरी नहीं लेने की घटनाओं से दो-चार होना पड़ रहा है।

कोरोना वायरस की वजह से दुनिया के अधिकतर देशों में लॉकडाउन होने से भारत के अपैरल इंडस्ट्रीज़ को तगड़ा झटका लगा है। वैश्विक अपैरल निर्यात में अच्छी-खासी पकड़ रखने वाले भारतीय अपैरल उद्योग को इस समय जो आर्डर कैंसलेशन और कन्साइनमेंट डिलिवरी नहीं लेने की घटनाओं से दो-चार होना पड़ रहा है, उसे देखते हुए अनुमान है कि यहां के निर्यातकों को करीब 4 बिलियन डॉलर का नुकसान होने वाला है।

नोएडा की स्थापना औद्योगिक शहर के रूप में हुई थी। शुरुआत के दो दशकों में यहां पर उद्योगों के लगाने पर ही जोर रहा। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग बड़े पैमाने पर आए। प्रदेश की आर्थिक राजधानी नोएडा की प्रति व्यक्ति आय उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय से दस गुना से भी ज्यादा है। उत्तर प्रदेश के अर्थ एवं संख्या विभाग ने वर्ष 2018-19 के जीडीपी के आंकड़े जारी किए हैं। इन आंकड़ों के अनुसार गौतम बुद्ध नगर जिला पूरे प्रदेश में सबसे आगे है। कपडा उद्योग का प्रमुख केंद्र होने की वजह से प्रदेश सरकार ने नोएडा को "City Of Apparels" घोषित किया था। लेकिन लॉकडाउन के इस आपात समय में इस उधोग को भयानक मंदी का दौर देखने को मिल रहा है व्यापार पूरी तरह ठप्प है और ऊपर से व्यवसायियों पर सरकार से किसी भी प्रकार की मदद न मिलने से यह उद्योग अब अपनी अंतिम साँसे गिनता नजर आ रहा है। सरकार के नए आदेश में 20 अप्रैल से कुछ कारखाने खोलने के आदेश जारी हुए लेकिन उसमें भी गारमेंट इंडस्ट्रीज़ का कही जिक्र नहीं है। इस सिलसिले में नोएडा अपैरल एक्सपोर्ट क्लस्टर के अध्यक्ष ललित ठुकराल ने कहा कि प्रदेश का 71 फीसदी कपड़ा उद्योग नोएडा और ग्रेटर नोएडा में है। "City Of Apparels" में ही यदि गारमेन्ट व्यवसायी काम न कर सके तो ये कहाँ का इन्साफ है।' उन्होंने इस सिलसिले में प्रदेश सरकार के उच्च अधिकारिओ से बात की और सरकार ने उन्हें भरोसा दिया है गारमेंट इंडस्ट्रीज़ को भी इसमें राहत देने का ऐलान जल्द किया जायेगा। इस मुश्किल समय में "नोएडा अपैरल एक्सपोर्ट क्लस्टर" एक्सपोर्टरों की आवाज मजबूती के साथ उठा रहा है।

नोएडा अपैरल एक्सपोर्ट क्लस्टर (NAEC) के अध्यक्ष ललित ठुकराल ने कहा, गौतमबुद्धनगर जिले में कपड़ा निर्माण और निर्यात करने वाली कंपनियों ने जिला प्रशासन और राज्य सरकार को सूचित किया है कि उनके पास आर्थिक तंगी की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। जिसके कारण, वे अप्रैल महीने के लिए अपने श्रमिकों को वेतन का भुगतान नहीं कर पाएंगे।

नोएडा अपैरल एक्सपोर्ट क्लस्टर (NAEC) के अध्यक्ष ललित ठुकराल ने कहा, जिले में परिधान और कपड़ा उद्योग, अन्य स्थानों की तरह, पहले से ही कोविड -19 के प्रकोप के कारण वैश्विक संकट से त्रस्त है। सरकार की हाल ही में सलाह है कि तालाबंदी की अवधि के दौरान भी नियोक्ताओं द्वारा मजदूरी का भुगतान किया जाना चाहिए। " और सरकार का यह तुगलकी आदेश परिधान उद्योग को संकट में धकेल देगा। कपड़ा और सहायक उपकरण निर्यातक किसी तरह मार्च में पूरी मजदूरी का भुगतान करने में कामयाब रहे, लेकिन हम अप्रैल महीने के लिए मजदूरी का भुगतान नहीं कर सकते। यह हमारे लिए ऐसा संकट का समय है की जब सरकार को इस उद्योग के लिए एक विशेष राहत पैकेज लेकर आना ही होगा।

अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (एईपीसी) का कहना है कि इस समय जिस तरह से बड़े पैमाने पर निर्यात आर्डर कैंसिल किए जा रहे या डिलिवरी स्थगित की जा रही है, उसे देखते हुए लगता है कि भारतीय अपैरल निर्यातकों को करीब 4 बिलियन डॉलर के निर्यात का नुकसान होगा। इसके साथ ही देश में भी लॉकडाउन हो गया है। इस वजह से यहां भी उत्पादन बंद है। यही नहीं, वैश्विक खरीददारों ने इन्हें महीनों पहले भेजे गए सामानों के लिए अभी तक पेमेंट नहीं भेजा है।

जहां कपड़ा भेजते थे उनकी स्थिति है खराब

एईपीसी के अध्यक्ष ए.शक्तिवेल का कहना है कि भारतीय परिधान निर्यातक परंपरागत रूप से अमेरिका और यूरोपीय देशों को रेडीमेड गारमेंट का निर्यात करते हैं। उन देशों में पिछले कुछ सप्ताह से लॉकडाउन है। इस वजह से निर्यात तो प्रभावित हुआ ही है, पहले से जो निर्यात कंशाइनमेंट गया है, उसका भी पेमेंट अटका हुआ है। इसलिए इस क्षेत्र को सरकार के प्रोत्साहन की तत्काल जरूरत है।

श्रमिकों को मजदूरी की व्यवस्था के बारे में, एन ए ई सी के अध्यक्ष ललित ठुकराल ने कहा है कि  ने कहा कि निर्यातकों पर दबाव डालने के बजाय, सरकार को नियमित रूप से अपने भुगतान करने के अन्य तरीकों पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा है की हमारे आगे कुआँ है, और पीछे खाई है हम किसी भी सूरत में सैलरी देने की स्थिति में नहीं हैं। हमारी प्रधानमंत्री जी से अपील है की हमारे उद्योगों को बचाएँ, अन्यथा जब उद्योग धन्धे ही बंद हो जायेंगे तो श्रमिकों को रोजगार कौन देगा ?

उन्होंने कहा नोएडा का परिधान उद्योग अकेले (10 करोड़ प्रति माह कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) में जमा करता है। चूंकि यह भारतीय श्रमिकों के लिए एक स्व-वित्तपोषण सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य बीमा योजना है, और कर्मचारी कोष राज्य बीमा निगम द्वारा प्रबंधित किया जाता है, इसलिए ईएसआई अधिनियम, 1948 में निर्धारित नियमों और विनियमों के अनुसार, सरकार को इस संगठन को आदेश देना चाहिए कि परिधान और कपड़ा उद्योग से जुड़े श्रमिकों को नियमित मासिक भुगतान उसके माध्यम से किया जाये।

नोएडा क्षेत्र में, परिधान क्षेत्र के माध्यम से लगभग 10 लाख लोगों को रोजगार मिल रहा है, यह बताते हुए इस क्षेत्र में सालाना 18,000 करोड़ से अधिक के वस्त्र निर्यात होते हैं | ललित ठुकराल ने आगे कहा कि इस तालाबंदी से जिले में लगभग 3,000 निर्यात इकाइयाँ प्रभावित हुई हैं।

उन्होंने कहा निर्यात क्षेत्र के तहत, विनिर्माण के लिए केवल दो ही मौसम होते हैं, जिनमें की हमारा उत्पादन सर्वाधिक होता है। अक्टूबर से दिसंबर में किए गए परिधानों का निर्यात गर्मी के मौसम के लिए फरवरी और मार्च में किया जाता है। कोविड -19 के प्रकोप के कारण, निर्यात के अधिकांश आदेश या तो रद्द कर दिए गए हैं या रोक दिए गए हैं, इसके अलावा पहले से भेजे गए खेप भी अटक गए हैं। यहां तक कि आर्डर के विरुद्ध निर्मित परिधान भी कारखानों में पड़े हुए हैं और खराब हो रहे हैं, क्योंकि आवाजाही / परिवहन पर प्रतिबंध है। स्थिति इतनी अधिक गंभीर हो गई है कि हमें अभी तक खरीददारों से भुगतान का कोई आर्डर नहीं मिला है, सरकार को इस उद्योग को बचाने के लिए कुछ ठोस योजना के साथ आगे आना चाहिए, न की झुनझुना पकड़ाने वाले उपायों के साथ हैं ।

मांग रहे हैं तगड़ा डिस्काउंट

एईपीसी के अध्यक्ष ए. शक्तिवेल का कहना है कि दुनिया के नामी-गिरामी फैशन रिटेल चेन में बिकने वाले परिधानों की औसत शेल्फ लाइफ दो से चार सप्ताह की ही होती है। उसके बाद उसे भारी डिस्काउंट के साथ बेच दिया जाता है। भारतीय निर्यातकों ने जो माल लॉकडाउन के पहले ही भेज दिया है, खरीददारों ने उस कन्साइनमेंट का अभी तक पेमेंट नहीं भेजा है। अब पहले ही भेज दिए गए माल के लिए भारी डिस्काउंट मांग रहे हैं। AEPC ने प्रधानमंत्री को लिखे एक पत्र में कहा है, 'हम विनम्रता पूर्वक यह बताना चाहते हैं कि हम अपने तमाम प्रयासों के बावजूद अप्रैल और मई महीनों के लिए मजदूरी का भुगतान करने की स्थिति में नहीं हैं। इस समय हमारा उत्पादन ठप है और हमारा राजस्व शून्य हो गया है।'

नोएडा एंटरप्रेन्योर्स एसोसिएशन (एनईए) की सोमवार को हुई बैठक में सरकार से लॉकडाउन अवधि में बैंक से लिए गए कर्ज का ब्याज माफ करने और इस अवधि में कर्मचारियों के वेतन का भुगतान ईएसआईसी से कराने की मांग की है।

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उन्होंने लॉकडाउन अवधि का बिजली बिल में लगने वाले फिक्स चार्ज को माफ करने, प्राधिकरण द्वारा लिए जाने वाले लीज रेंट को माफ करने और लॉकडाउन समाप्त होने के बाद बैंक द्वारा एक साल तक का ब्याज मुक्त कर्ज देने की मांग की है। विपिन मल्हन ने बताया कि इन उपायों और सहयोग से एमएसएमई सेक्टर को पुनर्स्थापित करने में मदद मिलेगी।

एनईए अध्यक्ष विपिन मल्हन ने कहा कि मौजूदा हालात से उद्यमी चिंतित हैं। लॉकडाउन समाप्त होने के बाद उद्योगों को सुचारु रूप से चलाने में कई माह का समय लगेगा। उन परिस्थितियों से उबरने में उद्योगों को काफी वित्तीय मदद की भी आवश्यकता होगी। श्रमिकों के भारी संख्या में पलायन के बाद उनके पुन: आने तक इन्तजार करना या नये श्रमिकों को भर्ती करके उन्हें ट्रेंड करना भी बड़ी चुनौती होगी।

उन्होंने कहा सरकार के राजस्व एवं रोजगार देने में महत्वपूर्ण योगदान करने वाला एमएसएमई सेक्टर पहले से ही वैश्विक मंदी की मार से टूटा हुआ है। उस पर कोरोना जैसी महामारी के कारण हुए लॉकडाउन ने उसे भारी नुकसान की स्थिति में पहुंचा दिया है। ऐसे समय में उद्यमी सरकार से उम्मीद रियायत और सहयोग की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

अधिकांश उद्योगपतियों ने कहा है कि, आज स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि हम अपना मकान बेच कर भी सैलरी नहीं दे सकते हैं, क्योंकि इस वक्त मार्केट में कोई खरीददार भी नहीं हैं।आप हमें चाहे जेल भेज दो लेकिन हम सैलरी अब नहीं देंगे।

"पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया है कि वह लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने का उद्योगों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को दिए गए निर्देशों पर पुन: विचार करें क्योंकि यह उन्हें दिवालियापन की ओर धकेल सकता है। उन्होंने केन्द्र से अनुरोध किया कि इस मुश्किल वक्त में उद्योगों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को अपूरणीय क्षति पहुंचाए बगैर वह कर्मचारियों के हितों की रक्षा करने के लिए नवोन्मेषी तरीके तलाशें। सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में सिंह ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी आदेश पर पुन: विचार करने का अनुरोध किया है। मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में लिखा है, इससे जुड़े आदेश में कहा गया है,सभी नियोक्ता, फिर चाहे वह उद्योग हों या फिर दुकानें और व्यावसायिक प्रतिष्ठान, लॉकडाउन के अवधि में अपना प्रतिष्ठान बंद करने के दौरान अपने सभी कर्मचारियों को बिना किसी कटौती के तय तिथि पर वेतन का भुगतान करें। उन्होंने लिखा है कि आदेश के इस हिस्से पर पुन: विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि इसका उद्योगों, दुकानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर वित्तीय कुप्रभाव होगा और वह दिवालियापन की ओर से जा सकते हैं क्योंकि लॉकडाउन के दौरान इनमें से ज्यादातर उद्योगों की आय बिल्कुल बंद हो गयी है। सिंह का कहना है कि केन्द्र सरकार उद्योगों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की वित्तीय स्थिति को ज्यादा नुकसान पहुंचाए बगैर कर्मचारियों के हितों की रक्षा करने के लिए कुछ नए/नवोन्मेषी तरीके खोजे। "

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हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर उद्योग जगत के लिए राहत माँग की है इसी तरह कई सांसदों एवं प्रतिनिधियों ने भी उद्योग जगत को राहत प्रदान करने की माँग की है।

आई.आई.ए. ने सभी उद्यमियों के मध्य एक वृहद ऑनलाइन सर्वे भी किया है जिसमें सभी ने अप्रैल माह व इसके आगे सैलरी देने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया है। सभी का एक स्वर में कहना है की अब सरकार जो भी कानूनी कार्यवाही करे हम उसके लिए पूरी तरह से तैयार हैं। उद्योग पतियों ने अब अपनी अपनी कंपनियों का ताला बंद करके सरकार को उसकी चाबी देने की तैयारी कर ली है।

"श्रम कानून सलाहकार सत्येन्द्र सिंह का कहना है की ईएसआईसी में वर्तमान में ऐसी कोई सुविधा नहीं है की कर्मचारियों को लॉकडाउन की सैलरी दी जाये। लेकिन कुछ लोग ई एस आई सी अधिनियम एवं इसकी अटल बीमित योजना को गलत तरीके से तोड़मरोड़ कर पेश कर रहे हैं, जो की पूर्णतया गलत है और निराधार है। उन्होंने आगे कहा की हाँ, प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी शुरू से ही अपनी ऐसी कार्यशैली के लिए मशहूर हैं और उन्होंने जिस भी कानून को लाने की ठानी है वे जरूर ले आये हैं चाहे इसके लिए उनको अध्यादेश ही क्यों न लाना पड़ा है। इसी तरह प्रधानमंत्री यदि चाहें तो पुनः ईएसआईसी अधिनियम में बदलाव लाने के लिए अध्यादेश ले आयें ताकि मरणासन्न उद्योगों को आक्सीजन दी जा सके।"

हालाँकि सभी व्यापारियों एवं व्यापारियों के संगठनों ने चाहे नोएडा हो या हरियाणा सभी ने अप्रैल माह की सैलरी देने से साफ़ मना कर दिया है और अब देखना है की सरकार उद्योगों को कोई राहत देती है या नहीं। हालाँकि वर्तमान अवधि में क्योंकि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 लागू है अतः और कोई भी अन्य अधिनियम इस समय  प्रभावी नहीं है इसीलिए सभी नियोक्ताओं के हाथ बंधे हुए हैं।  "नोएडा में आई. आई. ए. के राजीव बंसल , गाजियाबाद-कवी नगर इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल शर्मा , बुलंद शहर इंडस्ट्रियल एरिया एसोसिएशन के अध्यक्ष संजीव सचदेवा के साथ "लॉ ऑफ़ लेबर" एडवाइजर्स एसोसिएशन उ. प्र. के अध्यक्ष सत्येन्द्र सिंह"ने भी श्रम मंत्री एवं प्रधानमन्त्री को ज्ञापन देकर उद्योगों को राहत पैकेज की माँग की है तथा सैलरी का बोझ नियोक्ताओं पर न डालने का अनुरोध किया है।

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