पीएफ पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से मूल वेतन बढ़ने से पूरे भारत में कम्पनियों का बजट बिगड़ा

May 04, 2019

पीएफ पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से मूल वेतन बढ़ने से पूरे भारत में कम्पनियों का बजट बिगड़ा

अब आप सिर्फ एच आर ए में ही पी एफ बचा सकते हैं लेकिन एच आर ए भी मूल वेतन का 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
सत्येन्द्र सिंह श्रम कानून सलाहकार

उद्योग विहार (मई 2019)- गाजियाबाद। सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद कि कर्मचारियों के मूल वेतन की गणना बदल गयी है। सूर्या रौशनी के केस में यह महत्वपूर्ण निर्णय आया है जिसमें सभी विशेष भत्तों को मूल वेतन माना गया है। और पी एफ की गणना मूल वेतन पर ही की जाती है। अभी तक अधिकांश कम्पनियाँ मूल वेतन में सिर्फ न्यूनतम वेतन दिखाती थी, तथा शेष वेतन अन्य भत्ते के रूप में दिखाती थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सिरे से खारिज करते हुए सभी विशेष भत्तों को मूल वेतन में शामिल करने का आदेश पारित किया है। सभी कम्पनियाँ इस समय अपने कर्मचारियों के वेतन की गणना करने में लगी हैं तथा उनके वेतन के ढाँचे को इस तरह बनाने में लगी हैं ताकि कम से कम लागत बढे। आज की तारीख में तो सिर्फ एच आर ए को ही मूल वेतन से अलग रखा गया है। हालाँकि लोगों ने भी बहुत अति कर रखी थी। पी एफ को बचाने के लिए एच आर ए का प्रतिशत मूल वेतन का 200 प्रतिशत तक था। कम्पनियों में सिगरेट भत्ता, शराब भत्ता, डेटिंग भत्ता दिया जाने लगा था तभी से विवादों की संख्या भी बढ़ गयी थी जिसका खामियाजा अब सभी को भुगतना पड़ रहा है। बहुत से कर्मचारियों के बच्चे नहीं हैं फिर भी उनको बच्चों की पढाई का भत्ता दिया जा रहा है। सत्येन्द्र सिंह श्रम कानून सलाहकार का कहना है कि अब आप सिर्फ एच आर ए में ही पी एफ बचा सकते हैं लेकिन एच आर ए भी मूल वेतन का 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। यह फैसला पीछे से लागू होगा। और आपका पीछे का रिकॉर्ड भी देखा जा सकता है। लेकिन पीछे के वेतन ढांचे में अब कोई बदलाव संभव नहीं है अतः आप इस महीने से सही कर लें तो सही रहेगा। हालाँकि सूर्या रौशनी वालों ने पुनर्विचार याचिका लगाई है लेकिन अब कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। भविष्य निधि विभाग ने भी इस संबन्ध में दिशा निर्देश जारी कर दिए हैं तथा सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन सुनिश्चित कराने को कहा है।

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गौतमबुद्ध नगर के क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त (प्रथम) एन के सिंह का कहना है कि ब्रिज एंड रूफ के केस में यह निर्णय पहले भी आ चुका है। हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करवाना सुनिश्चित करवाएंगे। गुरूग्राम के सहायक भविष्य निधि आयुक्त राजू कुमार का कहना है की हम पहले से ही इसका पालन कर रहे थे और जो भी विशेष भत्ते या अन्य भत्ते होते थे उनको मूल वेतन का ही भाग मानते थे। सभी कम्पनियों को पी एफ को बचाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए और नियम का पालन करना चाहिए अन्यथा आपने जितना बचाया है उसका कई गुना आपको ब्याज और पेनाल्टी के रूप में देना पड़ेगा। हम ऑडिट/इंस्पेक्शन में जो भी आपत्तिजनक भत्ते होंगे, उनको मूल वेतन का भाग मानेंगे, और जो भी देनदारी बनेगी वो निकालेंगे। यह आदेश पहले से प्रभावी होगा, न की आज से। बहुत सी कम्पनियों में एचआरए मूल वेतन का 200 प्रतिशत तक होता है, यानि अगर मूल वेतन 10000 रु है तो एचआरए 20000 रु होगा, जो कि न्याय संगत नहीं है और इस पर पी एफ की देनदारी बन सकती है। बहुत सी कम्पनियाँ 15001 या 15100 रु मूल वेतन में दिखाकर पी एफ बचाना चाहती हैं, जबकि हकीकत में उनका वेतन 15000 से काफी कम होता है, फिर वे कार्य के दिन कम करके वेतन बनाते हैं, जो की सरासर गलत है और इसमें गलत नियत (उंसं. पिकम पदजमदजपवद) साफ सिद्ध होती है। जो की अंततः पी एफ की देनदारी (ब्याज एवं जुर्माने के साथ) में बदल सकती है। हालाँकि बहुत से कानून के जानकार इस फैसले को बड़ा ही उलझा हुआ फैसला बता रहे हैं, और कह रहे हैं की इस फैसले के बाद विवाद और बढ़ेंगे। सूर्या रौशनी के वाईस प्रेसिडेंट बी के बहेरा का कहना है की हमने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। सहायक भविष्य निधि आयुक्त महेश सिंह का कहना है की इस आदेश की प्रभावी तिथि वर्ष 1952 होगी।

 

और पी एफ की गणना एचआरए और ओवर टाइम पर नहीं होगी। साथ ही पी एफ उत्पादन प्रोत्साहन भत्ते पर भी नहीं लगेगा, लेकिन यदि आप सभी कर्मचारियों को यह भत्ता दे रहे हैं तो यह मूल वेतन का भाग माना जायेगा। इस आदेश के आने के बाद से लोगों की उत्सुकता इस बात में ज्यादा है कि यह आदेश कब से प्रभावी होगा। तो यहां पर यह स्पष्ट करना है कि यह आदेश पूर्व में कई हाईकोर्ट के आदेशों के संबंध में दिया गया है और कर्मचारी भविष्य निधि एक्ट में यह पहले से दिया है। लेकिन चूंकि एक्ट में मूल वेतन की परिभाषा को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। इसी कारण लोग गलतफहमी का शिकार हो रहे हैं तथा पीएफ विभाग एवं कंपनियों के बीच विवादों की संख्या भी काफी बढ़ गई है। अब सरकार को चाहिए कि एक्ट में बदलाव करते हुए मूल वेतन की परिभाषा को फिर से परिभाषित करें और इसके लिए बिल लाकर लोकसभा से कानून को पास करवायें।

हालाँकि सूर्या रौशनी वालों ने पुनर्विचार याचिका लगाई है लेकिन अब कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं है।

पीएफ मूलवेतन पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विश्लेषण मूलवेतन की परिभाषा

   शामिल किया जाना है

    शामिल करने की आवश्यकता नहीं है

    मूलवेतन                                       

      एचआरए

    महंगाई भत्ता    

 उत्पादन प्रोत्साहन (प्रोत्साहन योजना के लिए उचित  मैट्रिक्स   (पक्षमेंडाटा) की आवश्यकता)

    वाहन भत्ता

      ओटी (अतिरिक्तकार्यघण्टे)

   अन्य भत्ता

नाइट शिफ्ट अलाउंस (पर मासिक वार अलग-अलग होना       चाहिए)

   विशेष भत्ता   

     उपस्थिति भत्ता

    एलटीए                                                    

    धुलाई भत्ता (यदि यूनिफार्म देते हैं।)

 

   टेली (रिमोटएरिया)और फूड के नाम पर  फिक्स्ड भत्त

     कैंटीन भत्ता (यदि कैन्टीन है)

   पेट्रोल प्रतिपूर्ति (बिना बिल के)

    पेट्रोल प्रतिपूर्ति (बिलों का प्रमाण होना आवश्यक है)

   अवकाश प्राप्त भत्ता

    बोनस और कमीशन

सीसीए या कोई अन्य भत्ता फिक्स्ड के रूप में भुगतान किया जाता है        

   किसी भी भत्ते को परिवर्तनीय या केवल निश्चित श्रेणी के कर्मचारियों के लिए भुगतान किया जाता है

  http://www.legalipl.com

 

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