सितंबर में भी कमजोर रही देश में मैन्युफैक्चरिंग, PMI अगस्त के स्तर पर बरकरार
सितंबर में भी कमजोर रही देश में मैन्युफैक्चरिंग, PMI अगस्त के स्तर पर बरकरार
देश का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर सितंबर में भी कमजोर बना हुआ है और आगे भी भरोसा बढ़ने के संकेत नहीं मिल रहे हैं. सितंबर माह के लिए निक्केई मैन्युफैक्चरिंग परचेज मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) 51.4 फीसदी रही है, जो अगस्त के समान ही है.
यह सर्वे आईएचएस मार्किट के द्वारा किया जाता है और इसे मैन्युफैक्चरिंग के आकलने के लिए भरोसेमंद आंकड़ा माना जाता है. सर्वे में PMI 50 से ऊपर होना ठीक माना जाता है, लेकिन अगस्त, सितंबर में जो आंकड़ा रहा है वह मई 2018 के बाद सबसे कम है.
क्या हैं चिंता के बिंदु?
सर्वे के अनुसार, सरकार और नीति नियामकों के लिए चिंता की बात यह है कि सितंबर में कुल मांग में बहुत मामूली बढ़त हुई है. इसकी वजह यह है कि निर्यात में बढ़त नहीं हो रही और कंपनियों में रोजगार मुश्किल से ही बढ़ा है. कारखानों ने कच्चे माल की खरीद में कटौती की है, जो इस बात का संकेत है कि आगे भी उन्हें मांग में इजाफे की उम्मीद नहीं है.
भारतीय अर्थव्यवस्था अप्रैल से जून की तिमाही में महज 5 फीसदी की दर से बढ़ी है, जो पिछले 6 साल की सबसे सुस्त दर है. कुल मिलाकर महंगाई तो अगले महीनों में भी रिजर्व बैंक के मध्यम अवधि के लक्ष्य 4 फीसदी के भीतर रहेगी, इस वजह से व्यापक तौर पर यह उम्मीद की जा रही है कि 4 अक्टूबर को होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा में रिजर्व बैंक ब्याज दरों में और कटौती करेगा. इस साल रिजर्व बैंक ब्याज दरों में 1.1 फीसदी तक की कटौती कर चुका है. आईएचएस मार्किट की प्रिंसिपल इकोनॉमिस्ट पॉलिएना डी लिमा के अनुसार, 'पीएमआई आंकड़ों से मिले संकेत के मुताबिक आर्थिक ग्रोथ के नतीजे कमजोर है और महंगाई का दबाव भी कम है, इसलिए हमें लगता है कि अगले महीनों में मौद्रिक नरमी और बढ़ेगी.'
कंपनियों में आशावाद कमजोर
यह उम्मीद की जा रही है कि 4 अक्टूबर को रिजर्व बैंक रेपो रेट में फिर चौथाई फीसदी की कटौती कर सकता है. हालांकि, रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नरमी के संकेत और सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को तेजी देने के लिए घोषित तमाम उपायों के बावजूद कंपनियों के बीच आशावाद कमजोर बना हुआ है. अगले 12 महीने के लिए आउटलुक मापने वाला सब-इंडेक्स दो साल में सबसे कम है.
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