लॉकडाउन में मैन्यूफैक्चरिंग को मुश्किल मान रहे हैं उद्यमी

Apr 20, 2020

लॉकडाउन में मैन्यूफैक्चरिंग को मुश्किल मान रहे हैं उद्यमी

सरकार की तरफ से 20 अप्रैल से कोरोना से मुक्त और ग्रामीण क्षेत्रों में मैन्यूफैक्चरिंग की इजाजत दे दी गई है, लेकिन छोटे उद्यमी इसे मुश्किल भरा काम मान रहे हैं। कामकाज शुरू करने के लिए सरकार की कठिन शर्तो को देखते हुए ग्रीन जोन यानी कि कोरोना मुक्त इलाके के उद्यमी भी फिलहाल मैन्यूफैक्चरिंग शुरू करने के पक्ष में नहीं हैं। जिन निर्यातकों के पास निर्यात के ऑर्डर बचे हैं, वे जरूर 20 अप्रैल से मैन्यूफैक्चरिंग शुरू कर सकते हैं। विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) और एक्सपोर्ट ओरिएंटेड यूनिट में काम शुरू हो सकता है, लेकिन यहां भी कच्चे माल की समस्या खड़ी हो सकती है। सेज में काम करने वाली 4,000 से अधिक आइटी यूनिट निश्चित रूप से 20 अप्रैल से पूरी तरह से काम आरंभ करने में सक्षम होंगी। फेडरेशन ऑफ इंडियन स्माल मीडियम इंटरप्राइजेज (फिस्मे) के महासचिव अनिल भारद्वाज ने बताया कि इस लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण इलाके के ही छोटे उद्यमी कुछ हद तक काम शुरू करने में कामयाब हो पाएंगे। ग्रामीण इलाके में भी काम शुरू करने लिए इलाके के डीएम से अनुमति लेना आवश्यक है और अभी हर जगह के लिए स्थानीय स्तर पर ऑर्डर जारी नहीं किया गया है। ग्रामीण इलाके के श्रमिक अपने घरों से मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट तक आना-जाना कर सकते हैं, लेकिन शहरी इलाके में ऐसा संभव नहीं है। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गेनाइजेशंस (फियो) के पूर्व अध्यक्ष एवं लुधियाना स्थित निर्यातक एससी रल्हन ने बताया कि उन्हें काम शुरू करने के लिए श्रमिकों के लाने ले जाने की व्यवस्था करने को कहा गया है। उन्होंने बताया कि ऐसे काफी कम उद्यमी हैं जिनके पास श्रमिकों की यातायात सुविधा के लिए बसें वगैरह हैं। उद्यमियों के मुताबिक उनके पास कच्चे माल का स्टॉक अधिकतम एक सप्ताह तक का होता है। कच्चे माल की सप्लाई को लेकर आश्वस्त होने के बाद ही मैन्यूफैक्चरिंग शुरू करने में फायदा है। कई उद्यमियों के कच्चे माल उन जगहों से आते हैं, जहां कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। ऐसे में उनके लिए मैन्यूफैक्चरिंग में अड़चनें पैदा होंगी।

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