यदि कैट के न्यायिक सदस्य और प्रशासनिक सदस्य के बीच अंतर है, तो तीसरे सदस्य को रेफर करें; पूर्ण पीठ को रेफर करने की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के न्यायिक सदस्य और प्रशासनिक सदस्य के बीच मतांतर की स्थिति में कैट की पूर्ण पीठ के रेफरेंस की आवश्यकता नहीं है।
न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि ऐसी स्थिति में, मामले को तीसरे सदस्य/अध्यक्ष को संदर्भित करने की आवश्यकता होती है, जिसे इस तरह के संदर्भ पर अपना निर्णय देना होता है। इस मामले में, जम्मू-कश्मीर पुलिस में इंस्पेक्टर (सशस्त्र) के रूप में कुछ व्यक्तियों की पदोन्नति को चुनौती देने वाली याचिकाओं को न्यायिक सदस्य और प्रशासनिक सदस्य के बीच मतांतर के बाद ट्रिब्यूनल की पूर्ण पीठ को भेजा गया था। फुल बेंच ने अर्जी खारिज कर दी थी।
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल (पूर्ण पीठ) द्वारा पारित आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि ट्रिब्यूनल के सदस्यों के बीच मामूली मतभेद के बाद अपनाई गई पूरी प्रक्रिया कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के विपरीत थी। हाईकोर्ट ने प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, 1986 की धारा 26 का उल्लेख किया और कहा कि अध्यक्ष को सदस्यों द्वारा निर्दिष्ट अंतर के मुद्दे पर निर्णय लेना था या वह एक या अधिक सदस्यों द्वारा इस तरह के संदर्भ पर निर्णय का निर्देश भी दे सकते थे।
हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए इस विचार को बरकरार रखते हुए, न्यायधीशों की खंडपीठ ने अपील खारिज करते हुए कहा: केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के अध्यक्ष द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया पर हाईकोर्ट द्वारा अपनाये गए दृष्टिकोण से हम पूरी तरह सहमत हैं। ठीक ही कहा गया है, एक बार ट्रिब्यूनल के न्यायिक सदस्य और प्रशासनिक सदस्य के बीच मतभेद होने पर मामले को तीसरे सदस्य/अध्यक्ष के पास भेजा जाना आवश्यक था और तीसरे सदस्य/अध्यक्ष को अपना निर्णय देने की आवश्यकता थी। हालांकि, मामले को पूर्ण पीठ के पास भेजने की आवश्यकता नहीं थी। हम हाईकोर्ट के इस विचार से पूरी तरह सहमत हैं।
मामले का विवरण दलजीत सिंह बनाम अरविंद सम्याल | 2022 लाइव लॉ (एससी) 364 | एसएलपी (सी) 5192-5194/2022 | 1 अप्रैल 2022 कोरम: जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना हेडनोट्स: प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1986; धारा 26 – ट्रिब्यूनल के न्यायिक सदस्य और प्रशासनिक सदस्य के बीच मतभेद होने पर मामले को तीसरे सदस्य/अध्यक्ष के पास भेजा जाना आवश्यक है और तीसरे सदस्य/अध्यक्ष को इस पर अपना निर्णय देना आवश्यक है। हालांकि, मामले को पूर्ण पीठ के पास भेजने की आवश्यकता नहीं है।
सारांश - केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के पूर्ण पीठ के फैसले को खारिज करने वाले जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील- खारिज - हम केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के अध्यक्ष द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया पर हाईकोर्ट द्वारा लिए गए दृष्टिकोण से पूरी तरह सहमत हैं।