फर्जी श्रमिक यूनियन के नेताओं एवं श्रम विभाग के अधिकारियों के गठजोड़ के कारण नोएडा उ प्र में उद्यमी दहशत में
फर्जी श्रमिक यूनियन के नेताओं एवं श्रम विभाग के अधिकारियों के गठजोड़ के कारण नोएडा उ प्र में उद्यमी दहशत में
फर्जी श्रमिक यूनियन के नेताओं ने एक ऐसा गठजोड़ श्रम विभाग के अधिकारियों के साथ बना रखा है जिसमें ये लोग मिलकर उद्यमियों को झूठे मुकदमें में फँसाकर वसूली करते हैं। और यदि कोई इनका विरोध करता है तो गुण्डागर्दी करते हुए कारखाना मालिक को धमकाते हैं। कई फर्जी मुकदमों में इस तरह से कारखाना मालिकों का हमेशा से शोषण होता रहता है। इसी तरह ये लोग मिलकर एकतरफा कार्यवाही उद्यमी के खिलाफ करते हुए उसके खिलाफ अमीन से वारण्ट भिजवाया जाता है। इस तरह की घटनाओं को देखते हुए ही पूर्व में जिलाधिकारी गौतम बुद्ध नगर बी एन सिंह ने एक पक्षीय कार्यवाही के मामलों में उप श्रमायुक्त से कार्यवाही का अधिकार छीन लिया था।
लॉ ऑफ़ लेबर एडवाइजर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष सत्येन्द्र सिंह ने बताया कि श्रम विभाग में इन फर्जी श्रमिक नेताओं का इतना अधिक दबाव है की श्रम विभाग की केसों की सरकारी फाइल ये फर्जी नेता अपने घर ले जाते हैं। और केसों के जो भी आर्डर होते हैं वे श्रम विभाग के नीचे फोटोकॉपी एवं टाइपिंग की दुकान में इन फर्जी नेताओं द्वारा टाइप किये जाते हैं। और कभी भी इन फर्जी श्रमिक नेताओं के घरों पर एवं श्रम विभाग के नीचे फोटोकॉपी की दुकान पर छापा डाल कर प्रशासन इन सरकारी फाइल को जब्त कर सकता है।
श्रम विभाग के अधिकारी भ्रष्टाचार में इतने अधिक लिप्त हैं की वे सिर्फ कारखानों एवं प्रतिष्ठानों पर वसूली के लिए दिन भर घूमते रहते हैं। और वसूली करने के लिए अपने से ऊपर के अधिकारी एवं श्रम मंत्री के नाम का इस्तेमाल किया जाता है। उपश्रमायुक्त महोदया भी खुलेआम कारखानों में जा रही हैं और उद्यमियों को ऑफिस में बुलाकर धमकाया जा रहा है।
जब कोई भी उपश्रमायुक्त महोदया के कमरे में जाता है तो उसका मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक घड़ी सभी कुछ कमरे के बाहर चपरासी के पास जमा करवा दिया जाता है और ऐसा नोएडा श्रम विभाग में पहली बार हो रहा है। अब सोचनीय विषय ये है कि बंद कमरे के अंदर महोदया ऐसी कौन सी गोपनीय बात करती हैं की उनको सबके मोबाइल बाहर जमा करवाने पड़ते हैं। ऐसी कौन सी बात है कि जिसको वे छुपाना चाहती हैं ताकि कोई उसे रिकॉर्ड न कर ले।
एसोसिएशन की बैठक में सर्वसम्मति से तय किया गया कि अब कोई भी कॉस्ट किसी भी केस में नगद नहीं दी जाएगी उसे श्रमिक के नाम से डीडी बनाकर ही जमा किया जायेगा। अधिकारी कॉस्ट इसीलिए लगाता है और नेता इसीलिए लगवाता है क्योंकि इस कॉस्ट को वे लोग ५०:५० बाँट लेते है और श्रमिक के हाथ खाली रह जाते हैं। श्रमिकों के नाम पर श्रम विभाग एवं इन फर्जी नेताओं का व्यापार बहुत फल फूल रहा है लेकिन अफ़सोस की श्रमिक फिर भी इन फर्जी नेताओं के चक्कर में अपना सब कुछ गँवा रहा है और इन नेताओं के पीछे घूमते हुए अपनी जिंदगी खो रहा है। वहीँ इन नेताओं के घरों में दिवाली मन रही है और बेचारा श्रमिक दो रोटी के लिए भी मोहताज है।