पति के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करना क्रूरता'': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पति की तलाक की अर्जी मंजूर की, पत्नी को स्थायी भरण-पोषण के रूप में 10 लाख रुपये
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पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति द्वारा दायर तलाक की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि पत्नी द्वारा अपने पति के खिलाफ झूठे और फर्जी मामले दायर करना क्रूरता के समान है। कोर्ट ने इस मामले में पति के पक्ष में तलाक का फैसला सुनाया है। हालांकि, पत्नी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस निधि गुप्ता की खंडपीठ ने दोनों पक्षकारों के बीच सभी विवादों के पूर्ण और अंतिम निपटान के रूप में पत्नी को 10 लाख रुपये का स्थायी भरण-पोषण (एलुमनी) भी दिया है।
कोर्ट ने जोर देकर कहा, ''हालांकि हमने माना है कि प्रतिवादी-पत्नी के कृत्य अपीलकर्ता-पति के खिलाफ क्रूरता के समान हैं, लेकिन, हम उसकी आवश्यकताओं से बेखबर नहीं हैं। यह रिकॉर्ड में आया है कि अपीलकर्ता सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अंतरिम भरण-पोषण के तौर पर प्रतिमाह 2500 रुपये का भुगतान कर रहा है और कोर्ट ने एचएमए की धारा 24 के तहत भी 3000 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया था। इन परिस्थितियों में, हम पति को यह निर्देश देना सही मानते हैं कि पति अपनी पत्नी को पक्षकारों के बीच सभी विवादों के पूर्ण और अंतिम निपटान के रूप में एकमुश्त स्थायी भरण-पोषण के तौर पर 10,00,000/- (केवल दस लाख रुपये) का भुगतान कर दे।'
संक्षेप में मामला पति/अपीलकर्ता ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत फैमिली कोर्ट में एक याचिका दायर कर प्रतिवादी/पत्नी के साथ अपने विवाह को क्रूरता के आधार पर समाप्त करने की मांग की थी। इसे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, तरनतारन ने मई 2017 में खारिज कर दिया था। उसी को चुनौती देते हुए उसने हाईकोर्ट में वर्तमान याचिका दायर की थी। उसने प्रस्तुत किया कि उसने प्रतिवादी/पत्नी से वर्ष 2009-2010 में विवाह किया था। उनके विवाह से कोई बच्चा पैदा नहीं हुआ था और शुरू से ही उसकी पत्नी अपने वैवाहिक घर में उसके माता-पिता के साथ न रहकर अलग रहना चाहती थी।
उसका यह भी कहना था कि उसकी पत्नी ने अपने वैवाहिक कर्तव्यों का पालन नहीं किया और छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा किया और उसके माता-पिता का अपमान किया और वह गलत शब्दों का उपयोग करती थी। उसने अपीलकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों को झूठे दहेज के मामले में फंसाने की धमकी भी दी थी। यह भी कहा गया कि अक्टूबर 2013 में, प्रतिवादी के पिता उसे ले गए और वह अपना सारा सामान और सोने के गहने अपने साथ ले गई और फिर कभी वापस नहीं आई। इसके बाद, उसने उसके और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 406, 498-ए और 120-बी के तहत मामला दर्ज करवा दिया, हालांकि, बाद में उन सभी को इस मामले में कोर्ट ने बरी कर दिया था।
दूसरी ओर, पत्नी ने आरोप लगाया कि दहेज की अधिक मांग के चलते उसके ससुराल वालों ने उसके साथ बुरा व्यवहार किया और उसे पीटा गया और जब उसके पास उपरोक्त एफआईआर दर्ज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा, तो उसने उनके खिलाफ मामला दर्ज करवा दिया। उसने आगे कहा कि अक्टूबर 2013 में उसे ससुराल से निकाल दिया गया था। हाईकोर्ट की टिप्पणियां शुरुआत में, कोर्ट ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि अपीलकर्ता की पत्नी द्वारा उनके खिलाफ दायर मामले में अपीलकर्ता-पति और उसके परिवार के सदस्यों को बरी कर दिया गया था। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए बहुत स्पष्ट निष्कर्ष दिए थे कि पत्नी अपने मामले को साबित करने में पूरी तरह से विफल रही है। इसे देखते हुए, न्यायालय ने आगे कहा कि, ''हमारे विचार में, एक बार जब पक्षकारों के बीच आपराधिक मुकदमा शुरू हो जाता है तो यह बिना किसी वापसी के एक बिंदु की ओर ले जाता है और अगर यह पत्नी द्वारा केवल पति और उसके परिवार को परेशान करने और अपमानित करने के लिए दायर किया गया झूठा मामला है, तो परिणामी कड़वाहट शायद ही कभी कोई जगह या सुलह का कारण छोड़ती है।'' इसके अलावा, कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों पर भी ध्यान दिया कि अगर पत्नी अपने पति या जीवनसाथी के खिलाफ झूठी शिकायत दायर करती है, तो यह क्रूरता है और तलाक के लिए पर्याप्त आधार है। इस प्रकार, यह मानते हुए कि पत्नी का कृत्य क्रूरता के समान है, न्यायालय ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि दोनों पक्ष अक्टूबर 2013 से अलग रह रहे हैं, और पक्षकारों का आचरण इस बात का सबूत है कि उनके बीच अपूरणीय मतभेद हैं, जिसने विवाह को एक मात्र कानूनी कल्पना बना दिया है। नतीजतन, अपील को अनुमति दे दी गई।