किसी के नाम पावर ऑफ अटार्नी करने से वह संपत्ति का स्वामी नहीं बन सकता सुप्रीम कोर्ट का फैसला
किसी के नाम पावर ऑफ अटार्नी करने से वह संपत्ति का स्वामी नहीं बन सकता सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि जीपीए बिक्री और एसए/जीपीए/वसीयत ट्रांसफ़र क़ानूनी रूप से वैध नहीं है और इससे स्वामित्व का हस्तांतरण नहीं होता और न ही यह अचल संपत्ति के हस्तांतरण का वैध तरीक़ा है। यह मामला एक अधिसूचित ज़मीन का एसए/जीपीए/वसीयत के माध्यम से ख़रीद का है। पीठ ने कहा कि अचल संपत्ति ख़रीदने का यह तरीक़ा क़ानूनी रूप से वैध नहीं है क्योंकि इन अग्रीमेंट के द्वारा अचल संपत्ति में किसी भी तरह के स्वामित्व के अधिकार का सृजन नहीं होता। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीआर गवई की खंडपीठ ने शिव कुमार बनाम भारत संघ में यह अवलोकन किया, जिसमें यह कहा गया था कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 4 के तहत अधिसूचना जारी करने के बाद संपत्ति का एक खरीदार बाद में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार की धारा 24 में निहित प्रावधान का आह्वान नहीं कर सकता। सूरज लैम्प फ़ैसला इस तरह की ख़रीद की वैधता पर ग़ौर करते हुए पीठ ने सूरज लैंप एंड इंडस्ट्रीज़ प्रा. लि. माध्यम निदेशक बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य (2012) 1 SCC 656 मामले में आए फैसले का ज़िक्र किया। इस फ़ैसले में कहा गया था कि इस तरह के तरीक़ों का प्रयोग कुछ ट्रांसफ़र पर लगी रोक से बचने, स्टैम्प शुल्क और पंजीकरण शुल्क चुकाने से बचने, संपत्ति के ट्रांसफ़र पर कैपिटल गेन चुकाने से बचने, इस कारोबार में काले धन का प्रयोग करने और विकास प्राधिकरणों को शुल्कों में की गई बढ़ोतरी की राशि नहीं चुकाने के लिए किया जाता है। एसए/जीपीए/वसीयत ट्रांसफ़र के तरीक़े (a) विक्रेता क्रेता के पक्ष में एक बिक्री क़रार बनाता है जो बिक्री, डिलीवरी और परिसंपत्ति पर क़ब्ज़े के लिए संबंधित राशि की पूर्ण भुगतान और ज़रूरत पड़ने पर किसी भी तरह के दस्तावेज़ तैयार करने के लिए होता है। या, बिक्री क़रार किया जाता है जिसमें संबंधित परिसंपत्ति को बेचने की सहमति व्यक्त की जाती है, जिसके साथ एक अलग से हलफ़नामा होता है, जिसमें पूरी क़ीमत प्राप्त हो जाने और क़ब्ज़ा दिलाने और बाद में जब भी ज़रूरत हो, बिक्री क़रार की बात का ज़िक्र होता है।
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