हर साल दिल्ली का 4000 टन कचरा साफ करती हैं चीलें

Nov 14, 2019

हर साल दिल्ली का 4000 टन कचरा साफ करती हैं चीलें

दिल्ली और उप्र बॉर्डर पर गाजीपुर के पास बने कूड़े के पहाड़। इन दिनों यहां हजारों मेहमान चील कभी उड़ान भरती तो कभी डैने फैलाकर नीचे उतरती नजर आएंगी। करनाल रोड के दिल्ली रोड बॉर्डर स्थित कूड़े के पहाड़ पर भी यही नजारा रहता है। ये चीलें मध्य एशिया (रूस, मंगोलिया, कजाकिस्तान, तजाकिस्तान, चीन) से 4500 किमी का सफर तय कर भारत में सर्दी का आनंद लेने आती हैं। लगभग 10 हजार विदेशी चील और भारतीय चील हर साल 4000 टन से अधिक कचरे को साफ करती हैं। इस तरह इनकी यात्र पर्यावरण की मित्र साबित हो रही है। ये अहम जानकारी अलीगढ़ मुस्लिम विवि (एएमयू) के एक साल पूर्व हुए एक प्रारंभिक शोध के साथ और भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) की ओर से जारी शोध में सामने आई है। शोध में सामने आया है कि एक चील रोज करीब 200 ग्राम कचरा खाती है।

2013 में शुरू हुआ शोध : डब्ल्यूआइआइ के शोध को निशांत कुमार व उर्वी गुप्ता अंजाम दे रहे हैं। उनके अनुसार चीलों पर डब्ल्यूआइआइ की ओर से 2013 में शुरू किए गए शोध में अभी तक 1500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर किया गया है। इसमें पता चला कि भारतीय चील उप प्रजाति के 20 घोंसले प्रति वर्ग किलोमीटर में हैं। इनका औसत 1968 से ज्यादा नहीं बदला है। ये जरूर है कि गिद्धों की संख्या में आई गिरावट के साथ कूड़े के ढेरों की संख्या बढ़ी। इससे दिल्ली में चीलों की संख्या बढ़ रही है। हर साल 10 हजार से अधिक विदेशी चीलें दिल्ली के सबसे बड़े कूड़े के ढेर पर नजर आती हैं।

अगस्त में शुरू होता है आगमन : मंगोलिया आदि देशों में बर्फबारी होने पर चील अगस्त में भारत आना शुरू कर देती हैं। उन्हें गुलाम कश्मीर होकर हिमालय की छह हजार मीटर ऊंची कारारोरम पर्वत श्रृंखला पार कर आना पड़ता है। दिसंबर से फरवरी तक इनकी संख्या अधिक रहती है। वह मध्य एशिया में बर्फ पिघलने के बाद फरवरी में वापस चली जाती हैं। विदेशी चीलें प्रजनन अपने ही देश में करती हैं। मेहमान चीलें दिल्ली से अहमदाबाद, मुंबई व मैसूर तक भी जाती हैं।

एएमयू का योगदान : चीलों के शोध में एएमयू का भी योगदान है। एएमयू के वाइल्ड लाइफ डिपार्टमेंट से 2018 में एमएससी करने वाली आगरा की अमी मेहता ने चीलों पर पहला काम किया। अलीगढ़ में उन्हें कठपुला से जमालपुर, किला, मेडिकल रोड आदि क्षेत्र चुने। इन क्षेत्रों में उन्हें चीलों के 75 घोंसले मिले। जमालपुर क्षेत्र में सर्वाधिक आठ घोंसले प्रति दो सौ मीटर में मिले। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र होने के नाते यहां कूड़े में मीट की मात्र अधिक रहती है। यहां इससे पहले चीलों की गिनती कभी नहीं हुई। इसके बाद अमी मेहता डब्ल्यूआइआइ से जुड़ गईं।

शोध टीम के सदस्य : शोध टीम में में निशांत कुमार, उर्वी गुप्ता के साथ रिसर्च असिस्टेंट अमी मेहता, फील्ड असिस्टेंट लक्ष्मीनारायण, प्रिंस कुमार, पूनम आदि शामिल हैं। टीम भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. वाईवी झाला, स्पेन के प्रो. सर्जियो, इंग्लैंड के प्रो. गैसलर के अधीन काम कर रही है। दिल्ली में यह शोध मुंबई के रैप्टर रिसर्च एंड कंजर्वेशन फाउंडेशन से अनुदानित है।

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