दिल्ली हाईकोर्ट ने पॉक्सो के तहत सजा पाए एक अभियुक्त के लिए सुधार और पुनर्वास की योजना बनाने के निर्देश दिए

Mar 04, 2020

दिल्ली हाईकोर्ट ने पॉक्सो के तहत सजा पाए एक अभियुक्त के लिए सुधार और पुनर्वास की योजना बनाने के निर्देश दिए

दिल्ली हाईकोर्ट ने जेल अधिकारियों को पॉक्सो अधिनियम के तहत दोषी करार दिए गए एक व्यक्ति के लिए उचित पुनर्वास कार्यक्रम तैयार करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा की एकल पीठ ने तिहाड़ के पुलिस अधीक्षक को अभियुक्त के लिए एक उपयुक्त पुनर्वास कार्यक्रम तैयार करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा है कि 'सजा एक निवारक या हत्तोसाहित करने के रूप में कार्य करती है और साथ ही पुनर्वास की संभावना के साथ सुधारवादी है।' यह निर्देश एक आपराधिक अपील पर सुनवाई के दौरान दिए गए हैं। इस अपील में अभियुक्त को पॉक्सो की धारा 10 और भारतीय दंड संहिता की धारा 367 के तहत दोषी करार दिए जाने के निर्णय को चुनौती दी गई थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार,आरोपी यौन उत्पीड़न के लिए एक बच्चे को अपने घर ले गया था। उसने उक्त बच्चे के साथ 'अनुचित कार्य' करने के लिए बच्चे को उसके कपड़े उतारने के लिए कहा था। परंतु जैसे ही बच्चा रोने लगा, आरोपी ने उसे कपड़े पहनाए और उसे जाने दिया। हालांकि हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा को रद्द करने या पलटने का कोई मतलब नहीं है और इसके लिए अपील में कोई मेरिट या तथ्य नहीं पाए गए हैं। लेकिन न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों पर भरोसा करते हुए दोषी के पुर्नवास को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। इसी को देखते हुए, अदालत ने जेल अधीक्षक को उक्त दोषी के लिए एक उपयुक्त सुधार कार्यक्रम तैयार करने का निर्देश जारी किया है। साथ ही कहा है कि यदि संभव हो तो उक्त योजना में निम्नलिखित शामिल होना चाहिए- ए-मेडिटेशनल थेरेपी के माध्यम से उपयुक्त सुधारक पाठ्यक्रम बी- आजीविका के विकल्प और व्यावसायिक स्थिति या कामकाज के लिए सक्षम बनाने के लिए शैक्षिक अवसर, व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रम सी- अपीलार्थी के लिए पोस्ट रिलीज या उसके जेल से रिहा होने की तारीख से पहले ही उसके लिए पुनर्वास कार्यक्रम को आकार देना ताकि उसे आत्म निर्भर बनाया जाए सकें,जो मॉडल प्रिजन मैनुअल 2016 के अध्याय 22 खंड 22.22 ( कक ) के नियमों को सुनिश्चित करता हो। वहीं अपीलार्थी को सुरक्षा देना ताकि वह गैर-सामाजिक समूहों, नैतिक खतरों की एजेंसियों (जैसे जुआरी, शराब पीने के स्थान और वेश्यालय) और हत्तोसाहित और वंचित व्यक्तियों के साथ न जुड़े। डी- अपीलकर्ता को यह समझाने के लिए पर्याप्त परामर्श दिया जाए कि वह जेल में क्यों है? ई-पुर्नवास काम कर रहा है,इसको नापने के लिए साइकोमेट्रिक परीक्षण किया जाए और एफ- जेल के नियमों व मॉडल प्रिजन मैनुअल के अनुसार अपीलकर्ता को उसके परिवार के सदस्यों के साथ संपर्क रखने की अनुमति दी जा सकती है। इन निर्देशों के अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए, अदालत ने उक्त अधीक्षक को निर्देश दिया है कि वह दोषी की रिहाई तक अदालत में द्वि-वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करें।

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