2012 से हाईकोर्ट में आपराधिक अपील लंबित, दोषी को 17 साल की सजा, सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐसे आरोपी को जमानत दे दी, जो हाईकोर्ट के समक्ष आपराधिक अपील के लंबित रहने के दौरान (17 साल से अधिक) सजा काट चुका है। चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने रितु पाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में जमानत देते हुए अपने आदेश में कहा,
"इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता पहले ही 14 साल और 3 महीने की वास्तविक हिरासत और छूट के साथ कुल 17 साल और 3 महीने की सजा काट चुका है, और विशेष रूप से इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि सह-आरोपियों को पहले ही जमानत पर रिहा किया जा चुका है, याचिकाकर्ता का आवेदन 2012 से हाईकोर्ट के समक्ष विचाराधीन है, हम उसे जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला मानते हैं।"
बेंच ने ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए नियमों और शर्तों पर याचिकाकर्ता को जमानत देने का निर्देश दिया। याचिका में यह तर्क दिया गया था कि याचिकाकर्ता को 2004 में हुई एक घटना के लिए 14 जनवरी, 2008 को आईपीसी की धारा 302 सहपठित धारा 34 के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया था, लेकिन सजा के निलंबन की मांग करने वाला उसका आवेदन 9 साल इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है। एडवोकेट ऋषि मल्होत्रा के माध्यम से दायर याचिका में आगे कहा गया है कि सह आरोपी व्यक्तियों को हाईकोर्ट के समक्ष उनकी अपील लंबित रहने तक जमानत पर रिहा कर दिया गया है, जबकि याचिकाकर्ता की दूसरी जमानत याचिका 2012 से हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है।
उल्लेखनीय है कि शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष आपराधिक अपीलों की लंबी लंबितता के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली एक अन्य पीठ ने शुक्रवार को कुछ व्यापक मानदंड निर्धारित किए थे जिन्हें जमानत देते समय हाईकोर्ट द्वारा अपनाया जा सकता है। अदालत ने उन लोगों की सूची तैयार करने का आदेश दिया, जो 14 साल से अधिक जेल में रहे हैं और जिन्होंने बार- बार अपराध नहीं किया है, और जिन मामले आरोपी पहले ही 10 साल से अधिक की जेल में रह चुके हैं, उन्हें एक बार में जमानत दी जा सकती है।
एक अन्य मामले में 21 फरवरी, 2022 को जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने एक एसएलपी पर नोटिस जारी किया था, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आरोपी की दूसरी जमानत याचिका को खारिज करने के आदेश को खारिज कर दिया था, जिसने 5 जनवरी, 2021 तक 14 साल, 11 महीने और 16 दिन की वास्तविक सजा, और छूट के साथ 17 साल, 11 महीने और 5 दिन की सजा काट ली थी। आक्षेपित फैसले में, हाईकोर्ट ने कहा था कि यह जमानत के लिए उपयुक्त मामला नहीं था और 9 जनवरी, 2019 को कार्यालय को चार सप्ताह के भीतर पेपर बुक तैयार करने और सुनवाई के लिए अपील को तुरंत सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया था कि याचिकाकर्ता ने छूट के साथ 18 साल से अधिक और 14 साल से अधिक वास्तविक सजा काट ली थी। वकील का तर्क था कि याचिकाकर्ता का "फॉर्म-ए" जेल अधिकारियों द्वारा उत्तर प्रदेश कैदी रिहाई पर परिवीक्षा अधिनियम के तहत उनकी समयपूर्व रिहाई के लिए प्रस्तुत किया गया था, जिस पर जिला प्रबंधक गाजियाबाद और एसएसपी गाजियाबाद ने याचिकाकर्ता की समयपूर्व रिहाई की सिफारिश की थी, लेकिन यह अभी भी विचाराधीन था। उन्होंने हाईकोर्ट के निर्देश और याचिकाकर्ता के अच्छे आचरण के कारण मॉडल जेल में स्थानांतरण के बावजूद पेपर बुक तैयार न करने की पीठ को अवगत कराया। यह टिप्पणी करते हुए कि तथ्य परेशान करने वाले हैं, पीठ ने अपने आदेश में कहा, "हमारे विचार में उपरोक्त सभी तथ्य परेशान करने वाले हैं। प्रतिवादी-राज्य को स्थायी वकील के माध्यम से नोटिस जारी करें, जिसकी 02 मार्च, 2022 तक वापसी हो। इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार एक रिपोर्ट तत्काल भेजें कि क्या पेपर बुक 09.1.2019 को डिवीजन बेंच द्वारा पारित निर्देश के अनुसार तैयार की गई थी और यदि हां, तो कब और क्या उसके बाद अपील को सूचीबद्ध करने के लिए कोई कदम उठाए गए थे। " केस शीर्षक : रितु पाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य | रिट याचिका (आपराधिक) 535/2021 और धर्मेंद्र बनाम उत्तर प्रदेश राज्य | विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) डायरी सं. 3642/2022