महिला के पति के अपनी पहली शादी से दो बच्चे हैं,इस आधार पर सीसीएस नियमों के तहत मातृत्व अवकाश से इनकार नहीं किया जा सकताः सुप्रीम कोर्ट

Aug 17, 2022
Source: https://hindi.livelaw.in/

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा है कि एक महिला को उसके जैविक बच्चे के संबंध में केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश नियमों) 1972 के तहत मातृत्व अवकाश से इस आधार पर इनकार नहीं किया जा सकता है कि उसके जीवनसाथी के पहले के विवाह से दो बच्चे हैं।

नियम 43 के अनुसार, केवल दो से कम जीवित बच्चों वाली महिला कर्मचारी ही मातृत्व अवकाश ले सकती है। इस मामले में, महिला के पति के उसकी पहली शादी से दो बच्चे हैं और उसने पहले अपने अजैविक बच्चे के लिए चाइल्ड केयर लीव का लाभ उठाया था। जब इस शादी से उसका अपना एक बच्चा हुआ तो अधिकारियों ने नियम 43 के तहत बार का हवाला देते हुए उसको मातृत्व अवकाश देने से इनकार कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश नियमों) 1972 के नियम 43 को मातृत्व लाभ अधिनियम और भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 के संदर्भ में एक उद्देश्यपूर्ण व्याख्या दी जानी चाहिए, जिसके तहत राज्य को महिलाओं के हितों की रक्षा करने के लिए इसके लाभकारी प्रावधानों को अपनाना है।

पीठ ने कहा,''जब तक इस तरह की व्याख्या नहीं अपनाई जाती है, मातृत्व अवकाश देने का उद्देश्य और मंशा विफल हो जाएगी। ये नियम संविधान के अनुच्छेद 15 के प्रावधान के अनुसार तैयार किए गए हैं जिसके तहत राज्य को महिलाओं के हित की रक्षा करने के लिए इसके लाभकारी प्रावधानों को अपनाना है।''

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस ए.एस. बोपन्ना की पीठ ने कहा कि मातृत्व अवकाश और महिलाओं को दिए जाने वाले अन्य सुविधाजनक उपायों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रसव/बच्चे का जन्म होने के बाद उनको अपना कार्यस्थल छोड़ने के लिए मजबूर न होना पड़े, जो हर महिला के जीवन का एक स्वाभाविक पहलू है।

''मातृत्व अवकाश का अनुदान महिलाओं को कार्यस्थल में शामिल होने और रोजगार जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए है। यह कठोर वास्तविकता की बात है कि इन प्रावधानों के बिना (यदि उनको यह छुट्टी या अन्य सुविधाजनक उपाय न दिए जाएं तो) महिलाओं को बच्चे के जन्म पर कार्यस्थल छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है। बच्चे के जन्म को कुछ ऐसा नहीं माना जा सकता है जो रोजगार के उद्देश्य से अलग हो। बच्चे के जन्म को रोजगार के संदर्भ में हर महिला के जीवन के एक प्राकृतिक पहलू के रूप में माना जाना चाहिए और इसलिए जो प्रावधान बनाए गए हैं उनको इस अर्थ में समझा जाना चाहिए।''

पीठ इस मामले में एक नर्सिंग अधिकारी की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। चंडीगढ़ के पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च में तैनात नर्सिंग अधिकारी को उसके एकमात्र जैविक बच्चे के संबंध में उसके नियोक्ता ने यह कहते हुए मातृत्व अवकाश देने से इनकार कर दिया था कि उसने पहले चाइल्ड केयर लीव का लाभ उठाया है। दरअसल महिला के पति के उसकी पहली शादी से दो बच्चे हैं,इन्हीं में से एक बच्चे की देखभाल के लिए उसने चाइल्ड केयर लीव ली थी।

पीठ ने कहा,

''यह तथ्य कि उसके (पति) पूर्व विवाह से दो जैविक बच्चे हैं, वर्तमान मामले में उसके एकमात्र जैविक बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश प्रदान करने के लिए वैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होगा।''

महिला ने अपने नियोक्ता के निर्णय को चुनौती देते हुए केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण(कैट), चंडीगढ़ बेंच का दरवाजा खटखटाया था। कैट ने अधिकारियों के इस तर्क को स्वीकार किया कि सीसीएस नियमों के नियम 43 के अनुसार, जीवनसाथी से पैदा हुए बच्चों में से एक के संबंध में चाइल्ड केयर लीव लेने पर वह अपने स्वयं के जैविक बच्चे के जन्म के संबंध में मातृत्व अवकाश की हकदार नहीं है। इसने अर्जी खारिज कर दी। कैट के आदेश को आर्टिकल 226 के तहत एक रिट याचिका के माध्यम से पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने भी इसे खारिज कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट और कैट दोनों के आदेश को उलट दिया और मूल आवेदन को अनुमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि वह मातृत्व अवकाश के अनुदान की हकदार है और उसके अधिकार से इनकार करना नियम 43 के प्रावधान के विपरीत है। पीठ ने निर्देश दिया है कि अपीलार्थी के लिए लागू होने वाले सभी लाभ इस आदेश की तारीख से 2 माह के भीतर उसे प्रदान कर दिए जाएं।

जब बेंच ने अधिकारियों के वकील से पूछा कि क्या बच्चों को गोद लेने वाली महिलाओं को मातृत्व अवकाश दिया जाता है, तो वह इस तरह के किसी प्रावधान की ओर इशारा नहीं कर सके। हालांकि, बेंच ने संकेत दिया कि गोद लेने के मामलों में भी मातृत्व अवकाश दिया जाना चाहिए।

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