मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के सम्मान अधिकार-मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 को लागू करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर

Jul 01, 2019

मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के सम्मान अधिकार-मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 को लागू करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर

डब्ल्यूएचओ की 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार हर पांच में से एक भारतीय को अपने जीवनकाल में अवसाद का शिकार होने की संभावना है। मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सामना करने वाले व्यक्ति से जुड़े सामाजिक कलंक व इसी पर आधारित,एक वकील ने दिल्ली उच्च न्यायालय का रूख किया है,जिसने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 को प्रभावी रूप से लागू करने की मांग की है। जिसमें मानसिक रूप से कमजोर लोगों के अधिकारों के सम्मान करने सहित कुछ प्रावधानों को शामिल करते हुए पिछले 1987 के अधिनियम से एक छलांग लगाई है या उसे लांघ दिया है। वर्ष 2017 के अधिनियम में आत्महत्या के प्रयास को भी अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है,वहीं जहां ऐसे मानसिक रोगी का उपचार होता है या वह अपनी पसंद से करवाता है,उसके लिए अग्रिम निर्देश ओर कानूनी सहायता का अधिकार आदि को भी शामिल किया गया ।

वकील अमित साहनी ने अपनी जनहित याचिका में कहा है कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017,जो 29 मई 2018 से लागू हुआ था,के शुरूआती पैराग्राफ में वर्णित किया गया है,''मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और सेवाओं देने वाला अधिनियम और ऐसे लोगों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल व सेवाएं देते समय या इससे जुड़े मामलों में उनके अधिकारों की रक्षा करने,उनके अधिकारों को बढ़ावा देने और उन्हें पूरा करना।'' यह अधिनियम पहले से मौजूद मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1987 को अतिष्ठित या रद्द करता है,जो 22 मई 1987 को पास हुआ था।

यह भी पढ़े-

वायु प्रदूषण और सुप्रीम कोर्ट : वेहिकुलर पॉल्यूशन केस (१९८५-२०१९) की एक समीक्षा, जानने के लिए लिंक पे क्लिक करे http://uvindianews.com/news/air-pollution-and-supreme-court-a-review-of-the-heycleular-pollution-case-1985-2019

साहनी ने कहा कि इस अधिनियम का उद्देश्य मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल व सेवाएं देना है। वहीं ऐसे व्यक्तियों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल व सेवाएं देते समय उनके अधिकारों की रक्षा करना,उनको बढ़ावा देना व उन्हें पूरा करना है। परंतु सरकार के रवैये के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा है क्योंकि सरकार ने राज्य मानसिक स्वास्थ्य अधिकारी व मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड का गठन नहीं किया है। इन निकाय का गठन न होने के कारण मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों का इलाज बुरे तरीके से प्रभावित हो रहा है।

इस जनहित याचिका में धारा 100 (7) में दिए आदेश या आज्ञा के तहत पुलिस को संवेदनशील बनाने पर जोर दिया गया है ताकि अगर कोई मानसिक रूप से बेघर व्यक्ति मिले तो उसे मामले में संबंधित पुलिस स्टेशन में गुमशुदा व्यक्ति की प्राथमिकी दर्ज की जाए और यह पुलिस की जिम्मेदारी बनती है कि वह ऐसे व्यक्ति के परिजनों को खोज निकाले। परंतु असल में पुलिस को अगर कोई मानसिक रूप से बीमार बेघर व्यक्ति मिलता है तो वह प्राथमिकी नहीं करती है। बस एक डायर में प्रविष्टि कर दी जाती है। साहनी ने यह भी बताया कि कैसे ''धारा 93 के तहत बोर्ड की अनुपस्थिति में मानसिक बीमारी से ग्रसित व्यक्तियों को एक मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान से दूसरे मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान में भेज दिया जाता है,जो अप्रभावी हो गया है।''

अधिनियम के तहत मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को मुफत कानूनी सेवाएं दी जानी चाहिए परंतु साहनी ने बताया दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने इस दिशा में कोई कार्यक्रम शुरू नहीं किया है। जनहित याचिका में कहा गया है कि ''दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा एक नीति कार्य योजना बनाने और दंडाधिकारियों,पुलिस अधिकारियों व हिरासत संस्थानों के प्रभारी व्यक्तियों को संवेदनशील बनाने वाले कार्यक्रम संचालित करने की आवश्यकता है।''

यह भी पढ़े-

वित्त मंत्रालय का निर्देश- पीएफ पर नहीं बढ़ाई जाए ब्याज दर, अड़ा ईपीएफओ, जानने के लिए लिंक पे क्लिक करे http://uvindianews.com/news/instructions-of-the-ministry-of-finance-no-interest-rate-on-pf-insistent-epfo