इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य आरोप-पत्र दाखिल करते समय धारा 65 बी के तहत प्रमाण पत्र पेश करने विफलता अभियोजन के लिए घातक नहीं सुप्रीम कोर्ट निर्णय पढ़े

May 15, 2019

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य आरोप-पत्र दाखिल करते समय धारा 65 बी के तहत प्रमाण पत्र पेश करने विफलता अभियोजन के लिए घातक नहीं सुप्रीम कोर्ट निर्णय पढ़े

ऐसे प्रमाण पत्र को प्रस्तुत करने की आवश्यकता तब उत्पन्न होगी जब ट्रायल के दौरान साक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड पेश करने की मांग की जाती है। यह वो चरण है जब प्रमाण पत्र के प्रस्तुत करने की आवश्यकता उत्पन्न होगी।" किसी आपराधिक मामले में अगर आरोप-पत्र दाखिल किया गया है तो इस स्तर पर साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 बी (4) के तहत एक प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में विफलता अभियोजन पक्ष के लिए घातक नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक राज्य बनाम एम. आर. हिरेमठ केस में दिए फैसले में कहा है। दरअसल भ्रष्टाचार के एक आधिकारिक अभियुक्त ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की थी जिसमें एक आपराधिक मामले में उसे आरोपमुक्त ना करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई। याचिका को अनुमति देते हुए उच्च न्यायालय ने कहा था कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 बी के तहत प्रमाण पत्र के अभाव में जासूसी कैमरे पर आधारित इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के माध्यमिक प्रमाण साक्ष्य के तहत स्वीकार्य नहीं हैं। यह भी देखा गया कि अभियोजन पक्ष इस समय "इस बिंदु पर" किसी भी प्रमाणीकरण को प्रस्तुत करता है तो ये बाद की सोची नीति मानी जाएगी।

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आगे यह कहा गया कि अभियोजन के मामले में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के अलावा उपलब्ध साक्ष्य संतुष्टि वाले नहीं हैं। न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने राज्य द्वारा दायर अपील पर गौर किया कि उच्च न्यायालय ने यह गलत निष्कर्ष निकाला है कि आरोप- पत्र दाखिल करने के चरण पर साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 बी (4) के तहत प्रमाण पत्र पेश करने में विफलता अभियोजन पक्ष के लिए घातक है। पीठ ने यह कहा: "ऐसे प्रमाण पत्र के प्रस्तुत करने की आवश्यकता तब उत्पन्न होगी जब ट्रायल के दौरान साक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड पेश करने की मांग की जाती है। यह ही वो चरण है जब प्रमाण पत्र के प्रस्तुत करने की आवश्यकता उत्पन्न होगी।" उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए अदालत ने यह भी दोहराया कि अदालत द्वारा किसी आवेदन पर विचार करने के चरण में इस धारणा पर आगे बढ़ना चाहिए कि अभियोजन द्वारा रिकॉर्ड पर जो सामग्री लाई गई है वह सही है या नहीं, और इस क्रम में सामग्री का मूल्यांकन यह निर्धारित करने के लिए किया जाए कि सामग्री से उभरे हुए तथ्य अपराध का गठन करने के लिए आवश्यक सामग्री के अस्तित्व का खुलासा करते हैं या नहीं |

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