जमानत अर्जी में आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामले पर विचार करते वक्त सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दिए गए बयान प्रासंगिक: सुप्रीम कोर्ट

Jul 19, 2022
Source: https://hindi.livelaw.in

न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश को खारिज करते हुए कहा, "पूर्व दृष्टया, आरोप गंभीर हैं और यह नहीं कहा जा सकता है कि रिकॉर्ड में कोई सामग्री नहीं है।" हाईकोर्ट ने 11 साल की बच्ची से रेप और हत्या के आरोपी शख्स को जमानत मंजूर कर दी थी।

राज्य सरकार द्वारा दायर अपील पर विचार करते हुए, बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164/161 के तहत गवाहों के अपराध का संकेत देने वाले बयान सहित रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों की अनदेखी की है।

कोर्ट ने कहा,

"सीआरपीसी की धारा 161 के तहत बयान साक्ष्य में स्वीकार्य नहीं हो सकते हैं, लेकिन गंभीर अपराध के मामले में जमानत के आवेदन में एक आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामले पर विचार करने के लिए (ये बयान) प्रासंगिक हैं।"

कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी को जमानत उसके खिलाफ आरोपों की जघन्य प्रकृति, कथित अपराध की गंभीरता और अंतिम दोषसिद्धि की स्थिति में सजा की गंभीरता पर विचार किए बिना केवल इसलिए दी गई थी, क्योंकि इस मामले के एक सह-आरोपी को भी जमानत मिल गई थी।

हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देने के लिए 'दाता राम बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं अन्य, 2018 (3), एससीसी, 2' मामले में की गई टिप्पणियों पर भरोसा जताया था।

इस बारे में पीठ ने कहा:

"दाताराम सिंह (सुप्रा) मामले में की गयी टिप्पणी एवं दिशानिर्देश चेक जारी करने और फिर चेक के भुगतान को रोकने के लिए नेगोशिएब इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत गिरफ्तारी और लंबे समय तक हिरासत में रखने के संदर्भ में थे। आरोपी को हिरासत में रखने के लगभग पांच महीने बाद भी पहले ट्रायल कोर्ट ने और फिर हाईकोर्ट ने जमानत याचिका खारिज कर दी थी।''

जमानत आदेश को रद्द करते हुए बेंच ने कहा:

"प्रतिवादी-अभियुक्त के खिलाफ एक ग्यारह वर्षीया बच्ची के बलात्कार और निर्मम हत्या का आरोप लगाया गया अपराध जघन्य और कायरतापूर्ण है। बलात्कार के साथ ही अपराध में पकड़े जाने से बचने के लिए एक बच्ची की हत्या का आचरण और फिर सबूत मिटाने के लिए लड़की एवं उसके दागदार कपड़े और अन्य सामान को मिट्टी में दफनाना और हत्या के अपराध से बचने की आशंका कानून की प्रक्रिया से बचने की प्रवृत्ति का संकेतक है। यह संभव है कि प्रतिवादी-आरोपी कानून की प्रक्रिया से बचने के लिए भाग सकता है।"

मामले का विवरण

इंद्रेश कुमार बनाम उत्तर प्रदेश सरकार | 2022 लाइव लॉ (एससी) 610 | सीआरए 938/2022 | 12 जुलाई 2022 | जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम

हेडनोट्स: दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 439, 161 - जमानत - सीआरपीसी की धारा 161 के तहत बयान साक्ष्य में स्वीकार्य नहीं हो सकता है, लेकिन गंभीर अपराध के मामले में जमानत देने के आवेदन में आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामले पर विचार करने के लिए प्रासंगिक हैं।

सारांश: पॉक्सो आरोपी को जमानत देने वाले हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील, आरोपी ने कथित तौर पर 11 साल की लड़की के साथ बलात्कार और हत्या की – अपील को अनुमति दी - पूर्व दृष्टया, आरोप गंभीर हैं, सजा गंभीर है और यह नहीं कहा जा सकता है कि रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं है - आदेश निरस्त।

 

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