आसान होंगे छोटी फैक्ट्रियों में रोजगार नियम
आसान होंगे छोटी फैक्ट्रियों में रोजगार नियम
नरेंद्र मोदी सरकार एक यूनिफाइड एक्ट बनाने की सोच रही है, जो छोटी फैक्ट्रियों में रोजगार को रेगुलेट करेगा। इसके लागू होने से उनके लिए 14 पेचीदा लेबर लॉ को मानने की मौजूदा व्यवस्था खत्म हो जाएगी।
कानून का मकसद-
इस कानून का मकसद छोटी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को ऑर्गनाइज्ड वर्कफोर्स जुटाने के लिए बढ़ावा देना है। इससे छोटी फैक्ट्रियों में काम करने वालों को मिनिमम वेज, बोनस, मैटरनिटी बेनेफिट्स और सोशल सेक्टर बेनेफिट्स मिलना पक्का हो सकेगा।
लेबर मिनिस्ट्री ने एक्ट से प्रभावित होनेवालों की राय जानने के लिए जो ड्राफ्ट बिल तैयार किया है, उसके मुताबिक एक्ट का नाम स्मॉल फैक्ट्रीज (रेगुलेशन ऑफ एंप्लॉयमेंट एंड अदर कंडीशंस ऑफ सर्विसेज), एक्ट 2014 होगा।
यह एक्ट 40 वर्कर्स से कम के साथ काम करने वाली मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स पर लागू होगा। लेबर मिनिस्ट्री के एक सीनियर ऑफिसर ने इकनॉमिक टाइम्स से कहा, 'हर एंप्लॉयर को अभी 44 सेंट्रल और 100 से ज्यादा लेबर लॉ के हिसाब से चलना होता है।
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वर्कर्स को बुनियादी हक-
यह बहुत ही मेहनत वाला काम है और इसके चलते फैक्ट्री वाले ऑर्गनाइज्ड सेक्टर से वर्कर्स लेने से परहेज करते हैं। इसके चलते वर्कर्स को बुनियादी हक नहीं मिल पाता है क्योंकि वे अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर में ही रह जाते हैं।' सूत्र ने कहा कि यूनिफाइड लॉ का आइडिया छोटी यूनिट्स को ऑर्गनाइज्ड वर्कर्स हायर करने के लिए बढ़ावा देना है।
अहम लेबर लॉ के मेन प्रोविजंस को ध्यान में रखते हुए ड्राफ्ट बिल में साफ तौर पर यह किया गया है कि छोटी फैक्ट्रियों में काम के घंटे, मिनिमम वेज, ओवरटाइम, छुट्टियों के प्रोविजन, सोशल सिक्योरिटी बेनेफिट और वर्कर्स को काम से हटाने के क्या नियम होंगे। इस समय देश के 40 करोड़ वर्कर्स में 94 पर्सेंट अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर में हैं और बुनियादी हक के महरूम हैं।
दोनों के लिए फायदे- प्रस्तावित कानून के मुताबिक, यह एंप्लॉयी और एंप्लॉयर दोनों के लिए फायदे का सौदा होगा। इससे छोटी फैक्ट्री के मालिक एंप्लॉयर्स को आसानी होगी, क्योंकि उनको फैक्ट्रीज एक्ट 1947, इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट 1947, या मिनिमम वेज एक्ट 1948 सहित 14 लेबर लॉ का पालन नहीं करना होगा। हालांकि एंप्लॉयर्स को छोटी फैक्ट्री का काम शुरू करने के 60 दिन के भीतर रजिस्ट्रेशन कराना होगा।
इस कानून के बनने से ज्यादा से ज्यादा छोटी फैक्ट्रियों के रजिस्ट्रेशन को बढ़ावा मिलेगा। एक मोटे अनुमान के मुताबिक, देश में तो 6.3 करोड़ उद्यम हैं, लेकिन रजिस्टर्ड सिर्फ नौ लाख हैं। इंडियन स्टाफिंग फेडरेशन की प्रेसिडेंट ऋतुपर्णो चक्रवर्ती कहती हैं, 'यह स्वागतयोग्य कदम है, क्योंकि इसमें सभी लेबर लॉ को शामिल किया गया है। देश के स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज के पास इतनी बैंडविथ नहीं है कि वह सिस्टम में बड़ी संख्या में मौजूद कानूनों का पालन कर सके। इसलिए वे नियमों का पालन करने से बचने के लिए अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर से वर्कर्स लेते हैं।'
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