अब निजी क्षेत्र के कर्मी भी अच्छी पेंशन पायेंग

Apr 08, 2019

अब निजी क्षेत्र के कर्मी भी अच्छी पेंशन पायेंग

उद्योग विहार (अप्रैल-2019) नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को निजी कंपनियों में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के लिए पहले से ज्यादा पेंशन का रास्ता साफ कर दिया है। इससे पेंशन में कई गुना की बढ़ोतरी हो जाएगी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कर्मचारी भविष्य निधि संस्था (ईपीएफओ) द्वारा केरल उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दाखिल विशेष याचिका को खारिज कर दिया है। इससे देश भर के निजी क्षेत्रों के करोड़ों कर्मचारियों को इस मंहगाई के दौर में राहत मिलेगी। इससे श्रमजीवी पत्रकार भी लाभान्वित होंगे। केरल उच्च न्यायालय ने ईपीएफओ से कहा था कि वह सभी सेवानिवृत्त कर्मचारियों को उनकी पूरी तनख्वाह के आधार पर पेंशन दे ना कि अंशदान के आधार पर तय किया जाए जोकि प्रतिमाह अधिकतम 15 हजार रूपये निर्धारित है। अपने आदेश में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हमें विशेष याचिका में कोई योग्यता नहीं मिली। इसी वजह से इसे खारिज किया जाता है। उच्चतम न्यायालय ने प्राइवेट सेक्टर के सभी कर्मचारियों के पेंशन में भारी बढ़त का रास्ता साफ कर दिया है। इससे निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के पेंशन में कई गुना बढ़त हो जाएगी।कोर्ट ने इस मामले में ईपीएफओ की याचिका को खारिज करते हुए केरल हाई कोर्ट फैसले को बरकरार रखा है।

यह भी पढ़े -

Lok Sabha Election 2019: क्या इस बार उत्तर प्रदेश से खत्म होगा मुस्लिम सांसदों का सूखा जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक http://uvindianews.com/news/lok-sabha-election-2019-will-the-muslim-mps-dry-from-uttar-pradesh-this-time

केरल हाईकोर्ट ने कर्मचारियों को उनकी पूरी सैलरी के हिसाब से पेंशन देने का आदेश दिया गया था। फिलहाल ईपीएफओ द्वारा 15,000 रुपये के बेसिक वेतन की सीमा के आधार पर पेंशन की गणना की जाती है। गौरतलब है कि कर्मचारियों के बेसिक वेतन का 12 फीसदी हिस्सा पीएफ में जाता है और 12 फीसदी उसके नाम से नियोक्ता जमा करता है।कंपनी की 12 फीसदी हिस्सेदारी में 8.33 फीसदा हिस्सा पेंशन फंड में जाता है और बाकी 3.66 पीएफ में। उच्चतम न्यायालय ने अब यह रास्ता साफ कर दिया है कि निजी कर्मचारियों के पेंशन की गणना पूरे वेतन के आधार पर हो। इससे कर्मचारियों की पेंशन कई गुना बढ़ जाएगी। ईपीएफ या ईपीएस एक पेंशन स्कीम है, जिसके तहत प्राइवेट सेक्टर के संगठित क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों की नौकरी के दौरान बेसिक सेलरी के 8.33 फीसदी (1250 रुपए मासिक से ज्यादा नहीं) के बराबर पैसा इस स्कीम में जमा होता है। इसके एवज में, यह कर्मचारी को रिटायरमेंट के बाद निश्चित घ्मासिक पेंशन प्रदान करती है। भारत सरकार का कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ही सभी कर्मचारियों के ईपीएफ और पेंशन खाते को मैनेज करता है। हर ऐसा संस्थान जहां पर 20 या इससे ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं, उसे ईपीएफ में हिस्सा लेना होता है। ईपीएस इस योजना के साथ जुड़कर चलती है इसलिए ईपीएफ स्कीम का मेंबर बनने वाला हर शख्स पेंशन स्कीम का मेंबर अपने आप बन जाता है। ईपीएफ या ईपीएस में, ऐसे कर्मचारियों का अंशदान जमा होना अनिवार्य है,

यह भी पढ़े -

ट्रिब्यूनल पर CB का पहला दिन : CJI ने कहा,यह मजबूत दृष्टिकोण है कि सेवानिवृति के बाद की नियुक्ति न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर एक धब्बा जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक http://uvindianews.com/news/the-first-day-of-cb-on-the-tribunal-cji-said-it-is-a-strong-view-that-post-retirement-is-a-blot-on-the-independence-of-the-judiciary

जिनका बेसिक वेतन डीए 15000 रुपये या इससे अधिक होता है। जो कर्मचारी इससे अधिक बेसिक सैलरी पाते हैं, उनके पास ईपीएफ को अपनाने या छोड़ने का विकल्प होता है। आपके पीएफ खाते में नियोक्ता जो पैसा डालता है उसका एक हिस्सा पेंशन स्कीम के लिए ही इस्तेमाल होता है, जबकि आपकी सैलरी से जो पैसा कटता है वो पूरा का पूरा ईपीएफ स्कीम में चला जाता है। तो अगर पूरी सैलरी के हिसाब से पेंशन बनी तो कर्मचारियों का पेंशन कई गुना बढ़ जाएगा। इसमें नुकसान बस इतना है कि पेंशन तो बढ़ेगा, लेकिन पेंशन फंड की निधि कम हो जाएगी, क्योंकि अतिरिक्त योगदान ईपीएफ में जाने की जगह ईपीएस में जाएगा। केंद्र सरकार ने ईपीएस की शुरुआत 1995 में की थी। इसके तहत नियोक्ता कर्मचारी के 6,500 तक के मूल वेतन का 8.33 फीसदी हिस्सा(अधिघ्कतम 541 रुपये प्रति महीना)पेंशन स्कीम में डालने का नियम था। लेकिन 1 सितंबर, 2014 को ईपीएफओ ने इसमें बदलाव करते हुए 15,000 तक के मूल वेतन का 8.33 फीसदी (अधिकतम 1,250 रुपये प्रति महीना) कर दिया. सरकारी नौकरी वाले कर्मचारियों के लिए पेंशन और पीएफ की व्यवस्था जीपीएफ के तहत होती है। मार्च 1996 में सरकार ने इस कानून में संशोधन किया। जिसके अनुसार यदि कर्मचारी अपनी पूरी तनख्वाह के हिसाब से योजना में योगदान देना चाहे और नियोक्ता भी इसके लिए राजी हो तो उसे पेंशन भी उसी हिसाब से मिलनी चाहिए। सितंबर 2014 में ईपीएफओ ने एक बार फिर से नियम में बदलाव किया।

यह भी पढ़े -

सरकारी रिपोर्ट से हुआ खुलासा, छह साल में दो करोड़ लोग हुए बेरोजगार जानने के लिए लिंक पे क्लिक करे http://uvindianews.com/news/disclosures-from-government-reports-20-million-people-unemployed-in-six-years

जिसके बाद अधिकतम 15 हजार रुपये के 8.33 फीसदी के योगदान को मंजूरी मिल गई। हालांकि इसके साथ यह नियम भी लाया गया है कि यदि कोई कर्मचारी अपनी पूरी तनख्वाह पर पेंशन लेना चाहता है तो उसकी पेंशन वाली तनख्वाह पांच साल के हिसाब से तय की जाएगी। इससे पहले यह पिछले साल की औसत तनख्वाह पर तय होता था। जिसके कारण कई कर्मचारियों की तनख्वाह कम हो गई थी। फिर मामला उच्च न्यायालय पहुंचा। जिसके बाद केरल उच्च न्यायालय ने 1 सितंबर 2014 को हुए बदलाव को रद्द करके पुरानी प्रणाली को बहाल कर दिया था। अक्टूबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारियों के पक्ष में सुनाया था फैसला अक्टूबर, 2016 में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि कर्मचारी को पेंशन कंट्रीब्यूशन बढ़ाने का अधिकार है और इसके लिए कोई कट ऑफ डेट तय नहीं की जा सकती है। इसके आधार पर 12 रिटायर्ड कर्मचारियों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर ईपीएफओ से ज्घ्यादा पेंशन की मांग की थी। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने ईपीएफओ को इन कर्मचारियों को हायर कंट्रीब्घ्यूशन जमा कराने पर ज्घ्यादा पेंशन देने का आदेश दिया था। लेकिन कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के अधिकारी हायर पेंशन को लेकर उच्चतम न्यायालय के आदेश को लागू करने में हीलाहवाली कर रहे थे।
यह भी पढ़े -

छोटे उद्योगों को अब ज्यादा रियायतें देगी सरकार जानने के लिए लिंक पे क्लिक करे http://uvindianews.com/news/government-will-give-more-concessions-to-small-industries

आपकी राय !

Gujaraat में अबकी बार किसकी सरकार?

मौसम