स्कूली बच्चों के लिए आफलाइन शिक्षा का विकल्प आनलाइन शिक्षा कतई नहीं हो सकती

Aug 05, 2021
Source: https://www.jagran.com/

नरपतदान चारण। विश्व के 160 से अधिक देशों में चरणबद्ध रूप से स्कूलों के आरंभ होने की खबरों के बीच हमारे देश में भी विभिन्न राज्यों में इस माह से स्कूलों को खोलने की तैयारी की जा रही है, लिहाजा इस बारे में हमें नए सिरे से रणनीति बनाने में अभी से ही जुट जाना होगा। चूंकि भारत में संक्रमण के मामले काफी हद तक कम हुए हैं, ऐसे में आफलाइन स्कूल संचालन को लेकर काम किया जाना चाहिए। दरअसल आनलाइन शिक्षा धरातल पर पूरी तरह कारगर और कामयाब साबित नहीं हो पा रही है। इसमें कई पेचीदगियां हैं।

लोकल सर्कल्स’ द्वारा 24 राज्यों के 294 जिलों में किए गए सर्वे में सामने आया है कि 67 फीसद अभिभावक स्कूल खोलने के पक्ष में हैं। जबकि आनलाइन शिक्षा के पक्ष में महज 19 फीसद अभिभावक हैं। इसका मतलब यह हुआ कि आनलाइन शिक्षा व्यवस्थित न होने से अभिभावकों द्वारा स्वीकार नहीं की जा रही है। हालांकि आनलाइन शिक्षा की जद्दोजहद के लिए समय समय पर अलग अलग दिशा-निर्देश जारी किए जा रहे हैं। हाल ही में शिक्षा मंत्रलय ने घर-आधारित शिक्षण में माता-पिता की भागीदारी के लिए दिशा-निर्देश जारी किए। इसमें आनलाइन शिक्षा के समय अभिभावकों को बच्चों के सहयोग के लिए बताया गया है।

वहीं, दूसरी तरफ अदालत ने निजी स्कूलों को कोविड से प्रभावित शिक्षा सत्र के लिए आनलाइन शिक्षा के आधार पर भी बच्चों से विकास और वार्षकि शुल्क वसूलने के आदेश यथावत रखे हैं। इस तरह की बातों से यह विसंगति कायम है कि आनलाइन शिक्षा का कोई व्यवस्थित ढांचा नहीं होने के बावजूद इसे बच्चों पर थोपा जा रहा है, क्योंकि सही रूप में देखा जाए तो आनलाइन शिक्षा व्यवस्था और उसके वास्तविक प्रदर्शन व प्रतिफल से हम काफी दूर हैं। इसलिए यह आनलाइन शिक्षा महज ‘इमरजेंसी रिमोट टीचिंग’ साबित हो रही है। व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो आनलाइन एजुकेशन और इस इमरजेंसी रिमोट टीचिंग में बहुत फर्क है। आनलाइन शिक्षा अच्छी तरह से तैयारी और अनुसंधान के बाद अभ्यास में लाई जाती है। लेकिन इस समय यह धरातलीय वास्तविकता जाने बगैर मजबूरी में लागू की गई है। इसमें कई खामियां है। एक तो यह महंगी है, दूसरा स्कूली संसाधनों का उपयोग न करने के बावजूद निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा फीस वसूला जाना और तीसरा, तकनीक की पहुंच हर छात्र तक नहीं होना काफी अव्यावहारिक है।

यह भी समझा जाना बहुत जरूरी है कि सिर्फ एक स्मार्टफोन होना ही आनलाइन एजुकेशन नहीं होता है। इसके लिए व्यापक प्लेटफार्म और तकनीकी यंत्रों की महती भूमिका होती है। चूंकि बच्चों की सेहत का खयाल रखना बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए स्कूल को बंद रखा जाना जरूरी था। ऐसे में बच्चे घर पर ही मोबाइल या लैपटाप, टेबलेट, टीवी आदि के माध्यम से डिजिटल शिक्षा प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन दूरस्थ इलाकों में सुलभ इंटरनेट सेवा नहीं होने, टैबलेट, प्रोजेक्टर आदि की उपलब्धता न होने या ई-कंटेंट की अनुपलब्धता के कारण स्कूली बच्चे डिजिटल शिक्षा से महरूम हैं।

हालांकि आनलाइन शिक्षण का विचार कोई नया नहीं है और दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में भारत में इसका प्रयोग पहले से चल भी रहा है। लेकिन वृहद रूप से देखा जाए तो अभी हमारे स्कूली शिक्षण संस्थानों में इसका चलन नहीं के बराबर है। इसी बीच सर्वेक्षणों में यह जानकारी सामने आई है कि मात्र एक तिहाई अभिभावक ही अपने बच्चों के लिए डिजिटल शिक्षा की पुख्ता व्यवस्था कर सकते हैं। लिहाजा इसे सफलतापूर्वक लागू करने के लिए जरूरत यह बात ध्यान रखने की है कि यह आनलाइन शिक्षा व्यवस्था कम लागत में, सस्ती और सर्वसुलभ रूप में निर्बाध रूप से संचारित हो। अब चूंकि सरकारी स्कूल में तो सरकार का यह दायित्व है कि वह बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रही है, लिहाजा डिजिटल शिक्षा हेतु आवश्यक उपकरण भी निशुल्क उपलब्ध कराना सुनिश्चित करे। लेकिन बड़ी समस्या निजी शिक्षा संस्थानों को लेकर है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि निजी शिक्षा संस्थानों का क्षेत्र भी बहुत व्यापक है। निजी स्कूलों में आफलाइन शिक्षा पहले ही इतनी महंगी है कि हर कोई वहां पढ़ नहीं पाता। ऐसे में डिजिटल शिक्षा के दौर में आवश्यक उपकरण जुटाना काफी महंगा है।

शुरुआती दौर में स्कूलों में आनलाइन शिक्षा प्रदान करने के रास्ते में अनेक व्यावहारिक बाधाएं आई हैं, जैसे सभी शिक्षकों और विद्याíथयों के पास स्मार्टफोन, कंप्यूटर, लैपटाप या टैबलेट की सुविधा न होना, इंटरनेट, ब्राडबैंड का सुचारू रूप से उपलब्ध न होना, डाटा स्पीड नहीं मिलना, आनलाइन शैक्षिक टूल्स की जानकारी न होना, पुस्तकालयों का डिजिटल न होना, ई-कंटेंट का उपलब्ध न होना आदि। चूंकि डिजिटल शिक्षा को पाने के लिए लोगों को कई उपकरणों को लेना होता है, जो काफी महंगे पड़ते हैं। ऐसे में घर बैठे शिक्षा प्राप्त करने के लिए टैबलेट, पीसी, प्रोजेक्टर, इंटरनेट और विशेषकर सस्ता डाटा और हाई स्पीड इंटरनेट की बहुत जरूरत होती है। वर्तमान में ये सभी सुविधाएं काफी महंगी साबित हो रही हैं। यही कारण है कि डिजिटल शिक्षा देने वाले अधिकांश स्कूल नियमित स्कूलों की तुलना में अधिक महंगे होते हैं।

इसी कारण डिजिटल शिक्षा पाना हर किसी के बस की बात नहीं होती। पारंपरिक किताबी शिक्षा से घर हो या स्कूल कहीं भी पढ़ाई कर सकते हैं। जबकि डिजिटल शिक्षा के लिए न केवल स्कूल में, बल्कि घर में भी सस्ते ब्राडबैंड में उचित आधारभूत संरचना की जरूरत होती है। वहीं डिजिटल शिक्षा के तहत सीखने के लिए बेहतर प्रबंधन और कठोर योजनाओं की जरूरत होती है। यह जरूर संभव है कि विद्याíथयों और शिक्षकों की संख्या का कुछ प्रतिशत समय की मांग को देखते हुए भविष्य में कंप्यूटर, लैपटाप इत्यादि संसाधन खरीद भी ले, क्योंकि स्मार्टफोन के ही द्वारा पढ़ाई करना संभव नहीं है। लेकिन एक बड़ी समस्या उन विद्याíथयों की है जो कमजोर आय वर्ग से आते हैं। उनके अभिभावकों के लिए उनकी फीस भर पाना ही किसी चुनौती से कम नहीं होता, ऐसे में महंगे उपकरण खरीद पाना सबके सामथ्र्य की बात नहीं।

डिजिटल शिक्षा का बच्चों पर एक और दुष्प्रभाव सामने आ रहा है। दरअसल आनलाइन पढ़ाई करने के बहाने से बच्चे स्मार्टफोन या टैबलेट में तरह तरह के गेम व अन्य गलत कंटेंट भी देखने लगते हैं। यह जरूरी नहीं कि सभी माता-पिता इस बात को समझ ही जाएं। ऐसे में बच्चों का पढ़ाई के प्रति अच्छा विकास होना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। यह भी आनलाइन शिक्षा का सबसे बड़ा नुकसान है। वहीं स्वास्थ्य पर इसका व्यापक दुष्प्रभाव भी सामने आ रहा है। आनलाइन शिक्षा से छात्रों की आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है और उनकी दृष्टि खराब होती है। न केवल आंखें खराब होती हैं, बल्कि मस्तिष्क और चेहरे पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। यह बड़ी समस्या है। इसलिए हमारे नीति निर्माताओं को यह समझना होगा कि आनलाइन माध्यम किसी भी रूप में आफलाइन का विकल्प नहीं हो सकता है।

 

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