"सीआरपीसी की धारा 406 के तहत राज्य सरकार एक 'इच्छुक पक्षकार' है"; अन्य राज्य से मामले को ट्रांसफर करने की मांग कर सकता है: सुप्रीम कोर्ट

Mar 30, 2021
Source: https://hindi.livelaw.in/

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बसपा विधायक मुख्तार अंसारी को पंजाब की रोपड़ जेल से उत्तर प्रदेश की गाजीपुर जेल में स्थानांतरित करने की यूपी सरकार द्वारा दायर रिट याचिका को अनुमति दी। न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने निर्देश दिया कि अंसारी को दो सप्ताह के भीतर उत्तर प्रदेश राज्य की हिरासत में सौंप दिया जाए।

खंडपीठ ने कहा, "यह निर्देश दिया जाता है कि मुख्तार अंसारी को 2 सप्ताह के भीतर यूपी पुलिस की हिरासत में सौंप दिया जाए। वह बांदा जेल में बंद रहेंगे। बांदा जेल के जेल अधीक्षक चिकित्सा सुविधाओं की देखरेख करेंगे।"

इसके साथ ही पीठ ने आपराधिक मामलों की सुनवाई को उत्तर प्रदेश से बाहर स्थानांतरित करने की मांग वाली अंसारी द्वारा दायर याचिका को भी खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की अपील को अनुमति देते हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं इस पर निर्णय नहीं लेने के बावजूद भी यह माना कि दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 406 के तहत राज्य एक इच्छुक पक्षकार है।

कोर्ट के समक्ष सब्मिशन

उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिका अनुच्छेद 32 के तहत सुनवाई योग्य है, इस कारण से कि अपराध से पीड़ित व्यक्तियों की ओर से राज्य को आपराधिक न्याय का प्रशासन दिया जाता है और आधार यह भी है कि एक नागरिक के खिलाफ अपराध राज्य के खिलाफ अपराध है। एसजी ने भारत संघ बनाम वी. श्रीहरन के मामले में को प्रस्तुत किया। इसमें कहा गया था कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 406 के तहत भी याचिका दायर की गई। नतीजतन राज्य को धारा 406 (2) के अनुसार 'इच्छुक पक्षकार' माना जा सकता है क्योंकि इस शब्द की व्यापक रूप से व्याख्या की गई।

एसजी ने प्रस्तुत किया कि 'इच्छुक पक्षकार ' एक विस्तृत शब्द है, इसलिए इसका व्यापक अर्थ यह है कि राज्य को भी शामिल किया जाए जितना कि आपराधिक न्याय प्रशासन का उद्देश्य के समान ही राज्य का भी उद्देश्य है कानून के शासन को संरक्षित करना। पंजाब राज्य और जेल अधीक्षक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने दलील दी कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद के तहत दायर याचिका सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि अनुच्छेद 32 का एकमात्र उद्देश्य संविधान के भाग III के तहत मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी देना है। इसलिए याचिकाकर्ता एक राज्य होने के नाते मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकता।

अंसारी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दवे की प्रस्तुतियों को आगे बढाते हुए कहा कि पीड़ित या शिकायतकर्ताओं में से किसी ने भी राहत की मांग करने के लिए अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया है, इसके अभाव में राज्य को राहत पाने का अधिकार नहीं है। आगे प्रस्तुत किया गया कि निष्पक्ष ट्रायल भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अभियुक्तों और गवाहों के हित की रक्षा के लिए है और यह राज्य के लिए खुला नहीं है कि निष्पक्ष ट्रायल के लिए अभियुक्तों की हिरासत की आवश्यकता है। यह भी प्रस्तुत किया गया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों को छीनने के लिए शक्तियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है। दो वरिष्ठ काउंसल द्वारा यह तर्क दिया गया कि सीआरपीसी की धारा 406 के तहत दायर आवेदन केवल अटॉर्नी-जनरल या "पार्टी इच्छुक" द्वारा स्थानांतरित किया जा सकता है और यूपी राज्य इस श्रेणी में नहीं आता है। कोर्ट ने क्या कहा? कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 406 का हवाला देते हुए कहा कि प्रतिवादी के इस विवाद का खंडन किया कि यूपी राज्य "इच्छुक पक्षकार" नहीं है। कोर्ट ने कहा कि, "प्रतिवादी द्वारा कहा गया है कि याचिकाकर्ता-राज्य कोई पक्षकार नहीं है। इसे स्वीकार करना मुश्किल है। यह अच्छी तरह से पता है कि किसी व्यक्ति या लोगों के खिलाफ अपराध राज्य के खिलाफ अपराध माना जाता है"। कोर्ट ने कहा कि, यह देखते हुए कि आपराधिक प्रशासनिक प्रणाली में राज्य एक अभियोजन एजेंसी है जो राज्य के लोगों के लिए काम कर रही है इसे "इच्छुक पक्षकार" के रूप में समझा जा सकता है क्योंकि यह एक व्यापक शब्द है और इसलिए इसकी व्यापक व्याख्या की जानी चाहिए।" कोर्ट ने कहा कि, " 'पीड़ित पक्ष', 'कार्यवाही पक्ष' और 'इच्छुक पक्षकार' जैसे शब्द विभिन्न विधियों में उपयोग किए जाते हैं। यदि इस्तेमाल किए गए शब्द 'कार्यवाही पक्ष' या 'मामले के पक्षकार हैं तो इससे एक प्रतिबंधित अर्थ दिया जा सकता है। ऐसे मामलों में विधायिका का इरादा प्रतिबंधित अर्थ देने के लिए स्पष्ट है, लेकिन एक ही समय में इच्छुक पक्षकार 'के रूप में उपयोग किए जाने वाले शब्द जिन्हें दंड प्रक्रिया संहिता के तहत परिभाषित नहीं किया गया है, इसका एक व्यापक अर्थ दिया जाना चाहिए।" यह कहते हुए कि यह एक कानून का सिद्धांत है कि किसी क़ानून को क़ानून के कारण को आगे बढ़ाने के लिए व्याख्या की जानी चाहिए और इसे रोका नहीं जाना चाहिए। न्यायालय ने माना कि राज्य, आपराधिक प्रशासन में अभियोजन एजेंसी होने के नाते शासन प्रबंध में रूचि रखता है। कोर्ट ने के. अंबाझगन बनाम पुलिस अधीक्षक और अन्य के मामले में यूपी राज्य के मामले में दिए गए निर्णय पर भरोसा जताया। इसमें कहा गया था कि राज्य सीआरपीसी की धारा 406 (2) के तहत इच्छुक पक्षकार है। हालांकि कोर्ट ने उपर्युक्त धारणा को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका सुनवाई योग्य बनाए जाने से संबंधित मुद्दे पर निर्णय लेना आवश्यक नहीं समझा था।

केस का शीर्षक: यूपी राज्य बनाम जेल अधीक्षक (रोपड़) और अन्य

Citation: LL 2021 SC 185
 

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