शादी के झूठे वादे के तहत किसी अन्य पुरुष के साथ जानबूझकर शारीरिक संबंध रखने वाली विवाहित महिला उस पर बलात्कार का मुकदमा नहीं चला सकती: तेलंगाना हाईकोर्ट

Jul 13, 2022
Source: https://hindi.livelaw.in

जस्टिस के सुरेंद्र ने कहा,

"जब एक विवाह पहले से मौजूद हो तो प्रतिवादी/अभियुक्त द्वारा पीडब्‍लू 1 से विवाह करने का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि ऐसा विवाह द्विविवाह के रूप में दंडनीय अपराध है और अमान्य है... पीडब्‍लू 1 और प्रतिवादी/अभियुक्त के बीच सहमति से शारीरिक संबंध है, बलात्कार का सवाल ही नहीं उठता।"

अदालत महिलाओं के खिलाफ अत्याचार से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए विशेष सत्र न्यायाधीश द्वारा आईपीसी की धारा 417, 376 और 506 के तहत प्रतिवादी को बरी किए जाने के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी।

अभियोजन का मामला यह था कि वास्तविक शिकायतकर्ता/पीडब्‍लू 1 का विवाह शिकायत से सात साल पहले नागराजू नामक व्यक्ति से हुआ था।

एक साल बाद वे वैवाहिक कलह के कारण गांव के बुजुर्गों की मौजूदगी में एक दूसरे से अलग हो गए। शिकायत के आठ महीने पहले ही उसका प्रतिवादी से परिचय हुआ था और इस विश्वास पर दोनों के बीच शारीरिक अंतरंगता विकसित हुई कि वह उससे शादी करेगा। पीडब्‍लू 1 ने प्रतिवादी/अभियुक्त को 10,000/- रुपये भी दिए। जब वह गर्भवती हो गई और जब उसने शादी करने के लिए कहा तो प्रतिवादी/आरोपी ने मना कर दिया, जिसके कारण शिकायत दर्ज की गई।

लोक अभियोजक ने प्रस्तुत किया कि सत्र न्यायालय ने प्रतिवादी/अभियुक्त को बरी करने का आदेश देने में त्रुटि की है। शादी के वादे पर पीडब्‍लू 1 को धोखा देने के अपराध में अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए ठोस सबूत हैं।

सत्र न्यायाधीश ने निम्नलिखित आधारों पर बरी किया था-

i) पीडब्लू 1 का अपने पति के साथ विवाह जारी था और कानून के तहत समाप्त नहीं हुआ था; ii) आरोपी ने पीडब्‍लू 1 के साथ परिचित होने पर विवाद नहीं किया था, हालांकि आरोपी का मामला यह है कि चूंकि वह पहले से ही शादीशुदा थी, इसलिए उसनके कहा कि वह पीडब्लू 1 से शादी तब करेगा जब उसे अपने पति से वैध तलाक मिल जाएगा; iii) प्रतिवादी/अभियुक्त द्वारा पीडब्लू1 के तलाकशुद न होने की स्थिति में, शादी करने के वादे को तोड़ना धोखाधड़ी के अपराध को आकर्षित नहीं करेगा।

हाईकोर्ट ने नोट किया कि पीडब्लू 1 का उसके पति के साथ विवाह या तो न्यायालय के किसी आदेश या उनके समुदाय में प्रचलित किसी भी प्रथा के माध्यम से समाप्त नहीं हुआ था। प्रतिवादी का पीडब्‍लू 1 से विवाह करने का प्रश्न ही नहीं उठता, जिसका विवाह चल रहा है। उक्त टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने अपील खारिज कर दी।

 

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