नान को ‘चूर-चूर’ करने से नहीं रोका जा सकता’

Jun 03, 2019

नान को ‘चूर-चूर’ करने से नहीं रोका जा सकता’

उद्योग विहार (जून 2019)-नई दिल्ली। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा है कि चूर-चूर नान और अमृतसरी चूर-चूर नान शब्द पर किसी का एकाधिकार नहीं हो सकता है। क्योंकि यह पूरी तरह से सार्वजनिक भाव है। अदालत ने कहा कि चूर-चूर शब्द का मतलब चूरा किया हुआ है और चूर-चूर नान का मतलब है चूरा किया हुआ नान। यह शब्द किसी एक के लिए ट्रेडमार्क हस्ताक्षर लेने योग्य नहीं है। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने प्रवीण कुमार जैन की याचिका पर सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुनाया। जैन पहाड़गंज में एक रेस्तरां के मालिक हैं, जहां नान एवं अन्य व्यंजन परोसे जाते हैं। जैन ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया था कि चूर-चूर नान पर उनका अधिकार है, क्योंकि उन्होंने इसके लिए पंजीकरण कराया हुआ है। ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए एक अन्य भोजनालय के खिलाफ ट्रेडमार्क उल्लंघन का आरोप लगाया था। याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि यदि पंजीकरण गलत तरीके से दिए गए हैं या ऐसे सामान्य भावों के लिए आवेदन किया गया है, तो इसे अनदेखा नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने भले ही चूर-चूर नान का पंजीकरण करा रखा हो, लेकिन इससे किसी भी नान को चूर-चूर करने से नहीं रोका जा सकता।चूर-चूर नाम के हक को लेकर दायर की गई याचिका पर दूसरे पक्ष ने भी हाई कोर्ट में अपना तर्क दिया। दूसरे पक्ष की तरफ से कहा गया कि ढाबा व होटलों में इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करना आम है। जैसे चांदनी चैक के मशहूर, दिल्ली के मशहूर, दिल्ली वालों की मशहूर आदि। इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि व्यापार के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग करना आम है।

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