दिल्ली दंगा: हाईकोर्ट ने अंकित शर्मा हत्याकांड में 600 दिन से अधिक समय हिरासत में बिताने वाले आरोपी की जमानत याचिका पर नोटिस जारी किया

Nov 10, 2021
Source: https://hindi.livelaw.in/

दिल्ली हाईकोर्ट ने उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान हुए अंकित शर्मा हत्याकांड के सिलसिले में न्यायिक हिरासत में 600 दिन से अधिक समय बिताने वाले आरोपी शोएब आलम द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने जमानत याचिका में राज्य का जवाब मांगा। साथ ही न्यायमूर्ति ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 23 नवंबर को पोस्ट किया। याचिका अधिवक्ता तारा नरूला, तमन्ना पंकज, अपराजिता सिन्हा और एस देवव्रत रेड्डी के माध्यम से दायर की गई है।

शोएब आलम नौ मार्च, 2020 से न्यायिक हिरासत में है। उसको अगस्त 2020 में एक सत्र न्यायालय ने नियमित जमानत से वंचित कर दिया था। इसके बाद, उसकी दूसरी जमानत याचिका को इस साल मई में सत्र न्यायालय ने खारिज कर दिया था। आलम ने दिनांक 25.02.2020 की एक घटना के संबंध में दयालपुर थाने में दर्ज एफआईआर 65/2020 में जमानत मांगी। शिकायतकर्ता का बेटा अंकित शर्मा, इंटेलिजेंस ब्यूरो में कार्यरत एक अधिकारी था। वह किराने का सामान और सामान्य घरेलू सामान खरीदने के लिए उक्त तारीख को शाम लगभग पांच बजे अपने घर से निकला था। लेकिन, कई घंटे बाद भी वह घर नहीं लौटा।

बाद में उसका शव चांद बाग पुलिया के पास एक नाले में पड़ा मिला। उसके सिर, चेहरे, छाती, पीठ और कमर पर गंभीर चोटें आई थीं। इसके बाद शिकायतकर्ता द्वारा एक एफआईआर दर्ज की गई। इसमें कहा गया कि उसे इस बात का प्रबल संदेह है कि उसके बेटे की हत्या मुख्य आरोपी ताहिर हुसैन और उसके सहयोगियों ने की है। मृतक अंकित शर्मा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि धारदार हथियारों के वार के कारण 51 चोटें आई हैं। जमानत याचिका के अनुसार, अभियोजन पक्ष ने घटना में आरोपी की भूमिका स्थापित नहीं की है, जो कि एफआईआर का विषय है।

याचिका में कहा गया,

"आवेदक के जमानत आवेदन को खारिज करते समय ट्रायल कोर्ट द्वारा भरोसा किए गए गवाहों के बयान में यह नहीं बताया गया है कि आवेदक अंकित शर्मा (मृतक) की हत्या में कैसे शामिल था। इसके अलावा, भीड़ में मौजूद प्रत्येक आरोपी व्यक्ति की ओर से अपराध की एक धारणा नहीं हो सकती। साथ ही यदि प्रदीप वर्मा, शमशाद प्रधान, एचसी राहुल और सीटी प्रवीण कुमार जैसे गवाहों के बयानों से आवेदक के अपराध का अनुमान लगाया जाता है तो 1500-2000 लोगों की भीड़ में मौजूद हर एक सदस्य को मृतक अंकित शर्मा की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।" यह भी तर्क दिया गया कि चश्मदीदों की उपलब्धता के बावजूद जांच एजेंसी द्वारा कभी भी कोई पहचान परेड आयोजित नहीं की गई।

याचिका में आगे कहा गया,

"इस बात का रत्ती भर भी सबूत नहीं है कि आवेदक किसी भी सीएए या समर्थक सीएए विरोध या किसी अन्य समूह का हिस्सा था। किसी भी घटना में इस तरह के कथित विरोध प्रदर्शनों में आवेदक की उपस्थिति किसी भी मामले को संलग्न करने के लिए पर्याप्त नहीं है। मुथु नायकर बनाम तमिलनाडु राज्य में माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार उनके लिए आपराधिकता, (1978) चार एससीसी 385 और मूसा खान और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य, (1977) एक एससीसी 733 में रिपोर्ट की गई।"

 

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