[सीपीसी आदेश VII नियम 11] नुकसान की मात्रा का फैसला ट्रायल के बाद ही किया जा सकता है, वाद को खारिज करने का आधार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Jul 12, 2022
Source: https://hindi.livelaw.in

पीठ ने यह भी दोहराया कि सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत वाद को आंशिक रूप से खारिज नहीं किया जा सकता है। इसने कहा कि या तो वाद को पूरी तरह से खारिज करना होगा या बिल्कुल भी खारिज नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने प्रतिवादी संख्या 1, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की ओर से सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी) के आदेश VII नियम 11 के तहत दायर उस अर्जी को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की जिसमें वाद को इस आधार पर खारिज करने की मांग की गयी थी कि मामले में वाद हेतुक (कॉज ऑफ एक्शन) का खुलासा नहीं किया गया था और मुकदमा कानून द्वारा वर्जित था।

वाद में कहा गया था कि वादी ने एक जनवरी, 1995 को प्रतिवादी संख्या 1 के साथ एक निजी सहायक के रूप में कार्य शुरू किया था। प्रतिवादी संख्या 1 द्वारा नियुक्त सर्च कमेटी द्वारा किए गए चयन के आधार पर वादी को 30 अप्रैल, 2017 को सचिव (नामित) के रूप में नियुक्त किया गया था।

प्रतिवादी संख्या 1 के पिछले अध्यक्ष का कार्यकाल 23 जून, 2017 को समाप्त हो गया और प्रतिवादी संख्या 2 को अगले अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया।

प्रतिवादी संख्या 1 द्वारा 29 जुलाई, 2017 को एक कार्यालय आदेश जारी किया गया था कि वादी की सचिव के रूप में नियुक्ति को स्थगित रखा जाए। आठ अगस्त, 2017 को वादी को प्रतिवादी संख्या 1 से एक और नोटिस मिला, जिसमें कहा गया था कि वादी के वेतन और अनुलाभों को वापस ले लिया जाएगा और वादी को भुगतान की गई अतिरिक्त राशि की वसूली की जाएगी।

29 जुलाई, 2017 के कार्यालय आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए वादी द्वारा पटियाला हाउस कोर्ट के समक्ष एक सिविल सूट दायर किया गया था। नौ अक्टूबर, 2017 को वादी ने त्याग पत्र दे दिया, जिसे प्रतिवादी संख्या 1 द्वारा 10 अक्टूबर, 2017 को स्वीकार कर लिया गया।

वादी द्वारा 11 अक्टूबर, 2017 को उक्त वाद वापस ले लिया गया। वादी का यह तर्क था कि इस्तीफा स्वैच्छिक नहीं था और प्रतिवादियों द्वारा वादी को इसके लिए मजबूर किया गया था और इसलिए यह अवैध मुअत्तल के बराबर है।

आदेश VII नियम XII के तहत अर्जी दायर करते समय, प्रतिवादी नं. 1 ने दलील दी कि वादी ने स्वेच्छा से अपनी सेवा से इस्तीफा दिया था और यह साबित करने के लिए कोई भी तथ्य ऐसा नहीं था, जिससे साबित हो कि वादी को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था।

यह भी दलील दी गयी थी कि वादी ने नया मुकदमा दायर करने की स्वतंत्रता के अनुरोध के बिना पहला मुकदमा वापस ले लिया था। इसलिए, काफी हद तक समान दलीलों पर आधारित नये मुकदमे को भी बाधित कर दिया गया।

दूसरी ओर, वादी ने तर्क दिया था कि पिछला दायर किया गया मुकदमा सरलता से वापस ले लिया गया था और इसके गुण-दोष के आधार पर कोई निर्णय नहीं लिया गया था। इसलिए, पूर्व निर्णित (रेस जुडिकाटा) का सिद्धांत लागू नहीं होगा।

यह भी तर्क दिया गया कि नये वाद दायर करने का कॉज ऑफ एक्शन (वाद हेतुक) पिछले वाद दायर करने के कॉज ऑफ एक्शन से पूरी तरह अलग था। यह भी कहा गया कि सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत वाद की अस्वीकृति न्यायालय को प्रदान की गई एक कठोर शक्ति है और इसलिए, इसे सख्ती से व्यक्त किया जाना चाहिए।

पक्षों को सुनते हुए, कोर्ट ने इस प्रकार टिप्पणी की:

"... इस बात को ध्यान में रखते हुए कि पिछले वाद में गुणदोष के आधार पर निर्णय नहीं लिया गया था, लेकिन वादी द्वारा इसे वापस ले लिया गया था, इसलिए रेस जुडिकाटा का अनुरोध सीपीसी के आदेश VII नियम 11 (डी) के दायरे से बाहर होगा। इसलिए, मैं प्रतिवादी संख्या 1 की इस दलील में कोई दम नहीं पाता हूं कि वर्तमान वाद चलने योग्य नहीं है।"

कोर्ट का विचार था कि सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत एक आवेदन पर निर्णय लेते समय कोर्ट को केवल वाद में दर्ज कथनों को देखना होता है। यह भी कहा गया कि सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत आवेदन का दायरा केवल उस सीमा तक सीमित है, कि क्या वादपत्र में किए गए कथनों और वादपत्र के साथ दाखिल किए गए दस्तावेजों के संदर्भ में, वाद अनुरक्षणीय है या नहीं।

कोर्ट ने कहा,

"वाद में किए गए उपरोक्त कथनों के मद्देनजर, मुझे नहीं लगता कि यह सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत दावे को खारिज करने के लिए अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए उपयुक्त मामला है।"

कोर्ट ने कहा कि भले ही यह मान लिया जाए कि वादी नोटिस की अवधि के बाद मुआवजे की हकदार नहीं है, यह निर्धारित करने के लिए एक ट्रायल आवश्यक होगा कि वादी को गैरकानूनी रूप से मुअत्तल किया गया था या नहीं।

कार्ट ने कहा,

"इसलिए, वादपत्र को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि वाद में दावा किए गए नुकसान की मात्रा प्रदान नहीं की जा सकती है।"

तदनुसार, अर्जी खारिज कर दी गयी।

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