18 साल से अधिक उम्र का व्यक्ति अपनी मर्जी से चुन सकता है धर्म, अवैध धर्म परिवर्तन से जुड़ी याचिका पर SC की टिप्पणी

Apr 12, 2021
Source: https://navbharattimes.indiatimes.com/

याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय के वकील गोपाल शंकर नारायण ने इस मामले में दाखिल अर्जी में कहा कि जबरन धर्म परिवर्तन और इसके लिए काला जादू के इस्तेमाल पर रोक लगाया जाए। धर्म परिवर्तन के लिए शाम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल हो रहा है देश भर में हर हफ्ते ये सब हो रहा है जिसे रोकने के लिए कानून की जरूरत है।

हाइलाइट्स:

  • काला जादू और अवैध व जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक की याचिका खारिज
  • अदालत का रुख देखते हुए याचिकाकर्ता ने अर्जी वापस लेने की बात कही
  • अब केंद्र सरकार और लॉ कमिशन के सामने प्रतिवेदन देंगे याचिकाकर्ता

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया जिसमें अंधविश्वास के चलन, काला जादू और अवैध व जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि 18 साल से अधिक उम्र का व्यक्ति अपनी मर्जी से अपना धर्म चुनने के लिए स्वतंत्र है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ये अर्जी पब्लिसिटी इंट्रेस्ट लिटिगेशन है। अदालत का रुख देखते हुए याचिकाकर्ता ने अर्जी वापस लेने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी वापस लेने की इजाजत देते हुए उसे खारिज कर दी।

अनुच्छेद- 14, 21 और 25 के उल्लंघन का दिया था हवाला
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय के वकील गोपाल शंकर नारायण ने इस मामले में दाखिल अर्जी में कहा कि जबरन धर्म परिवर्तन और इसके लिए काला जादू के इस्तेमाल पर रोक लगाया जाए। धर्म परिवर्तन के लिए शाम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल हो रहा है देश भर में हर हफ्ते ये सब हो रहा है जिसे रोकने के लिए कानून की जरूरत है। इस तरह के धर्मांतरन के शिकार विक्टिम गरीब तबके से आते हैं और ज्यादातर सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े हैं और खासकर एससी व एसटी श्रेणी से ताल्लुक रखने वाले लोग हैं। इस तरह से अंधविश्वास का चलन, काला जादू और अवैध धर्मांतरण का मामला संविधान के अनुच्छेद- 14, 21 और 25 का उल्लंघन करता है।

सरकार को कानून बनाने से किसने रोका है
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने सवाल किया कि अनुच्छेद-25 के तहत सभी धर्म को प्रचार प्रसार करने का अधिकार मिला हुआ है। तब गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि धर्म को प्रचार प्रसार का अधिकार है लेकिन इसके लिए अपवाद भी बनाए गए हैं। पब्लिक ऑर्डर, हेल्थ और मोरल ग्राउंड शर्त है कि ये आड़े नहीं आना चाहिए। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आखिर सरकार को कानून बनाने से रोका किसने है। कई राज्यों में इसके लिए कानून भी है। इस पर याचिकाककर्ता के वकील ने कहा कि महाराष्ट्र में अंध विश्वास के खिलाफ कानून है लेकिन केंद्र सरकार का कोई कानून नहीं है।

...तो फिर खटखटाएंगे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि ये अर्जी पब्लिसिटी इंट्रेस्ट लिटिगेशन है। तब याचिकाकर्ता ने कहा कि हम इस मामले में केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और लॉ कमिशन के सामने प्रतिवेदन देना चाहते हैं और अर्जी वापस लेना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी वापस लेने की इजाजत देते हुए अर्जी खारिज कर दी। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने एनबीटी को बताया कि वह केंद्र सरकार और लॉ कमिशन के सामने प्रतिवेदन देंगे और अगर सरकार इस पर कानून नहीं बनाती है तो फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।

अंध विश्वास और काला जादू धार्मिक स्वतंत्रता के दायरे में नहीं
याचिका में कहा गया था कि अनुच्छेद-25 धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसमें कहा गया है कि सभी नागरिक को समान अधिकार है कि वह अपने धर्म को माने और धार्मिक प्रैक्टिस करे। इसमें शर्त लगाई गई है कि पब्लिक ऑर्डर, नैतिकता और हेल्थ पर विपरीत असर नहीं होना चाहिए। ऐसे में ये साफ है कि किसी भी तरह से धन बल का प्रयोग करके धर्मांतरण अथवा धर्म परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। इस तरह से देखा जाए तो अंध विश्वास और काला जादू जैसी हरकत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में नहीं है। साथ ही याचिका में कहा गया है कि सरकार इंटरनैशनल लॉ से भी बंधा हुआ है जिसके तहत राज्य (सरकार) की ड्यूटी है कि वह प्रत्येक नागरिक को प्रोटेक्ट करे और उसके धार्मिक स्वतंत्रता को बनाए रखे।

 

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