सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : जानिए सुप्रीम कोर्ट में कैसा रहा पिछला सप्ताह

May 29, 2021
Source: https://hindi.livelaw.in/

24 मई 2021 से 29 मई 2021 तक सुप्रीम कोर्ट के कुछ ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी में दिए वाक्‍यांश "कुछ समय पहले" का अर्थ 'तुरंत पहले' नहीं हो सकता हैः सुप्रीम कोर्ट ने दहेज मृत्यु के मामलों के मुकदमो के लिए दिशा निर्देश दिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी में दिए वाक्‍यांश "कुछ समय पहले" का अर्थ 'तुरंत पहले' से नहीं लगाया जा सकता है। सीजेआई एनवी रमना और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष को दहेज मृत्यु और पति या रिश्तेदारों द्वारा दहेज के लिए की गई क्रूरता या उत्पीड़न के बीच "निकट और सजीव सबंध" स्थापित करना चाहिए।

अदालत ने कहा कि धारा 304 बी, आईपीसी मृत्यु को मानव हत्या या आत्मघाती या आकस्मिक के रूप में वर्गीकृत करने में संकुचित का दृष्टिकोण नहीं रखती है।

'एफआईआर दर्ज, 6 व्यक्ति गिरफ्तार': पश्चिम बंगाल सरकार ने बीजेपी के 2 कार्यकर्ताओं की हत्या की एसआईटी जांच की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में कहा सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल सरकार को एक रिट याचिका पर जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।

इस रिट याचिका में चुनाव के बाद की हिंसा के दौरान तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के कहने पर कथित रूप से दो भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या की सीबीआई / एसआईटी जांच की मांग की गई थी। न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति बीआर गवई की अवकाश पीठ को पश्चिम बंगाल राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने बताया कि राज्य पुलिस ने दोनों हत्याओं के संबंध में एफआईआर दर्ज की है और शिकायतकर्ताओं के आरोपों के आधार पर दोनों मामलों में तीन-तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

हैकिंग, डेटा चोरी न केवल सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के अंतर्गत, बल्कि आईपीसी के तहत भी अपराध को आकर्षित करते हैं': सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि हैकिंग और डेटा चोरी न केवल सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) के दंडात्मक प्रावधानों के अंतर्गत, बल्कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत भी अपराध को आकर्षित करते हैं और आईटी अधिनियम आईपीसी की प्रयोज्यता को बाहर नहीं करता है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की अवकाश पीठ पंजाब और हरियाणा के उच्च न्यायालय के मार्च के आदेश (प्राथमिकी के संबंध में अग्रिम जमानत याचिका खारिज) के खिलाफ याचिकाकर्ता (एक जगजीत सिंह) की पुनर्विचार याचिका पर विचार कर रही थी। याचिकाकर्ता पर आईपीसी की धारा 406 (विश्वास का आपराधिक हनन), धारा 408 (क्लर्क या नौकर द्वारा उसे सौंपी गई संपत्ति के संबंध में आपराधिक विश्वासघात), धारा 379 (चोरी), धारा 381 (मालिक के कब्जे की संपत्ति की क्लर्क या नौकर द्वारा चोरी), 120-बी और धारा 34, आईटी अधिनियम 2000 की धारा 43 (कंप्यूटर, कंप्यूटर सिस्टम आदि को नुकसान), धारा 66 (कंप्यूटर से संबंधित अपराध), 66-बी (बेईमानी से चोरी का कंप्यूटर संसाधन या संचार उपकरण प्राप्त करना) का आरोप है। प्राथमिकी में सॉफ्टवेयर की चोरी, डेटाबेस और सोर्स कोड आदि की अवैध नकल के आरोप हैं।

"असंभवता का सिद्धांत न्यायालय के आदेशों पर भी लागू होता है, लागू करने की संभावना पर विचार हो " : सुप्रीम कोर्ट "असंभवता का सिद्धांत न्यायालय के आदेशों पर भी लागू होता है", सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 17 मई को उत्तर प्रदेश राज्य में चिकित्सा सुविधाओं को अपग्रेड करने के लिए युद्ध स्तर पर इंतजामों पर जारी निर्देशों पर रोक लगा दी। यह कहते हुए कि उच्च न्यायालयों को उन आदेशों को पारित करने से बचना चाहिए जो लागू करने में सक्षम नहीं हैं। न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति बीआर गवई की एकपीठ ने कहा, "... हमारी राय है कि उच्च न्यायालय को सामान्य रूप से दिए गए निर्देशों के कार्यान्वयन की संभावना पर विचार करना चाहिए। और इसके द्वारा ऐसे निर्देशों से बचा जाना चाहिए जिन्हें लागू करना संभव नहीं है।

प्रवासी मजदूर स्वतः संज्ञान : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से असंगठित श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय डेटाबेस की स्थिति पर जवाब मांगा सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र को असंगठित श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय डेटाबेस (NDUW) की स्थिति पर एक जवाबी हलफनामा दायर करने और नई सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के तहत क्या कदम उठाए गए हैं, इस बारे में निर्देश लेने का निर्देश दिया। जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की एक बेंच COVID-19 महामारी के मद्देनज़र प्रवासी श्रमिकों द्वारा सामना किए जा रहे मुद्दों को संबोधित करने के लिए स्वत: संज्ञान - "इन रि प्रॉब्लम्स एंड मिसरीज ऑफ माइग्रेंट वर्कर्स" मामले की सुनवाई कर रही थी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समय की मांग यह सुनिश्चित करने की है कि लाभ संबंधित जरूरतमंद व्यक्तियों तक पहुंचे और इसे प्राप्त करने के लिए पंजीकरण की प्रक्रिया को तेज करना होगा।

हाईकोर्ट अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते समय केवल असाधारण परिस्थितियों में आरोपी को सुरक्षा की राहत प्रदान कर सकता है: सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट अग्रिम जमानत के आवेदन को खारिज करते समय केवल असाधारण परिस्थितियों में आरोपी को सुरक्षा की राहत प्रदान कर सकता है। सीजेआई रमाना की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी कहा कि इस तरह के सुरक्षात्मक आदेशों के कारणों की व्याख्या करनी जरूरी है। बेंच में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस भी शामिल थे। बेंच ने कहा कि, "यहां तक कि जब न्यायालय किसी आरोपी को अग्रिम जमानत देने के लिए इच्छुक नहीं है, तब भी ऐसी परिस्थितियां हो सकती हैं जहां उच्च न्यायालय की राय है कि गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति को कुछ समय के लिए असाधारण परिस्थितियों के कारण जब तक कि वे ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं करते हैं, तब तक उनकी सुरक्षा करना आवश्यक है। उदाहरण के लिए आवेदक कुछ समय के लिए सुरक्षा की गुहार लगा सकता है क्योंकि वह अपने परिवार के सदस्यों का प्राथमिक देखभाल करने वाला या कमाने वाला व्यक्ति है और उस उनके घर वालों के लिए सुविधाओं की व्यवस्था करने की आवश्यकता है।"

"ताजा मामलों का उल्लेख करने के लिए केवल ईमेल द्वारा अनुरोध किए जाएं": सुप्रीम कोर्ट ने अवकाश पीठों द्वारा अति-आवश्यक मामलों की सुनवाई के लिए नियम जारी किए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अधिसूचित किया है कि अवकाश पीठों के समक्ष नए मामलों का उल्लेख करने के लिए केवल ईमेल द्वारा अनुरोध किया जाए। ईमेल निर्धारित प्रारूप में ईमेल आईडी sc@sci.nic.in पर भेजना होगा। यह निर्देश 27 मई को जारी किए गए एक सर्कुलर के रूप में जारी किया गया है। इसमें सक्षम प्राधिकारी के निर्देशों के तहत गर्मी की छुट्टी के दौरान अति-आवश्यक मामलों की सुनवाई की सुविधा के लिए नियमों और व्यवस्थाओं को अधिसूचित किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें COVID के कारण मृत्यु की आशंका को अग्रिम जमानत का आधार माना गया था सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि COVID महामारी जैसे कारणों से मौत की आशंका अग्रिम जमानत देने का एक वैध आधार है। कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को अग्रिम जमानत देने के लिए एक मिसाल के रूप में उद्धृत नहीं किया जाना चाहिए और अदालतों को गिरफ्तारी पूर्व जमानत आवेदनों पर विचार करते समय हाईकोर्ट के फैसले ‌की टिप्पणियों पर भरोसा नहीं करना चाहिए।

 

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