खराब प्रदर्शन करने वाले निजी बैंकों के सीईओ नहीं ले पाएंगे मोटी सैलरी, RBI की सख्ती

Nov 05, 2019

खराब प्रदर्शन करने वाले निजी बैंकों के सीईओ नहीं ले पाएंगे मोटी सैलरी, RBI की सख्ती

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने निजी बैंकों के सीईओ को दी जाने वाली सैलरी के मामले में सख्ती बरती है. रिजर्व बैंक ने निजी बैंकों के शीर्ष अधिकारियों के वेतन के बारे में नियमों में ऐसा बदलाव किया है जिससे अब खराब प्रदर्शन करने वाले बैंकों के अधिकारी मोटी सैलरी नहीं ले पाएंगे. रिजर्व बैंक ने सोमवार को निजी और विदेशी बैंकों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (CEOs), पूर्णकालिक निदेशकों (WTDs) और मैटेरियल रिस्क टेकर्स (MRTs) को मिलने वाले वेतन के लिए गाइडलाइन में संशोधन किया है. नए नियम 1 अप्रैल, 2020 से लागू होंगे.

इसमें कहा गया है कि किसी बैंक का वित्तीय प्रदर्शन यदि खराब होता है तो उसके शीर्ष अधिका‍री को मिलने वाले वैरिएबल कम्पेनसेशन का हिस्सा शून्य तक किया जा सकता है. वैरिएबल कम्पेनसेशन या वैरिएबल पे वेतन का वह हिस्सा होता है, जो प्रदर्शन पर आधारित होता है.

बैंक अध‍िकारी लेते रहे हैं मोटी सैलरी

गौरतलब है कि बैंकों की हालत खराब रहने के बावजूद इनके शीर्ष अधि‍कारी मोटी सैलरी लेते रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वित्त वर्ष 2019 में 89 लाख रुपये के मासिक वेतन के साथ HDFC बैंक के एमडी आदित्य पुरी देश में सबसे अधिक वेतन भुगतान पाने वाले बैंक एग्जिक्यूटिव थे. जनवरी में एक्सिस बैंक के CEO के तौर पर कमान संभालने वाले अमिताभ चौधरी 30 लाख रुपये के मासिक वेतन के साथ बैंक अधिकारियों की सूची में दूसरे स्थान पर थे. कोटक महिंद्रा बैंक के उदय कोटक 27 लाख रुपये के मासिक वेतन के साथ तीसरे नंबर पर थे.

सैलरी की इस गणना में भत्ते और अन्य चीजों को शामिल नहीं किया है, क्योंकि वे विभिन्न बैंकों में अलग-अलग तरीके से दिए जाते हैं. बैंकों के चीफ एग्जिक्यूटिव की सैलरी के आंकड़े बैंकों की सालाना रिपोर्ट से मिले हैं. इसके पहले जो रेगुलेटरी गाइडेंस था वह 'बिजनस,' 'कंट्रोल' और 'रिस्क' जैसे फंक्शंस के आधार पर सीनियर अधिकारियों का वेतन-भत्ता तय करने का सामान्य निर्देश भर था. लेकिन अब आरबीआई ने जो नियम बनाए हैं उनका सीधा संबंध सीईओ के कंपनजेशन से होगा.  

हालांकि, रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देश में यह भी कहा गया है कि वेतन के सभी फिक्स्ड आइटम जैसे प्रीक्विसाइट, परफॉर्मेंस बोनस, गारंटीड बोनस, सेवेरेन्स पैकेज, शेयर लिंक्ड इंस्ट्रुमेंट जैसे कि एम्प्लॉई स्टॉक ऑप्शन (ESOPs), पेंशन प्लान, ग्रैच्युटी आदि को फिक्स्ड पे का ही हिस्सा माना जाएगा. रिजर्व बैंक ने कहा है कि फिक्स्ड पे और वैरिएबल पे के बीच उचित संतुलन होनी चाहिए.

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रिजर्व बैंक के मुताबिक CEOs, WTDs और MRTs को वैरिएबल पे शेयर लिंक्ड इंस्ट्रुमेंट या कैश और शेयर लिंक्ड इंस्ट्रुमेंट के मिश्रण के रूप में दिया जा सकता है. नियम के मुताबिक वेतन का कम से कम 50 फीसदी हिस्सा वैरिएबल पे के रूप में होना चाहिए और यह संबंधित व्यक्ति के प्रदर्शन, उसके कारोबार और फर्म के व्यापक प्रदर्शन पर आधारित हो.

क्या कहा रिजर्व बैंक ने

रिजर्व बैंक ने कहा है, 'ऊंची जिम्मेदारी के स्तर पर वैरिएबल पे का हिस्सा ज्यादा होना चाहिए. हालांकि कुल वैरिएबल पे फिक्स्ड पे के 300 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता. यदि वैरिएबल पे फिक्स्ड पे का 200 फीसदी तक है तो कम से कम इसका 50 फीसदी हिस्सा और यदि यह फिक्स्ड पे के 200 फीसदी से ज्यादा है तो इसका कम से कम 67 फीसदी हिस्सा गैर नकदी साधनों के रूप में होना चाहिए.रिजर्व बैंक ने यह भी कहा है कि ज्वाइन या साइन-इन बोनस केवल शेयर लिंक्ड इंस्ट्रुमेंट के रूप में होना चाहिए.

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