Explainer: न जलाते हैं न दफनाते और ना ही बहाते हैं..फिर कैसे मरने के बाद पारसी धर्म के लोग करते हैं अंतिम संस्कार?
Explainer: हमारे देश भारत एक ऐसा देश है जहां हर संप्रदाय और धर्म के लोग रहते हैं. हर धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक अलग-अलग परंपराएं हैं. ऐसे ही सभी धर्मों के अंतिम संस्कार का तरीका भी अलग है. आज हम आपको पारसी धर्म के बारे में रोचक बाते बताने जा रहे हैं तो चलिए जानते हैं.
Parsi religion Recognition- भारत में अनेकों धर्म संप्रदाय के लोग रहते हैं. इन्ही में में से एक पारसी धर्म भी है. वैसे तो भारत में पारसी धर्म के मानने वाले लोग काफी कम है लेकिन उनके योगदान की वजह से समाज उन्हें महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है.
हिंदू धर्म या मुस्लिम धर्म के रीति रिवाज के बारे में तो अक्सर बात की जाती है लेकिन आज हम आपको पारसी धर्म की परंपराओं के बारे में बताने जा रहा है. पारसी धर्म की परंपराएं बिल्कुल अलग है. इस समुदाय में जब किसी इंसान की मौत हो जाती है तो ना ही उसे जलाया जाता है और ना ही दफनाया जाता है बल्कि उसके शव को टावर ऑफ साइलेंस यानी दखमा ले जाया जाता है.
दरअसल, जिस प्रकार हिंदू और सिख धर्मों में मरने के बाद शव का दाह संस्कार किया जाता है वहीं मुस्लिम और ईसाई धर्मों में शव को दफनाया जाता है ठीक उसी तरह पारसी धर्म के लोग एक अनोखे तरीके से अंतिम संस्कार करते हैं. तो चलिए आज इस आर्टिकल में जानते हैं कि, पारसी धर्म में अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है.
टावर ऑफ साइलेंस
पारसी धर्म की मान्यता-
पारसी धर्म की परंपराओं के अनुसार मृत शरीर अशुद्ध होता है. इस धर्म में पृथ्वी ,जल और अग्नि को बहुत पवित्र माना गया है इसलिए इस धर्म के लोग ना तो शव को दफनाते हैं और ना ही जलाते हैं और ना ही जल में बहाते हैं. ऐसा करना इस धर्म के खिलाफ माना गया है. पारसी समुदाय के लोगों का मानना है कि, मृत शरीर को जलाने से अग्नि तत्व अपवित्र हो जाएगा वहीं अगर दफनाएंगे तो धरती दूषित हो जाएगा और अगर नदी में बहाएंगे तो जल प्रदूषित हो जाएगा. इसलिए वो ऐसा नहीं करते हैं.
पारसी धर्म के लोग मरने के बाद शव का क्या करते हैं-
पारसी धर्म के लोग मरने के बाद शव को टावर ऑफ साइलेंस के ऊपर खुले में रखते हैं और प्रार्थना करते हैं. वहीं प्रार्थना करने के बाद गिद्ध और चील जैसे पक्षियों को खाने के छोड़ देते हैं. ये पूरी प्रक्रिया पारसी धर्म की परंपरा का हिस्सा है. इस धर्म की मान्यता है कि, मरने के बाद इंसान का शरीर अशुद्ध हो जाता है ऐसे में अगर वो शव को जलाते हैं या दफनाते हैं तो इससे प्रकृति दूषित हो जाएगी.
टावर ऑफ साइलेंस क्या है-
पारसी धर्म की परंपरा के अनुसार मरने के बाद शव को टावर ऑफ साइलेंस के ऊपर रख दिया जाता है. ऐसे में आपके मन में ये सवाल आएगा होगा कि आखिर ये है क्या?. दरअसल टावर ऑफ साइलेंस एक गोलाकार स्थान होता है जहां मृत शरीर को आसमान के हवाले रख दिया जाता है. इसके बाद गिद्ध चील जैसे पक्षी शव को खा जाते हैं. पारसी धर्म की ये परंपरा कई हजारों सालों पुरानी है.
3 हजार साल पुरानी है ये परंपरा-
आपको बता दें कि, पारसी धर्म में मरने के बाद अंतिम संस्कार करने की ये परंपरा लगभग 3 हजार साल पुरानी है. यानी 3 हजार सालों से ये परंपरा चली आ रही है जिसे आज भी लोग मानते हैं. हालांकि, पिछले कुछ सालों में गिद्ध की संख्याओं की कमी के कारण पारसी समुदाय के लोगों शवों को अंतिम संस्कार करने में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
इसलिए पिछले कुछ सालों में पारसी लोग इस रिवाज को छोड़कर शवों को जलाकर अंतिम संस्कार भी कर रहे हैं. ये लोग अब शवों को टावर ऑफ साइलेंस के ऊपर रखने की बजाय हिंदू श्मशान घाट या विद्युत शवदाह गृह में ले जाते हैं और अंतिम संस्कार करते हैं.